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मेरे बाबूजी खुश क्यों हैं !!

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आते ही सबसे दयनीय पौधे के पास गए (बाबूजी अपने  बेजुबान बच्चों से  बात करने आए ) दूसरे बच्चे की आसपास की साल-सम्हाल ही बाबूजी ने . थक भी तो जाते हैं बाबूजी फ़िर अगले ही पल मुस्कुराने लगते इन बीस गमलों में आयेंगी नन्ही जमात मेरे बाबूजी उन प्रतीकों में से एक हैं जो अपनी उर्जा को ज़िंदगी के उस मोड़ पर भी तरोताजा बनाए  रखने बज़िद हैं जहां लोग हताशा  के दुशाले ओढ़ लिया करते हैं.   कल ही बात है  अरविन्द भाई को बेवज़ह फोटोग्राफी के लिए बुलवाया बेवज़ह इस लिए क्योंकि न तो कोई जन्म दिन न कोई विशेष आयोजन न ब्लागर्स मीट यानी शुद्ध रूप से  मेरी इच्छा  की पूर्ती ! इच्छा  थी  कि बाबूजी  सुबह सबेरे की अपने गार्डन वाले बच्चों को कैसे दुलारते हैं इसे चित्रों में दर्ज करुँ कुछ शब्द जड़ दूं एक सन्देश दे दूं कि :-''पितृत्व कितना स्निग्ध होता है " हुआ भी यही दूसरे माले पर  उनका इंतज़ार उनके दूसरे बच्चे यानी नन्हे-मुन्ने पौधे  इंतज़ार कर रहे थे दादा नियत समय पर तो नहीं कुछ देर से ही आ सके आते ही सबसे दयनीय पौधे के पास गए उसे सहलाया फिर एक दूसरे बच्चे की आसपास की साल-सम्हाल