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26.9.15

पब्लिक सेक्टर , प्राइवेट सेक्टर और अब पर्सनल सेक्टर से हो सकता है विश्व के 1.3 बिलियन गरीबों का भला

मित्रो यह भाषण यथा प्राप्त प्रस्तुत है जिसका  विश्लेषण  मिसफिट के आगामी अंक में प्रस्तुत  किया जावेगा . 

आधुनिक महानायक महात्मा गांधी ने कहा था कि हम उस भावी विश्व के लिए भी चिंता करें जिसे हम नहीं देख पाएंगे। जब-जब विश्व ने एक साथ आकर भविष्य के प्रति अपने दायित्व को निभाया है, मानवता के विकास को सही दिशा और एक नया संबल मिला है।
सत्तर साल पहले जब एक भयानक विश्व युद्ध का अंत हुआ था, तब इस संगठन के रूप में एक नई आशा ने जन्म लिया था। आज हम फिर मानवता की नई दिशा तय करने के लिए यहां एकत्रित हुए हैं। मैं इस महत्वपूर्ण शिखर सम्मलेन के आयोजन के लिए महासचिव महोदय को ह्रदय से बधाई देता हूँ। एजेंडा 2030 का विजन महत्वाकांक्षी है और उद्देश्य उतने ही व्यापक हैं। यह उन समस्याओं को प्राथमिकता देता है, जो पिछले कई दशकों से चल रही हैं। साथ ही साथ यह सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरण के विषय में हमारी परिपक्व होती हुई सोच को भी दर्शाता है।
यह ख़ुशी की बात है कि हम सब गरीबी से मुक्त विश्व का सपना देख रहे हैं। हमारे निर्धारित लक्ष्यों में गरीबी उन्मूलन सब से ऊपर है। आज दुनिया में 1.3 बिलियन लोग गरीबी की दयनीय जिंदगी जीने के लिए मजबूर हैं। हमारे सामने प्रश्न केवल यह नहीं है कि गरीबों की आवश्यकताओं को कैसे पूरा किया जाये और न ही यह केवल गरीबों के अस्तित्व और सम्मान तक ही सीमित प्रश्न है। साथ ही यह हमारी नैतिक जिम्मेदारी मात्र है, ऐसा मानने का भी प्रश्न नहीं है। अगर हम सब का साझा संकल्प है कि विश्व शांतिपूर्ण हो, व्यवस्था न्यायपूर्ण हो, और विकास सतत हो। गरीबी के रहते यह कभी भी सम्भव नहीं होगा। इसलिए गरीबी को मिटाना हम सबका पवित्र दायित्व है।
भारत के महान विचारक पंडित दीनदयाल उपाध्याय के विचारों का केंद्र अन्त्योदय रहा है। UN के एजेंडा 2030 में भी अन्त्योदय की महक आती है। भारत दीनदयाल जी के जन्मशती वर्ष को मनाने की तैयारी कर रहा है, तब यह निश्चित ही एक सुखद संयोग है।
भारत एन्वायरमेंटल गोल के अंतर्गत क्लाइमेट चेंज और सस्टेनेबल कन्जंपशन को दिए गये महत्व का स्वागत करता हैं। आज विश्व आइसलैंड स्टेट्स की चिंता कर रहा है। ऐसे राष्ट्रों के भविष्य पर ध्यान केंद्रित करता है, यह स्वागत योग्य है। इनके इको सिस्टम पर अलग से लक्ष्य निर्धारण, मैं उसे एक अहम कदम मानता हूँ।
मैं ब्लू रिवॉल्यूशन का पक्षधर हूं, जिसमें हमारे छोटे- छोटे आइसलैंड राष्ट्रों की रक्षा एवं समृद्धि, सामुद्रिक संपत्ति का नयोचित उपयोग और नीला आसमान, ये तीनों बातें सम्मलित हैं। हम भारत के लोगों को लिए ये संतोष का विषय है कि भारत ने विकास का जो मार्ग चुना है, उसके और UN द्वारा प्रस्तावित सस्टेनेबल डेवलप गोल्स के बीच बहुत सारी समानताएं हैं। भारत जब से आजाद हुआ, तब से गरीबी से मुक्ति पाने का सपना हम सबने संजोया है। हमने गरीबों को सशक्त बनाकर गरीबी को पराजित करने का मार्ग चुना है। शिक्षा एवं स्किल डेवलपमेंट हमारी प्राथमिकता है। गरीब को शिक्षा मिले और उसके हाथ में हुनर हो, यह हमारा प्रयास है।
हमने निर्धारित समय सीमा में फाइनेंशियल इन्क्लूजन पर मिशन मोड में काम किया है। 180 मिलियन नए बैंक खाते खोले गए। यह गरीबों का सबसे बड़ा एम्पावरमेंट है। गरीबों को मिलने वाले लाभ सीधे खाते में पहुंच रहे है। गरीबों को बीमा योजनाओं का सीधे लाभ मिले, इसकी महत्वाकांक्षी योजना आगे बढ़ रही है।
भारत में बहुत कम लोगों के पास पेंशन सुविधा है। गरीबों तक पेंशन की सुविधा पहुंचे, इसलिए पेंशन योजनाओ के विस्तार का काम किया है। आज गरीब से गरीब व्यक्ति में गरीबी के खिलाफ लड़ाई लड़ने की उमंग जगी है। नागरिकों के मन में सपने सच होने का विश्वास पैदा हुआ है।
विश्व में आर्थिक विकास की चर्चा दो ही सेक्टर तक सीमित रही है। या तो पब्लिक सेक्टर की चर्चा होती है या प्राइवेट सेक्टर की चर्चा होती है। हमने एक नए सेक्टर पर ध्यान केंद्रित किया है और वह है पर्सनल सेक्टर। भारत के लिए पर्सनल सेक्टर का मतलब है इंडिविजुअल इंटरप्राइज, जिसमें माइक्रो फाइनेंस हो, इनोवेशन हो, स्टार्ट अप की तरह नया मूवमेंट हो।
सबके लिए आवास, बिजली, पानी, शिक्षा, स्वास्थ और स्वच्छता हमारी प्राथमिकता हैं। ये सभी एक गरिमामय जीवन के लिए अनिवार्य हैं। इन लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए एक ठोस योजना और एक निश्चित समय सीमा तय की गई है। महिला सशक्तिकरण हमारे विकास कार्यक्रमों का एक महत्वपूर्ण अंग है। जिसमें हमने बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओइसे घर-घर का मंत्र बना दिया है।
हम अपने खेतों को अधिक उपजाऊ तथा बाजार से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ बना रहे हैं। साथ ही प्राकृतिक अनिश्चितताओं के चलते किसानों के जोखिमों को कम करने के लिए अनेक कदम उठाये जा रहे हैं।
हम मैन्यफैक्चरिंग को रिवाइव कर रहे हैं। सर्विस सेक्टर में सुधार कर रहे हैं। इन्फ्रास्ट्रक्चर के क्षेत्र में हम अभूतपूर्व स्तर पर निवेश कर रहे हैं और अपने शहरों को स्मार्ट, सस्टेनेबल तथा जीवंत डेवलपमेंट सेंटर के रूप में विकसित कर रहे हैं। सम्रद्धि की ओर जाने का हमारा मार्ग सस्टेनेबल हो, इसके लिए हम कटिबद्ध है। इस कटिबद्धता का मूल निश्चित रूप से हमारी परम्परा और संस्कृति से जुड़ा होना है। लेकिन साथ ही यह भविष्य के प्रति हमारी प्रतिबद्धता को भी दिखाती है।
मै उस संस्कृति का प्रतिनिधित्व करता हूँ जहां धरती को मां कहते हैं और मानते हैं। वेद उद्घोष करते हैं-
माता भूमि: पुत्रो अहं पृथिव्या
ये धरती हमारी माता है और हम इसके पुत्र हैं।
हमारी योजनाएं महत्वाकांक्षी और उद्देश्यपूर्ण हैं, जैसे
·         अगले 7 वर्षों में 175 गीगावॉट रिन्यूबल एनर्जी की क्षमता का विकासएनर्जी इफिशिएंसी पर बलबहुत बड़ी मात्र में वृक्षारोपण का कार्यक्रम
कोयले पर विशेष टैक्स
परिवहन व्यवस्था में सुधार
शहरों और नदियों की सफाई
वेस्ट टू वेल्थ की मूवमेंट
मानवता के छठे हिस्से का सस्टेनेबल डेवलपमेंट समस्त विश्व के लिए तथा हमारी सुंदर वसुंधरा के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। निश्चित रूप से यह दुनिया कम चुनौतियों और व्यापक उम्मीदों वाली दुनिया होगी, जो अपनी सफलता को लेकर अधिक आश्वस्त होगी। हम अपनी सफलता और रिसोर्सेज दूसरों के साथ बांटेंगे। भारतीय परम्परा में पूरे विश्व को एक परिवार के रूप में देखा जाता है।
उदारचरितानाम तु वसुधैव कुटुंबकम
उदार बुद्धि वालों के लिए तो सम्पूर्ण संसार एक परिवार होता हैकुटुंब है
आज भारत, एशिया तथा अफ्रीका और प्रशांत महासागर से अटलांटिक महासागर में स्थित छोटे छोटे आइसलैंड स्टेट्स के साथ डेवलपमेंट पार्टनर के रूप में अपने दायित्व का निर्वहन कर रहा है।
सस्टेनेबल डेवलपमेंट सभी देशों के लिए राष्ट्रीय उत्तरदायित्व का विषय है। साथ ही उन्हें नीति निर्धारण के लिए विकल्पों की आवश्यकता होती है। आज हम यहां संयुक्त राष्ट्र में इसलिए हैं, क्योंकि हम सभी यह मानते हैं कि अंतरराष्ट्रीय साझेदारी अनिवार्य रूप से हमारे सभी प्रयासों के केंद्र में होनी चाहिए। फिर चाहे यह डेवलपमेंट हो या क्लाइमेट चेंज की चुनौती हो।
हमारे सामूहिक प्रयासों का सिद्धांत है कॉमन बट डिफरेंशिएटेड रिस्पॉसिबिलिटी।
अगर हम क्लाइमेट चेंज की चिंता करते हैं तो कहीं न कहीं हमारे निजी सुख को सुरक्षित करने की बू आती है। लेकिन यदि हम क्लाइमेंट जस्टिस की बात करते हैं तो गरीबों को प्राकृतिक आपदाओं में सुरक्षित रखने का एक संवेदनशील संकल्प उभरकर आता है।
क्लाइमेंट चेंज की चुनौती से निपटने में उन समाधानों पर बल देने की आवश्यकता है, जिनसे हम अपने उद्देश्यों को प्राप्त करने में सफल हो सकें। हमें एक वैश्विक जन-भागीदारी का निर्माण करना होगा, जिसके बल पर टेक्नोलॉजी, इन्नोवेशन और फाइनेंस का उपयोग करते हुए हम क्लीन और रिन्यूबल एनर्जी को सर्व सुलभ बना सकें। हमें अपनी जीवनशैली में भी बदलाव करने की आवश्यकता है, ताकि ऊर्जा पर हमारी निर्भरता कम हो और हम सस्टेनेबल कंजंप्शन की ओर बढ़े। साथ ही एक ग्लोबल एजूकेशन प्रोग्राम शुरू करने की आवश्यकता है, जो हमारी अगली पीढ़ी को प्रकृति के रक्षण एवं संवर्धन के लिए तैयार करे।
मैं आशा करता हूँ कि विकसित देश डेवलपमेंट और क्लाइमेट चेंज के लिए अपनी वित्तीय प्रतिबद्धताओं को पूरा करेंगे।
मैं यह भी आशा करता हूँ कि टेक्नोलॉजी फेसिलिटेशन मैकेनिज्म, टेक्नोलॉजी और इन्नोवेशन को विश्व के कल्याण का माध्यम बनाने में सफल होगा। यह मात्र निजी लाभ तक सीमित नहीं रह जाएंगे।
जैसा कि हम देख रहे हैं, दूरी के कारण चुनौतियों से छुटकारा नहीं है। सुदूर देशों में चल रहे संघर्ष और अभाव की छाया से भी वे उठ खड़ी हो सकती हैं। समूचा विश्व एक दूसरे से जुड़ा है, एक दूसरे पर निर्भर है और एक दूसरे से सम्बंधित है। इसलिए हमारी अंतरराष्ट्रीय सांझेदारिओं को भी पूरी मानवता के कल्याण को अपने केंद्र में रखना होगा। सुरक्षा परिषद समेत संयुक्त राष्ट्र में भी सुधार अनिवार्य है, ताकि इसकी विश्वसनीयता तथा औचित्य बना रह सके। साथ ही व्यापक प्रतिनिधित्व के द्वारा हम अपने उद्देश्यों की प्राप्ति अधिक प्रभावी रूप से कर सकेंगे।
हम एक ऐसे विश्व का निर्माण करें, जहां प्रत्येक जीव मात्र सुरक्षित महसूस करे, उसे अवसर उपलब्ध हों और सम्मान मिले। हम अपनी भावी पीढ़ी के लिए अपने पर्यावरण को और भी बेहतर स्थिति में छोड़ कर जाएं। निश्चित रूप से इससे अधिक महान कोई और उद्देश्य नहीं हो सकता। परन्तु यह भी सच है कि कोई भी उद्देश्य इससे अधिक चुनौतीपूर्ण भी नहीं है।
आज 70 वर्ष की आयु के संयुक्त राष्ट्र में हम सबसे अपेक्षा है कि हम अपने विवेक, अनुभव, उदारता, सहृदयता, कौशल एवं तकनीकी के माध्यम से इस चुनौती पर विजय प्राप्त करें।
मुझे दृढ़ विश्वास है कि हम ऐसा कर सकेंगे। अंत में मै सबके कल्याण की मंगल कामना करता हूं।
सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु: मा कश्चिद्दुःखभाग्भवेत्।।
सभी सुखी होंसभी निरोगी होंसभी कल्याणकारी होकिसी को भी किसी प्रकार का दु:ख न हो।
इसी मंगल कामना के साथ आप सब का बहुत बहुत धन्यवाद!


25.5.14

नरेंद्र मोदी जी और उनकी टीम को अग्रिम शुभकामनाऎं.


                      प्रधान मंत्री के रूप में श्री नरेंद्र दामोदर मोदी जी का व्यक्तित्व मानो उदघोषित कर रहा है  कि  शून्य का विस्फ़ोट हूं..!!  एक शानदार व्यक्तित्व जब भारत में सत्तानशीं होगा ही तो फ़िर यह तय है कि अपेक्षाएं और आकांक्षाएं उनको सोने न देंगीं. यानी कुल मिलाकर एक प्रधानमंत्री के रूप में सबसे पहले सबसे पीछे वाले को देखना और उसके बारे में कुछ कर देने के गुंताड़े में मशरूफ़ रहना ... बेशक सबसे जोखिम भरा काम होगा. बहुतेरे तिलिस्म और  ऎन्द्रजालिक परिस्थितियां निर्मित  होंगी. जो सत्ता को अपने इशारों पर चलने के लिये बाध्य करेंगी. परंतु भाव से भरा व्यक्तित्व अप्रभावित रहेगा इन सबसे ऐसा मेरा मानना है. 
                              शपथ-ग्रहण समारोह में आमंत्रण को लेकर मचे कोहराम के सियासी नज़रिये से हटकर देखा जावे तो साफ़ हो जाता है कि - दक्षेस राष्ट्रों में अपनी प्रभावी आमद को पहले ही झटके में दर्ज़ कराना सबसे बड़ी कूटनीति है. विश्व को भारत की मज़बूत स्थिति का संदेश देना भी तो बेहद आवश्यक था जो कर दिखाया नमो ने. सोचिये नवाज़ साहब को पड़ोसी के महत्व का अर्थ समझाना भी तो आवश्यक था यानी पहला पांसा ही सटीक अंक लेकर आया . 
                               इस बार भारतीय प्रज़ातांत्रिक रुढ़ियों एवम कुरीतियों पर जनता ने जिस तरह वोट से  हमला कर पुरानी गलीच मान्यताओं को  नेत्सनाबूत किया है उसे देख कर भारतीय आवाम का विकास की सकरात्मक दृष्टि के सुस्पष्ट संकेत मिले हैं साथ ही  प्रजातांत्रिक मान्यताएं  बेहद मज़बूत हुईं हैं . अब वक़्त है सिर्फ़ और सिर्फ़ राष्ट्र के बारे में सोचना जो भी करना राष्ट्र हित में करना. 
                              अब व्यक्ति और परिवार गौड़ हैं. समुदाय सर्वोपरि. चुनने वालों  की अपेक्षा है  नरेंद्र मोदी सरकार से आंतरिक स्वच्छता और बाह्य-छवि   का विशेष ध्यान रखा जावे. यद्यपि सत्ता मद का कारक होती है पर आत्मोत्कर्ष से सत्ता से अंकुरित मद को ऊगने से पूर्व ही मिटाया जा सकता है. मोदी जी से ये अपेक्षाएं तो हैं हीं. 
                भारतीय औद्योगिक घरानों को बढ़ावा देकर रोटी कपड़ा मकान  के लिये रोज़गार बढ़ाने के मौके देना सर्वोच्च प्राथमिकता हो . शिक्षा और चिकित्सा राज्य के अधीन एवम सस्ती हों. विकास का आधार भूखे को भीख देना किसी भी अर्थशास्त्रीय सिद्धांत का अध्याय नहीं है.. सरकार इस तरह की कोई योजना न लाए जिनसे भिखमंगों की संख्या में इज़ाफ़ा हो बल्कि उन कार्यक्रमों को लाना ज़रूरी है जिनकी वज़ह से रोज़गार पैदा हों .. लेकिन एक बात सत्य है कि  भारत में दो पवित्र कार्य व्यावसायिक दुष्चक्र में फ़ंस चुके हैं.. एक शिक्षा दूजी चिकित्सा... सरकार को इस पर लगाम कसनी ही होगी... 
               भारतीय आंतरिक शांति के लिये नक्सलवाद का समूल खात्मा, एक अहम चुनौती है. पूर्वोत्तर राज्यों में पनपते अलगाववादी प्रयास, के अलावा वे सारे बिंदु जो  आंतरिक शांति को क्षति पहुंचा रहे हैं को निशाने पर लेना ही होगा. भारतीय संविधान में दी गई कुछ रियायतों की समीक्षा भी एक महत्वपूर्ण बिंदू है. 
                  
श्री नरेंद्र मोदी जी और उनकी टीम  को अग्रिम शुभकामनाऎं.   

17.5.14

मोदी विजय पर एक ग़ैर सियासी टिप्पणी “सम्मोहक चाय वाला...!”

 गुजरात के बड़नगर रेल्वे-स्टेशन पर  एक चाय बेचने वाले का बेटा .जो खुद चाय बेचता.. शीर्ष पर जा बैठा भारतीय सांस्कृतिक आध्यात्मिक और धार्मिक आख्यानों में चरवाहे कृष्ण वनचारी राम.. को शीर्ष तक देखने वालों के लिये कोई आश्चर्य कदाचित नहीं . विश्व चकित है.. विरोधी भ्रमित हैं .. क्या हुआ कि कोई अकिंचन शीर्ष पर जा बैठा .. ! भ्रम था उनको जो मानते हैं.. सत्ता धनबल, बाहुबल और छल से पाई जाती है... ! क्या हुआ कि अचानक दृश्य बदल गए .. लोगों को क्या हुआ सम्मोहित क्यों हैं.. इस व्यक्ति का सम्मोहक-व्यक्तित्व सबको कैसे जंचा.. सब कुछ  ज़ादू सरीखा घट रहा था.. मुझे उस दिन आभास हो गया कि कुछ हट के होने जा रहा है.. जब उसने एक टुकड़ा लोहे का मांग लौह पुरुष की प्रतिमा के वास्ते चाही थी. संकेत स्पष्ट था ... एक क्रांति का सूत्रपात का जो एक आमूलचूल परिवर्तन की पहल भी रही है.
                    कितना महान क्यों न हो प्रेरक किंतु जब तक प्रेरित में ओज न हो तो परिणाम शून्य ही होना तय है. इस अभियान में मोदी जी के पीछे कौन था .... ये सवाल तो मोदी जी या उनके पीछे का फ़ोर्स ही बता सकता है किंतु मोदी में निहित अंतस के फ़ोर्स पर हम विचार कर सकते हैं कि मोदी में एक ज़िद थी खुद को साबित करने की. नरेंद्र मोदी जी ने बहुत आरोह अवरोह  देखे हैं.. चाय की केतली कप-प्लेट और चाय ले लो चाय की गुहारना उनके जीवन का पहला एवम महत्वपूर्ण पाठ्यक्रम था. दो वर्ष का हिमालय प्रवास आध्यात्मिक उन्नयन के लिये था जो उनका दूसरा महत्वपूर्ण पाठ्यक्रम कहा जा सकता है.  
तभी तो उनकी , उनके  अन्य प्रतिस्पर्धियों किसी तरह की तुलना गैरवाज़िव हो चुकी है. राहुल जी को निर्माण के उस कसाव से न गुज़रने की वज़ह से उनमें पूरे इलेक्शन कैंपेनिंग में सम्मोहित करने वाला भाव चेहरे पर नज़र न आया. न ही केज़रीवाल न कोई और भी ... आप वीडियो क्लिपिंग्स देखें तो नमो की संवादी शैली आपको मोहित करती लगेगी ऐसा असर तत्कालीन प्रधानमंत्री त्रय  श्रीयुत अटलबिहारी बाजपेई, चंद्रशेखर जी एवम  स्व.इंदिरा जी छोड़ा करते थे . मुझे अच्छी तरह याद है अटलजी, इंदिरा जी और श्री चंद्रशेखर जी जिनको सुनने जनमेदनी स्वेच्छा से उमड़ आती थी. डेमोक्रेटिक संदर्भ में देखा जावे तो – अच्छा, वक़्ता के वक्तव्य में केवल शब्द जाल का बुनकर हो ऐसा नहीं है. आवाम अपने लीडर में परिपक्क्वता देखना चाहती है . उसके संवादों में खुद का स्थान परखती है. उसका सामर्थ्य अनुमानती है तब चुनती है. मेरे इर्द-गिर्द कई लोग आते हैं जो चुगली करता है निंदा करता है उससे मेरा रिश्ता न जाने क्यों टूट जाता है जो कर्मशील होता है उसे पढ़ लेता हूं उसपर विश्वास करता हूं.. मुझ सरीखे करोड़ों होंगे जो कर्मशीलता को परखते होंगें .
कर्मशीलता का संबंध आत्मिक उत्कंठा से है जो भाव एवम बुद्धि की धौंकनी में तप कर जब शब्द बनती है और ध्वनि पर सवार होकर विस्तारित होती है तो एक सम्मोहन पैदा होता है. आरोप,चुगलियां, हथकण्डे, अनावश्यक (कु) तर्कों से सम्मोहन पैदा ही नहीं होता. प्रज़ातांत्रिक संदर्भों में सम्मोहन पैदा करने वाला केवल कर्मठ ही हो सकता है.  अन्य किसी में सामर्थ्य संभव ही नहीं. वक्ता के रूप में मैने भी सैकड़ों बार देखा है श्रोताओं को सम्मोहित करना आसान नहीं . इसके लिये वक्तव्य के कंटेंट में फ़ूहड़ता और मिथ्या अस्वीकार्य कर दी जाती है. मुझे याद नहीं कि इंदिरा जी, बाजपेई जी, चंद्रशेखर जी, के भाषणों में लांछनकारी शब्द रहे थे. उनके संवाद शांत और अनुशासित हुआ करते थे. अटल जी बोलते तो एक एक शब्द अगले शब्द के प्रति जिग्यासु बना देता था. और फ़िर शब्दावली जब पूरा कथन बनती कथन जब पूरा भाषण बनते तो पांव पांव घर लौटते पूरा भाषण मानस पर अंकित हो जाता था. ऐसा लगता था कि किसी राजनीतिग्य को नहीं किसी विचारक को सुन कर लौट रहा हूं. अस्तु कर्म अनुशीलन और चिंतन से ओतप्रोत अभिव्यक्ति का सम्मोहन नमो ने बिखेरा और इसी फ़ोर्स ने एक विजय हासिल की है... आप मेरी राय से असहमत भी हो सकते हैं .. पर मेरी तो यही राय है.

बता दो.. शून्य का विस्फ़ोट हूं..!!

दूरूह पथचारी 
तुम्हारे पांवों के छालों की कीमत
अजेय दुर्ग को भेदने की हिम्मत 
को नमन... !!
निशीथ-किरणों से भोर तक 
उजाला देखने की उत्कंठा ….!
सटीक निशाने के लिये तनी प्रत्यंचा ...!!
महासमर में नीचपथो से ऊंची आसंदी
तक की जात्रा में लाखों लाख

विश्वासी जयघोष आकाश में 
हलचल को जन्म देती
यह हरकत जड़-चेतन सभी ने देखी है
तुम्हारी विजय विधाता की लेखी है.. 
उठो.. हुंकारो... पर संवारो भी 
एक निर्वात को सच्ची सेवा से भरो
जनतंत्र और जन कराह को आह को 
वाह में बदलो...
**********
सुनो,
कूड़ेदान से भोजन निकालते बचपन 
रूखे बालों वाले अकिंचन. 
रेत मिट्टी मे सना मजूरा 
नर्मदा तट पर बजाता सूर बजाता तमूरा
सब के सब
तुम्हारी ओर टकटकी बांधे
अपलक निहार रहे हैं....
धोखा तो न दोगे 
यही विचार रहे है...!
कुछ मौन है
पर अंतस से पुकार रहे हैं..
सुना तुमने...
वो मोमिन है.. 
वो खिस्त है.. 
वो हिंदू है...
उसे एहसास दिला दो पहली बार कि 
वो भारतीय है... 
नको हिस्सों हिस्सों मे प्यार मत देना
प्यार की पोटली एक साथ सामने सबके रख देना 
शायद मां ने तुम्हारे सर पर हाथ फ़ेर
यही कहा था .. है न.. 
चलो... अब सैकड़ों संकटों के चक्रव्यूह को भेदो..
तुम्हारी मां ने यही तो कहा था है न..!!
मां सोई न थी जब तुम गर्भस्त थे..
तुमने सुना था न.. व्यूह-भेदन तरीका
तभी तो कुछ द्वारों को पल में नेस्तनाबूत कर दिया तुमने
विश्व हतप्रभ है...
कौन हो तुम ?
जानना चाहता है.. 
बता दो.. शून्य का विस्फ़ोट हूं
जो बदल देगा... अतीत का दर्दीला मंज़र...
तुम जो विश्वास हो
बता दो विश्व को ...
कौन हो तुम.... !!
कह दो कि -पुनर्जन्म हूं.. शेर के दांत गिनने वाले का....
***********
चलना ही होगा तुमको 
कभी तेज़ कभी मंथर
सहना भी होगा तुमको 
कभी बाहर कभी अंदर
पर 
याद रखो
जो जीता वही तो है सिकंदर 
·        गिरीश बिल्लोरे मुकुल


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