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रविवार, अप्रैल 24, 2011

बस एक बार बाबा की विभूती चखो तो समझ जाओगे तुम क्या हो बाबा क्या हैं

आज़ से ३१ वर्ष एक माह पूर्व की वो सुबह हां याद आया  मार्च १९८० के एक गुरुवार  एक सुबह यानी  चार से पांच के बीच का वक़्त था , जाग तो चुका था मैं साढ़े तीन बजे से , लग भी रहा था कि लगा कि आज़ का दिन बहुत अदभुत है. था भी, मुझे नहीं मालूम था कि आज़ क्या कुछ घटने  वाला है. गंजीपुरा के साहू मोहल्ले वाली गली में अचानक एक समूह गान की आवाज़ गूंजती है बाहर दरवाजा खोल के देखता हूं बाबा के भक्तों की टोली  अपनी प्रभात फ़ेरी में  नगर-संकीर्तन करती हुई निकलती है. श्री कृष्ण गोविन्द हरे मुरारी हे नाथ नारायण वासुदेवा.. जैसे कई भजन पूरे पथ संचलन में.  गाते जा रहे थे भक्त गण .. साई कौन है ? इस पड़ताल में लग गया मैं. मार्च अस्सी की मेट्रिक की परीक्षा के बाद पड़ताल करना शुरु किया. वैसे मेरे कई मित्र जैसे अविजय उपाध्याय, शेषाद्रि अय्यर, जितेंद्र जोशी (आभास-जोशी के चाचा मेरे मौसेरे भाई), मुकुंद राव नायडू ,सत्य साई सेवा समिति की  बाल विकास के विद्यार्थी थे.बाबा के बारे में इतना जानता था कि वे मेरे नाना जी के आध्यात्मिक गुरु हैं. उनके घर से समिति के काम चला करते थे.  करंजिया के श्रृंखला बद्ध  आलेखों ने मेरे  किशोर मन पर एक नकारात्मक छवि बना दी थी बाबाओं के प्रति. उन में  साई प्रमुख थे.मैं बाबा का विरोधी हो गया मन ही मन जैसे बाबा ने कुछ छीन लिया हो मेरा . 
 फ़िर एक दिन नानाजी मिलने जब गया तो नाना जी कम्बलों को व्यवस्थित कर रहे थे. मैने पूछा :-"नानाजी ये क्यों. इत्ते सारे कम्बल क्यों खरीदे "
नानाजी ने बताया आज़ रात को हम लोग बस स्टैंड, रेल्वे-स्टेशन, सड़क किनारे जहां भी कोई ठण्ड में ठिठुरता , "नारायण" मिलेगा उसे ओढ़ा देंगे.
नारायण..?
हां, नारायण जो दु:खी , अकिंचन है उसमें भगवान है, वही भगवान है.. उसकी सेवा ही तो प्रभू की सेवा है. 
         जिस गुरु के इस दिशा दर्शन का इतना अदभुत असर वो तो महान होगा ही. बस जरा सा आकर्षण पैदा हुआ. पर विश्वास न विश्वास अभी भी न जमा सका. मुझ पर स्वामी शुद्धानंद के "प्रपंच अध्यात्म योग" का असर था.   "प्रपंच अध्यात्म योग" और " सत्यसाई  के चमत्कार" दो अलग अलग बात थी मेरे लिये. मुझे चमत्कारों में भरोसा न था. मुझ पर यह विचार हावी था कि बाबा बस चमत्कार करते हैं. वो तो कोई भी ज़ादूगर कर देता है. बाबा की पड़ताल करनी थी सो सोचा कि बिना इनके चेलों के बीच घुसे बाबा को जानना असम्भव है. रेल्वे के राज़ भाषा अधिकारी श्री आर बी उपाध्याय के कछियाना स्थित निवास पर जाना आना शुरु कर दिया.    
                                 मुझे मालूम था कि मेरी आस्था बाबा के लिये तब तक न जागेगी जब तक  कि उनके सामाजिक पहलू का अंवेषण कर न लूंगा . "आस्थावान होना और पिछलग्गू होना अलग अलग तथ्य हैं. नेता गण भली भांति जानते हैं. नहीं जानते हों तो अब जानलें. 
       हां तो हर शनिवार भजन में जाना और  ये देखना कि कौन कौन आता है क्या क्या करता है. भजन में एक प्रोफ़ेसर राव साहब आते थे, पता नही कितने अफ़सर, कितने क्लर्क, कितने मास्टर, कितने गरीब जो सिर्फ़ बाबा के प्रति आराधना के स्वर बिखेरते थे और भजन के बाद विभूति प्रसाद मिलता था. मैं बेमन से विभूती लेता था . दूसरे ही भजन में किसी ने कानों में कहा –“बस एक बार बाबा की विभूती चखो तो समझ जाओगे तुम क्या हो बाबा क्या हैं ?”
आर बी उपाध्याय जी के घर जिनको हम चाचाजी कहते हैं के घर भजन में. इनका एक बेटा है अभिनव  (अभिनव उपाध्याय)जिसे आपने देखा होगा जगजीत सिंह जी के कंसर्ट में तबला बजाते हुए. उसकी तबले की थाप वाह जैसे गंधर्व प्रभू की आराधना में संगीत दे रहे हों. मेरी  उम्र से कुछ कम उम्र का युवा होता एक दिव्य चेहरा  जो प्रोफ़ेसर राव के बेटे थे भजन में आया करता थे.. विचार और वाणी की मृदुलता ने मुझे इन युवाओं की ओर आकर्षित किया.ये सारे लोग मौन साधना करते थे कर भी रहे हैं. पर कभी किसी प्रचार का हिस्सा नहीं बनते.  तभी तो  मुझे लगा कि बाबा ने जो कार्य साथ लिये हैं  वो विश्व को बदल सकतें हैं. आंध्र-प्रदेश में वाटर प्रोजेक्ट जो भारत की किसी भी सरकारी व्यवस्था में सहजता से होना सम्भव नहीं था . पुट्टपर्थी का चिकित्सालय, यूनिवर्सिटी, उन सबसे बढ़कर वे भक्त मुझे लुभाने लगे जो सेवा तो कर देतें हैं हर किसी ज़रूरत मंद की पर कभी भी प्रचार का हिस्सा न बनने देते "सेवा को". यही तो जानना चाहता था. बस एक दिन मैने भी किसी के उकसाने पर गा दिया 
"विभूती सुंदर साई नाथ सत्य साईं नाथ 
 साई नाथ साई नाथ सत्य साई नाथ..."
     कभी भी बाबा से न मिला कभी पर्ती नहीं गया पर बाबा  मुझे हमेशा मेरे साथ हैं. मुझे यक़ीन है.यक़ीन की कई वज़ह हैं. उनमें से बाबा से हुए आत्मिक संवाद . जिनको यदि कभी जरूरी हुआ तो अवश्य प्रस्तुत करूंगा. पर यह सच है कि १४ मार्च २००९ को जब "बावरे-फ़क़ीरा" विमोचित हुआ तब अपना भाषण देने जितेंद्र जोशी जी  ने मुझे आहूत किया तब बोलने के लिये जो तय शुदा एजेण्डा लेकर मंच पर गया उससे भिन्न कुछ कहा मैने ... सारा हाल स्तब्ध चकित सुन रहा था पिन ड्राप सायलेंस था तब  मुझे मालूम है कि मैं नहीं एक कोई और था, साथ जो बोल रहा था सामने बैठे मूर्धन्य, आत्मिक जन, परिजन,मित्र, पता नहीं कितने अपनी आंखों से अमृत गिरा रहे थे.  




  • भगवान की सेवा क्या है:-

  1. बच्चों  की जिज्ञासा शांत  करना 
  2. भूखे को सम्मान से आहार देना
  3. रोगी की सेवा करना 
  4. अपने यश पर घमंड न करना
  5. सेवा और दान का बखान न करना 
  6. अपने धर्म का त्याग न करना
  7. दूसरे धर्म का आदर करना 

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