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माँ....तुझे प्रणाम...माँ तुझे सलाम

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अभिनव बिंद्रा , की कोशिश से स्वर्ण किरण ,मेरे आँगन में बिखरीं , और वो जो - वो पैरों से नहीं हौसलों से चलता है !" जी हाँ वो जो तारे जमीं पर , ले आता है .....जी हाँ वो जीमज़दूर है किसान है जी हाँ वही जो आभास -दिलाता है सु इश्मीत , सी यादें जो पलकों,की किनोरें भिगो देतीं हैं उन सबको मेरा सलाम माँ तुझे प्रणाम माँ तुझे सलाम