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रविवार, अक्तूबर 30, 2011

तरक्क़ी और गधे : गिरीश बिल्लोरे मुकुल


               हमने सड़क पर एक बैसाख नन्दन का दूसरे बैसाख नन्दनों का वार्तालाप सुना ..आपने सुना सुना भी होगा तो क्या खाक़ समझेंगे आप आपको समझ में नहीं आई होगी क्योंकि अपने भाई बन्दों की भाषा हम ही समझ सकतें हैं । 
 आप सुनना चाहतें हैं..........?
सो बताए देता हूँ हूँ भाई लोग क्या बतिया रहे थे :
पहला :-भाई ,तुम्हारे मालिक ने ब्राड-बैन्ड ले लिया ..?
दूजा :- हाँ, कहता है कि इससे उसके बच्चे तरक्की करेंगें ?
पहला :-कैसे ,
दूजा :- जैसे हम लोग निरंतर तरक्की कर रहे हैं
पहला :-अच्छा,अपनी जैसी तरक्की
दूजा :- हाँ भाई वैसी ही ,उससे भी आगे
पहला :-यानी कि इस बार अपने को वो पीछे कर देंगें..?
दूजा :-अरे भाई आगे मत पूछना सब गड़बड़ हो जाएगा
पहला :-सो क्या तरक्की हुई तुम्हारे मालिक की
दूजा :- हाँ,हुई न अब वो मुझसे नहीं इंटरनेट के ज़रिए दूर तक के अपने भाई बन्दों से बात करता है। सुना है कि वो परसाई जी से भी महान हो ने जा रहा है आजकल विश्व को व्यंग्य क्या है हास्य कहाँ है,ब्लॉग किसे कहतें हैं बता रहा है।
पहला :- कुछ समझ रहा हूँ किंतु इस में तरक्की की क्या बात हुई ?
दूजा :- तुम भी, रहे निरे इंसान के इंसान .........!! अरे बुद्धू बताना भी तो तरक्की है.. तरक्क़ी..
पहला :-अरे हां पर क्या भाई उस दिन भीड़ काहे की थी बगीचे में हम चर न पाए.. 
दूजा :-अरे.. वो अन्ना जी का समर्थन करने वाले लोग थे तुमको बताया था न..?
पहला :- साला भूखों मर गए हम..
दूजा :-   तो अन्ना के लिये ह इतना त्याग नही कर सकते क्या..?
पहला :- हमारे त्याग करने से क्या भ्रष्टाचार बंद होगा
दूजा :-   तो क्या उनके से हुआ ..? नहीं न पर एक शुरुआत तो हुई न..!!
पहला :-  हां हुई.. उस दिन धोबन बोली थी धोबी से सुनो अन्ना का ज़माना किसी भी दिन आ सकता है.. ईमानदारी से कपड़े धोना
दूजा :-  धोबी का बोला..?
पहला :- का बोलेगा बोला अरी भागवान..निरी मूरख है तू.. अगले महीने दीवाली है सेठ ने नकली मावा मंगवा लिया, सेठों ने   टेक्स छिपाने बड़ी बड़ी गिफ़्ट खरीदी है.. सब सरकारी दफ़्तर वालों के लिये है.. जिसने ज़ादा खटर-पटर की उसको  नाप देंगें इस कानून से अरी पागल तू तो बाई साब की साड़ी में वोईच्च कलफ़ मार जो सस्ता वाला मैं लाया हूं..तभी   तो  अपना  बेटा भी तो इंजिनियर बनेगा . पागल है समझती नहीं अरे सब जैसा था वैसा ही चलेगा तू अपना काम कर दुनियां जहान की बात सोच सोच कर अपने घुटनों को काहे तकलीफ़ देती है.
               धोबी बोला तो  साफ़ बात खुद हरिश्चंद्र भी आ जाएं तो कुछ न बदलेगा बस तरीकों को छोड़ के सब एक दूसरे से लगे हैं.. यही विकास है इसे तरक्क़ी कहते हैं ये बात वो गधे तक बेहतर तरीके से समझ गये हैं.. पर आप लोग.. चुप क्यों हो बोलो न .....
             आप क्या बोलेंगे जी कुछ भी बोल नहीं पाएंगे अरे आप काहे बोलो जी. बोलने वाले अटे पड़े हैं दुनियां में. कोई ज़रूरी है कि सब बोलें तुम तो केवल पढ़ो उनके बोले हुए को.. जो  अखबार में है.. और्   सुनो जो  सबसे तेज़ चैनलों पे   तोते की तरह रटाया जा रहा  समझो अपने जीने के तौर - तरीक़े.

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