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जी हाँ हुजूर, मैं गीत बेचता हूँ ।

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स्वर्गीय भवानी दादा का यह गीत उनके जन्म  दिवस पर  पूर्णिमा जी के प्रयास से भवानी दादा की स्मृतियां  '' अनुभूति पर '' उपलब्ध है मेरी आवाज़ में सुनिए गीत फरोश  __________________________________________________________ Go To FileFactory.com ____________________________________________________________ मैं तरह-तरह के गीत बेचता हूँ ; मैं क़िसिम-क़िसिम के गीत बेचता हूँ । जी, माल देखिए दाम बताऊँगा, बेकाम नहीं है, काम बताऊंगा; कुछ गीत लिखे हैं मस्ती में मैंने, कुछ गीत लिखे हैं पस्ती में मैंने; यह गीत, सख़्त सरदर्द भुलायेगा; यह गीत पिया को पास बुलायेगा । जी, पहले कुछ दिन शर्म लगी मुझ को पर पीछे-पीछे अक़्ल जगी मुझ को ; जी, लोगों ने तो बेच दिये ईमान । जी, आप न हों सुन कर ज़्यादा हैरान । मैं सोच-समझकर आखिर अपने गीत बेचता हूँ; जी हाँ हुजूर, मैं गीत बेचता हूँ । यह गीत सुबह का है, गा कर देखें, यह गीत ग़ज़ब का है, ढा कर देखे; यह गीत ज़रा सूने में लिखा था, यह गीत वहाँ पूने में लिखा था । यह गीत पहाड़ी पर चढ़ जाता है यह गीत बढ़ाये से ब