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शनिवार, अक्टूबर 22, 2016

रेडिफ डॉट कॉम की शरारत

इन दिनों वाट्सएप नामक सन्देश प्रसारक पर गीता को राष्ट्रीय ग्रन्थ घोषित कराने की मुहीम जारी कुछ लोग कह रहे हैं ये कई दिनों से जारी है. सुधिजन जानिये ये सन्देश क्या है .......... 
मुस्लिमों ने गीता के खिलाफ 60% वोट डाला है और हिन्दुओ का केवल अभी तक 39% ही पड़ा है । 
गीता को राष्ट्र ग्रन्थ बनाना हैं लिंक में
जाकर वोटिंग करो ।
  अब का आकड़ा yes 53%, no49%, सब हिन्दु वोट करेंगे तो "YES 80%" तक हो सकता है । ज्यादा से ज्यादा फोर्वर्ड करके वोटिंग करवाए । 
गीता को राष्ट्र ग्रंथ बनवाने के लिए वोटिंग हो रही है आप इस वेबसाईट पर जा कर yes पर क्लिक करें ।  
http://m.rediff.com/news/vreport/sushma-wants-gita-as-national-book-do-you/20141208.htmइस लिंक को अतिशीघ्र share करें
                     आपको भ्रमित करने वालों को यह नहीं मालूम की अधिकाँश वोटर वही होंगे जिसे गीता का एक मात्र श्लोक एक हिस्सा मात्र याद है... ''‘​​कर्मण्येवाधिकारस्ते मां फलेषु कदाचन’ . शेष गीता से उसके मांस का दूर दूर तक कोई लेना देना नहीं . 

              "और फिर गीता जैसे स्वयमेव सिद्ध  महान ग्रन्थ की श्रेष्ठता वोटर करेंगे ? इससे बड़ा मूर्खता पूर्ण कृत्य और क्या होगा" 
                                    ये कहानी वाट्सएप  पर आए दिन आ रही है आपने भी देखा ही होगा न ?  आस्था को लेकर आस्थावान व्यक्ति के मन में  धार्मिक आस्था अचानक तेज़ी से जागृत  हो जाती है... कोई  सामान्य व्यक्ति इसके पीछे के व्यावसायिक षडयंत्र के बारे में कुछ समझ सोच नहीं पाता . बावजूद इसके  कि वह जानता है कि उसके विश्वास का संचार संसाधन मुहैया कराने वाली कम्पनियां कितने शातिराना तरीके से संवेदनाओं के साथ खेलतीं हैं . 
                           वेद,  गीता, रामायण, कुरआन, बाइबल अपने अपने विश्वासों के अनुसार  विश्व के महान ग्रन्थ हैं.  उसके लिए वोटिंग करा के स्पर्धा कराना एक कुटिल एवं हास्यास्पद कार्य है । मैं तो खुले तौर पर कहूंगा की-  "सामाजिक समरसता के विरुद्ध रेडिफ डाट कॉम का षडयंत्र है ।" 
                         वोट डलवाकर चुनाव जीते जा सकतें हैं पर आध्यात्मिक नज़रिए से वोटिंग के ज़रिये आस्था पर आघात करना केवल अपनी ओर अधिकाधिक ग्राहकों को आकर्षित करने के अलावा और कुछ नहीं. इस कार्य से न केवल रेडिफ का वरन वाट्सएप और शायद अन्य सोशल मीडिया पर भी ट्रैफिक बढ़ रहा है. जो इनके व्यापारिक उद्देश्यों की पूर्ती में सहायक है.
       यानि 
सत्य ये
है कि *रेडिफ डॉट कॉम* का अपनी प्रयास यह है कि  हिंदुओं और मुस्लिमों को बांटा जाए फिर आस्था के नाम पर  आकर्षित कर वेबसाईट का ट्रैफिक बढाया जावे जिससे करोड़ों डालर्स का मुनाफ़ा हो.  । 


                    जनता को समझाना ज़रूरी है कि इस प्रकार की गतिविधियों से   सामाजिक समरसता और वैचारिक उत्तेजना मात्र बढ़ेगी जो उन्माद के लिए पर्याप्त कारण है । 

                            वास्तव में इस प्रकार की  शुद्ध रूप से व्यावसायिक प्रक्रिया है ।
अब आप समझदार हैं आपको चिंतन करना ही होगा यही सनातनी सत्य है .......... 


गिरीश बिल्लोरे मुकुल


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