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कहानी : आचार्यं चन्द्रद्मोहन जैन की लेखक श्री सुरेंद्र दुबे

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          लेखक : श्री सुरेन्द्र दुबे  ओशो की समालोचना के मुख्य बिन्दु कौन से हैं? पहला-ओशो। दूसरा- ओशो की देशना। तीसरा-ओशो कम्यून। चौथा-ओशो के अनुयायी। ओशो स्वयं के विरोधाभासी वक्तव्यों और आचरण की वजह से आलोचना के केन्द्र-बिन्दु हैं। वे एक तरफ अपने पुनर्जन्म का किस्सा बयां करते हुए विवाहित आदर्श दम्पति के यहाँ नया जन्म लेने का रहस्य खोलते हैं, वहीं दूसरी तरफ अपनी देशना में विवाह और परिवार व्यवस्था की कटु निंदा करते हैं। साथ ही ध्यान-उत्सव केन्द्रित उन्मुक्त-प्रेमालाप स्थली अर्थात कम्यून-सिस्टम की वकालत करते हैं। जहाँ सब सबकी और सब सबके होते हैं। किसी भी पल मेल-मुलाकात का स्तर आध्यात्म के शिखर से स्खलित करके, साधक को चौपाया बना सकता है। तुर्रा ये कि इस तरह दमनविहीन तरीके से कामऊर्जा को रामऊर्जा में रूपांतरित किया जा सकता है। मेरी दृष्टि में ओशो का पहले तो आदर्श दम्पति की संतान होने और फिर समाज को गलत राह पर ले जाने जैसा अनुचित रवैया सर्वथा दोमुखी व विरोधाभासी होने के कारण आलोचनीय है। इसी तरह बाल्यकाल से वे धर्मों के पाखंड की पोल खोलने वाला व्यवहार करते रहे और अंतत: भली-भाँति