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दोस्तों सुनो जो अब तक न कह सका था..!!

                                                 मैं जानता हूं कि आज़ तुम झुका हुआ सर लेकर किस वज़ह से मेरे तक आ रहे हो  . सच आज तुम्हारे झुक जाने के लिये मैं बेहद खुश हूं. ऐसा नहीं है न ही मैं किसी किसी झूठे यक़ीन के साथ ज़िंदा हूं. हां बस इतना ज़रूर है कि तुमने मुझे बर्बाद करने के लिये जितने प्रयास किये सच मैं उतना ही मज़बूत हुआ केवल इसी लिये तुम्हारी आभारी हूं.   बेशक एक ज़िंदा एहसास लेकर हूं कि वो सुबह ज़रूर आएगी जो सुबह मुझे इर्द-गिर्द के अंधेरों से विमुक्त करेगी. पर तुम जो अंधेरों के संवाहक हो बेशक यही अंधेरा तुमको डसेगा यह सच है.                                 मुझे अभ्यास है पराजय का तुम्हैं अभ्यास नहीं है मुझे मालूम है कि तनिक सी पराजय  भी तुम्हारे लिये बेशक जान लेवा साबित होगी. पर जब अपने सीने के ज़ख्मों को " गिनता हूं देर रात तक", तब मुझे बस तुम्हारे षड़यंत्रों के चक्रव्यूह साफ़ साफ़ नज़र आ जाते हैं फ़िर भी दोस्तो मैं यक़ीन करो बायस नहीं हूं. यक़ीन करों तुम्हारा शिकार मैं तुम पर आक्रमण करने पर यक़ीन नहीं करता वरन तुमको आक्रामकता का शिकार होने से बचा लेने का हिम

मित्र जिसका विछोह मुझे बर्दाश्त नहीं

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                       ख़ास मित्र के लिए ख़ास पोस्ट प्रस्तुत है.. आप लोग चाहें इसे अपने ऐसे ही किसी ख़ास मित्र को सुनवा  सकते ....  Your browser does not support the audio element. ऐसे मित्रों का विछोह मुझे बर्दाश्त नहीं. आप को भी ऐसा ही लगता होगा.. चलिये तो देर किस बात की ये रहा मेरा मित्र जो नाराज़ है मुझसे यह एक मात्र तस्वीर है   इनके पास जिनका हार्दिक आभारी हूं.

सर्वहारा के बारे में सोचने की सनद और मेरा वो दोस्त

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साभार:  बारिश की खुशबू                   जी,सवाल सीधा सपाट उन लोंगों से है जिनके लिये जन-चिंतन वाग्विलास का साधन है. इस विषय को लेकर आप बस एक हुंकार भरिये और भीड़ से अलग थलग दिखिये इससे ज़्यादा इनकी और कोई मंशा नहीं. एक मित्र याद है कमसिनी ही कहूंगा कालेज के दौर की उम्र को जनवाद भाया सो वह मित्र मुझसे मिला. आकर्षित होना लाज़मी था एक आईकान की तलाश जो थी मुझे और उसकी बातों में वक्तव्यों में लय थी, कोई बात किसी दूसरी बात के बीच असंगत न लगती थी. बेहतरीन कविता लिखता था . उस समय वो क्षेत्रीय राजनैतिक दलों की परिस्थितियां देख रहा था. जब   केवल दो पार्टी का बोलबाला था और आपतकाल के बाद सब जुड़े एक हुए थे .भारतीय सत्ता पर काबिज़ हुए थे. जीं हां, तभी की बात कर रहा हूं जब राजनारायण ने गुड़ चना खाने की सलाह दी थी . मेरा वो मित्र उस समय आज़ की स्थितियों का बयान कर रहा था. उसके वक्तव्य आम आदमी से इतना क़रीब होते कि मन कहता बस “इस युवक में ही भारत बसता है.”         गंजीपुरा के साहू मोहल्ले वाली गली में हम लोग रूपनारायण जी के किराएदार थे. आगे बनी एक बिल्डिंग में मेरा