अनन्या लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
अनन्या लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

16.12.13

16 दिसम्बर क्या तुमने कभी सोचा था कि तुम इस तरह याद किये जाओगे


           पिंड दान कराने गये एक पंडित जी ने कहा - "तुम्हारे पिता को सरिता के मध्य में छोड़ना है ..वहां से सीधे स्वर्ग का रास्ता मिलेगा !"
नाविक ने कहा- "पंडिज्जी.. पिंड का चावल तो मछलियां खुद तट पर आ के खा लेंगी आप नाहक मध्य-में जाने को आमादा हैं. मध्य में तो भंवर है.. कुछ हुआ तो .."
पंडिज्जी- हे नास्तिक नाविक, तुम जन्म और कर्म दौनो से अभागे इसी कारण से हो क्योंकि तुमको न तो धर्म का ज्ञान है न ही जन्म जन्मांतर का बोध.. यजमान बोलो सच है कि नहीं..
शोकमग्न यजमान क्या कहता शांत था कुछ कहा न गया उससे .. नाविक ऐसे वक़्त में उस पर  अपनी राय थोंप कर मानसिक हिंसा नहीं करना चाहता था . चला दिया चप्पू उसने सरिता के मध्य की ओर.. मध्य भाग में वही हुआ जिसका भय था नाविक को नाव लड़खड़ाई.. जैसे-तैसे नाविक ने नाव को साधा वापस मोड़ ली नाव और कहा - पंडिज्जी, यदि मेरी वज़ह से आप दौनों अकाल मृत्यु का शिकार होते तो मुझे घोर पाप लगता.. अस्तु मैं सुरक्षित स्थान पर पिंडप्रवाह करा देता हूं. पंडिज्जी मौन थे... सारे ज्ञान चक्षु खुल गये थे उनके........ किसी के लिये मुक्ति का मार्ग कोई दूसरा व्यक्ति खोजे ये मानसिक दुर्बलता है. मेरी मुक्ति के लिये मेरी सदगति के लिये मैं स्वयं ज़िम्मेदार हूं. न कि कोई बिचौलिया.   

                 दूरस्थ एक गांव के ये ज्ञानी पुरुष  डोंगल से युक्त लेपटाप के ज़रिये दुनियां से जुड़े हैं . इनकी व्यवसायिक बुद्धि की दाद देनी होगी . किसी के आग्रह पर हमने इन से मुलाक़ात की जीवन के आसन्न कष्टों के उपचार का दावा करते हैं ये.. मुझे विश्वास नहीं कि मेरे अनन्त कष्टों.. अनन्त सुखद क्षणों में ये किसी भी साधना के ज़रिये हस्तक्षेप कर सकते हैं. क्योंकि हर हस्तक्षेप धन कमाने का एक अवसर है उनके लिये. ठीक इसी तरह जैसे एक नेता आता है हमारे सामने मुद्दे उछालता है हम मोहित हो जाते हैं उसको वोट टाईप की शक्ति अर्पित कर देते हैं.. वो आसन पर बैठ जाता है.. वो उसका व्ववसायिक वैशिष्ठय है क्योंकि हम नहीं जानते कि हम छले जा रहे हैं.. छले न भी गये तो हमारे पास विकल्प कम ही होते हैं जिन विकल्पों को हम स्वीकारते हैं वो लोकसंचार के बाज़ीगरों द्वारा हमारे मानस में डाले गये हैं. मेरी दुर्बल बुद्धि से मुझे न तो अन्ना न ही केजरी बाबू समझ आ रहे . एक मज़दूर को एक क्लर्क को एक मास्टर एक कुली को एक सामान्य आदमी को मूल्यांकन में सबसे पीछे छोड़ने वाले हम लोग केवल सतही ज्ञान जो बहुधा सूचनाओं का पुलिंदा होता है के आधार पर अच्छा-बुरा का श्रेणीकरण कर अपना निर्णय देते हैं. मुझे आज एक मौलिक निर्णय देखने को मिला सोशल साईट पर शायद आप भी पसंद करेंगे स्नेहा के निर्णय को स्नेहा चौहान कहती हैं निर्भया मामले को लेकर जब सारा देश गुस्‍से से उबल रहा था, तकरीबन उसी दौरान दिल्‍ली से दो घंटे की दूरी पर एक गांव की 15 वर्षीय लड़की गैंगरेप की शिकार हुई। लेकिन उसकी कराह सुनने वाला, उसे इंसाफ दिलाने वाला कोई नहीं था। छह माह तक वह इंसाफ के लिए लड़ती रही। बाद में उसे खुद पर केरोसीन उड़ेलकर खुदकुशी कर ली । अभी भी 70 फीसदी से ज्‍यादा ग्रामीण महिलाओं को अपने कानूनी अधिकारों का पता नहीं है । उन्‍हें तो अपमान, अत्‍याचार और उत्‍पीड़न को चुपचाप सहना सिखाया जाता है। क्‍या महिला अधिकारों की वकालत करने वाली शहरी महिलाएं अपनी साथिनों को उनके कानूनी अधिकार सिखाने आगे आएंगी
स्नेहा  का एक सवाल समय से भी है- "16 दिसम्बर क्या तुमने कभी सोचा था कि तुम इस तरह याद किये जाओगे ???? न जाने कितने दोगले चरित्रों के बेरहम शब्दो से गड़े जाओगे ,न जाने कितने कैमरो कि जगमगाती चुंधिया देने वाली रौशनी के बीच तुम्हारा भी जनाज़ा हर साल कुछ बे दिल ,पत्थर दिल अपने कंधे पे लादेंगे ,और तुमको शाम होते होते सब भूल जायेंगे।" स्नेहा से मैं सहमत या असहमत हूं ये इतर मसला है पर प्रभावित हूं कि  "स्नेहा के अपने विचार हैं पर मौलिक विचार हैं विचार मौलिक होने चाहिये पाज़िटिव होने चाहियें.. वरना आप की जिव्हा हिंसक पशु की मानिंद लपलपाती नज़र आएगी . आप क्या नज़र आएंगे आप स्वयं समझ सकते हैं"..
                                        बात आपको मिसफ़िट लग सकती है पर सचाई यही है कि हम बोलते तो हैं पर मौलिक चिंतन विहीन हैं कभी सोचना ज़रूर इस मसले पर...!!

Wow.....New

धर्म और संप्रदाय

What is the difference The between Dharm & Religion ?     English language has its own compulsions.. This language has a lot of difficu...