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तरक्क़ी और गधे : गिरीश बिल्लोरे मुकुल

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                  हमने सड़क पर एक बैसाख नन्दन का दूसरे बैसाख नन्दनों का वार्तालाप सुना ..आपने सुना सुना भी होगा तो क्या खाक़ समझेंगे आप   आपको समझ में नहीं आई होगी क्योंकि अपने भाई बन्दों की भाषा हम ही समझ सकतें हैं ।     आप सुनना चाहतें हैं.......... ? सो बताए देता हूँ हूँ भाई लोग क्या बतिया रहे थे : पहला :-भाई , तुम्हारे मालिक ने ब्राड-बैन्ड ले लिया .. ? दूजा :- हाँ , कहता है कि इससे उसके बच्चे तरक्की करेंगें ? पहला :-कैसे , दूजा :- जैसे हम लोग   निरंतर   तरक्की कर रहे हैं पहला :-अच्छा , अपनी जैसी तरक्की दूजा :- हाँ भाई वैसी ही , उससे भी आगे पहला :-यानी कि इस बार अपने को वो पीछे कर देंगें.. ? दूजा :-अरे भाई आगे मत पूछना सब गड़बड़ हो जाएगा पहला :-सो क्या तरक्की हुई तुम्हारे मालिक की दूजा :- हाँ , हुई न अब वो मुझसे नहीं इंटरनेट के ज़रिए दूर तक के अपने भाई बन्दों से बात करता है। सुना है कि वो परसाई जी से भी महान हो ने जा रहा है आजकल विश्व को व्यंग्य क्या है हास्य कहाँ है , ब्लॉग किसे कहतें हैं बता रहा है। पहला :- कुछ समझ रहा हूँ किंतु इस में तरक्की की क्या बात हुई