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अदभुत सोचते हैं पी नरहरि जी

नित नया करना सहज़ है लेकिन नित नया सोचना वो भी आम आदमी की मुश्किलों से बाबस्ता मुद्दों पर और फ़िर रास्ता निकाल लेना सबके बस में कहां. जितना मानसिक दबाव कलेक्टर्स पर होता है शायद आम आदमी उसका अंदाज़ा सहज नहीं लगा पाते होंगें. ऐसे में क्रियेटिविटी को बचाए रखना बहुत मुश्किल हो जाता है. किंतु कुछ सख्त जान लोग ऐसे भी हैं जो दबाव को अपनी क्रिएटिविटी के आधिक्य से मानसिक दबाव को शून्यप्राय: कर देने में सक्षम साबित हो जाते हैं. इनमें से कुछेक नहीं लम्बी फ़ेहरिस्त है.. मेरे ज़ेहन में इस क्रम में आई ए. एस. श्री पी. नरहरी की क्रियेटिविटि का प्रमाण प्रस्तुत है.