मेलोडी ऑफ लाइफ क्या है ?
इसे समझने के लिए बहुत बड़ा दिल चाहिए। पर मेरे पास बहुत बड़ा दिल नहीं है तब मैं किस तरह जीवन के आल आपको सुन सकूंगा या उस अलाप की अनुगूंज का आभास कर सकूंगा। दरअसल मेलोडी ऑफ लाइफ वीतरागियों को हासिल होती है सबको यह सब हासिल कैसे हो सकता है?
अक्सर हम बड़े बुजुर्गों को टोका टाकी करते हुए देखते हैं। पर इग्नोर इसलिए करते हैं कि वह उम्र के उस पड़ाव पर है जहां से उन्हें नए सिरे से कोई शिक्षा नहीं दी जा सकती। देना भी नहीं चाहिए वे मां बाप भाई मित्र या कोई भी हो सकता है।
परंतु इसका अर्थ यह नहीं की ऐसी स्थितियां दिल को कचोटती ना हो ।
जीवन आनंद का उत्सव है जीवन प्रेम का पंथ है। जीवन शोषण का और शोषित करने का मौका नहीं है।
मैं अगर ईश्वर वादी हूं तो मुझे अपने साथ बाकी सब को ईश्वर का अंश मानना ही होगा। पर मैं ऐसा नहीं करता हूं अपने आपको तो ईश्वर का अंश मान लेता हूं परंतु दूसरे को नहीं। ऐसी स्थिति में दूसरों गलतियां कमियां और उससे उत्पन्न विशाद मन पर हावी हो जाता है। मन की आज्ञा अनुसार हम वैसे ही कर्म करने लगते हैं। और यह कर्म हमें उत्तेजना एवं क्रोध यहां तक कि हिंसा की ओर ले जाते हैं। और यह नकारात्मक भाव मेरे डीएनए का स्वरूप ही बदल देता है। और फिर क्रोध और हिंसा भाव वंशानुगत पीढ़ियों तक जिंदा रहता है। मुझे विश्वास है सदगुरु ने कहा था कि शरीर याद रखता है उन सब बातों को जो आपके जन्म के पूर्व ही हैं? मैंने सोचा कि ऐसा कैसे हो सकता है और फिर यह विचार कायम हुआ कि सद्गुरु बिल्कुल सही कह कहते हैं
वास्तव में हमारी मानस में जो भी घट रहा होता है उसका संचय हमारे डीएनए में आसानी से हो जाता है। और वही सब हम अपनी आने वाली पीढ़ियों को जाने-अनजाने सौंप देते हैं। चलिए विचार करते हैं इस पर फिर देखते हैं कि मन का *मनका* कितना परिष्कृत हुआ है।
*निरन्तर जारी...*
*चिंतन*
*मेलोडी ऑफ लाइफ क्या है ?*
इसे समझने के लिए बहुत बड़ा दिल चाहिए। पर मेरे पास बहुत बड़ा दिल नहीं है तब मैं किस तरह जीवन के आल आपको सुन सकूंगा या उस अलाप की अनुगूंज का आभास कर सकूंगा। दरअसल मेलोडी ऑफ लाइफ वीतरागियों को हासिल होती है सबको यह सब हासिल कैसे हो सकता है?
अक्सर हम बड़े बुजुर्गों को टोका टाकी करते हुए देखते हैं। पर इग्नोर इसलिए करते हैं कि वह उम्र के उस पड़ाव पर है जहां से उन्हें नए सिरे से कोई शिक्षा नहीं दी जा सकती। देना भी नहीं चाहिए वे मां बाप भाई मित्र या कोई भी हो सकता है।
परंतु इसका अर्थ यह नहीं की ऐसी स्थितियां दिल को कचोटती ना हो ।
जीवन आनंद का उत्सव है जीवन प्रेम का पंथ है। जीवन शोषण का और शोषित करने का मौका नहीं है।
मैं अगर ईश्वर वादी हूं तो मुझे अपने साथ बाकी सब को ईश्वर का अंश मानना ही होगा। पर मैं ऐसा नहीं करता हूं अपने आपको तो ईश्वर का अंश मान लेता हूं परंतु दूसरे को नहीं। ऐसी स्थिति में दूसरों गलतियां कमियां और उससे उत्पन्न विशाद मन पर हावी हो जाता है। मन की आज्ञा अनुसार हम वैसे ही कर्म करने लगते हैं। और यह कर्म हमें उत्तेजना एवं क्रोध यहां तक कि हिंसा की ओर ले जाते हैं। और यह नकारात्मक भाव मेरे डीएनए का स्वरूप ही बदल देता है। और फिर क्रोध और हिंसा भाव वंशानुगत पीढ़ियों तक जिंदा रहता है। मुझे विश्वास है सतगुरु ने कहा था कि शरीर याद रखता है उन सब बातों को जो आपके जन्म के पूर्व ही हैं? मैंने सोचा कि ऐसा कैसे हो सकता है और फिर यह विचार कायम हुआ कि सद्गुरु बिल्कुल सही कह कहते हैं
वास्तव में हमारी मानस में जो भी घट रहा होता है उसका संचय हमारे डीएनए में आसानी से हो जाता है। और वही सब हम अपनी आने वाली पीढ़ियों को जाने-अनजाने सौंप देते हैं। चलिए विचार करते हैं इस पर फिर देखते हैं कि मन का *मनका* कितना परिष्कृत हुआ है।
*निरन्तर जारी...*
*मेलोडी ऑफ लाइफ क्या है ?* (द्वितीय सोपान)
प्रेम ही संसार नीव है। स्वामी शुद्धानंद नाथ जी की इस एक पंक्ति मैं जीवन का रहस्य छुपा हुआ है। प्रेम में अपेक्षा और उपेक्षा जो नींबू का रस या टाटरी का प्रयोग करना प्रेम के मूल तत्व को विघटित कर देता है। कुछ दिनों पूर्व की घटना है गली में एक कुत्तिया अपने कुछ बच्चों के साथ आई। मोहल्ले में एक शिक्षक था जो निजी तौर पर कोचिंग क्लास चलाता था। उसके मन में करुणा भाव उन्हें देखकर अचानक संचारित हो गया। उसने उन बच्चों और उस कुतिया को अपने आवास स्थल पर संरक्षण दे दिया। और उनकी सेवा करने लगा। इस बात का ज्ञान जब हम सबको हुआ तो हमने देखा कि हमारी भतीजी ने उस करुणा को विस्तार दे दिया। वर्क फ्रॉम होम करते हुए बिटिया ने कुछ समय उनकी सेवा सुश्रुषा के लिए निकाला। उन पर नजर रखी। गंभीरता से देखभाल करने लगी।
और धीरे-धीरे एक से विचारधारा वाले लोग उन बच्चों के प्रति समर्पित होने लगे। बच्चे कुत्ते के थे इनसे हमारा दूर-दूर तक कोई नाता नहीं बल्कि इससे हमें यह है स्वभाविक है कि यह काटेंगे और जिस के दुष्प्रभाव गंभीर रूप से होंगे। बस सही भी है परंतु एक दिन अचानक मुझे सूचना मिली की सभी कुत्तों को टीके लगवा दिए गए हैं। और मन में कौतूहल पैदा हुआ। मैंने उस डॉग लवर से बातचीत भी की उसने बताया कि वह उनकी सेवा इसलिए करता है कि उसे आत्म प्रेरणा मिली। कहानी पूरी तरह से साफ और प्रेरक थी मेरे लिए। यद्यपि मैंने सिर्फ उन कुत्तों को स्नेह भाव से देखता मात्र था। जबकि कई लोग उनकी सेवा स्वरूप उन्हें भोजन कराते दूध ब्रेड दूध रोटी आदि उपलब्ध कराते थे। एक दिन अचानक उनमें से एक कुत्ता मर गया पता चला कि शैशव काल में ही किसी संक्रमण के कारण अधिकतर कुत्ते जीवित नहीं रह पाते। एक दिन दफ्तर से लौटकर देखा तो पाया कि शेष कुत्तों के इलाज के लिए डॉक्टर उनका इलाज कर रहा है। मुझे अच्छी तरह से याद है कोविड-19 के पहले दौर में भयभीत लोग अपने अपने घर के भीतर थे परंतु सरकारी कर्मचारी पूरी मुस्तैदी से फील्ड में घूम रहे थे। मेरे दो सहकर्मी अक्सर अपनी कार में ₹700 का चारा खरीदते थे तथा सड़क के किनारे खड़ी भूखी गायों को खिलाया करते हैं। तभी पता चला की कुछ आंगनवाड़ी कार्यकर्ता सुबह से जब लोक सेवा के लिए जाती थी तो साथ में अपने सामर्थ्य अनुसार कुछ बिस्किट और कुछ रोटी या खाद्य पदार्थ लेकर जाती थी। यकीन मानिए उन दिनों मेरी दोस्ती गिलहरी से हो चुकी थी सुबह 5:00 बजे नींद खुलती थी और मैं छोटे से कटोरी में पानी तथा कुछ दाने वगैरह डाल दिया करता था। गिलहरियां आती दाने खाती और चली जाती। लेकिन एक दिन बहुत देर से उठने के कारण गिलहरियों ने शोर मचाना शुरू कर दिया। उस दिन कि सुबह अच्छे से याद है जब 8:00 बजे सुबह गिलहरियों के शोर ने मुझे अंततः जगा ही दिया बाहर जाकर देखा उनकी वह आवाज खुशी में बदल गई। मेरी ना उठने की स्थिति में श्रीमती जी ने पहले ही गाने और पानी की व्यवस्था कर दी थी। परंतु मेरी अनुपस्थिति शायद गिलहरियों को खल रही थी। उनका यह प्रेम देखकर ईश्वरी सत्ता पर विश्वास हो गया। हां तो मैंने इस कहानी के पहले कुत्तों के बारे में बात की थी तो यह बता दूं कि हम अकेले ही नहीं हजारों हजार लोग मूक प्राणियों की सेवा में लगे हैं गौ सेवा गौरैया की सेवा चीटियों की सेवा करते हुए परम सुख की प्राप्ति और उसका आनंद ईश्वर के प्रति कृतज्ञता का भाव है और ईश्वर का सम्मान है। यही तो है मेलोडी ऑफ लाइफ। आपको याद होगा कि एक आईटी प्रोफेशनल विदित शर्मा ने स्वप्रेरणा से कोविड-19 काल से ही एनसीआर क्षेत्र में अपनी शादी के लिए संचित राशि से गली के कुत्तों को भोजन का अभियान शुरू किया है। यह अभियान अब तक जारी है जिसका जिक्र प्रधानमंत्री स्वयं कर चुके हैं।
मौत के मुहाने पर खड़ी थी दुनिया दुनिया ने तक जाना करुणा का अर्थ। मेरे हिसाब से तो करुणा दया प्रेम ईश्वर सबको समान रूप से देता है लेकिन महत्वाकांक्षा अहंकार क्रोध कुंठा जैसे भाव इन भावों पर हावी हो जाते हैं।
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*मेलोडी ऑफ लाइफ क्या है ?* भाग 03
लघु कणों में भी भयानक विस्फोट की क्षमता होती है। यह आप सब जानते हैं मुझे भी पता है। हिरोशिमा नागासाकी से अब तक हजारों खबर हम पढ़ चुके हैं। पृथ्वी हिल जाती है मानवता तबाह हो जाती है। इसके अलावा आप देखते हैं कि रेत के कणों का क्या आकार होता है पर रेत का पहाड़ अगर किसी रास्ते में आ जाए तो सारे के सारे पथ चलने योग्य कहां होते हैं। किसे मालूम था कि अदृश्य सा कोविड-19 का विषाणु समूची सभ्यता को निगल जाने की तैयारी कर चुका था, भयातुर मानव समूह जीवन के लिए सशंकित रहा है।
ज़हर अगर एक बूंद भी होता है या उससे आधा भी असर जरूर करता है। बहुत दिनों तक किसी सरफेस को आप अनदेखा करें तो पाएंगे कुछ दिनों में उस सरफेस पर आपका अधिकार ना होकर धूल के कणों का अधिकार हो जाता है।
जीवन के लिए यही एक सिद्धांत है कि अपने मानस पर जम रही धूल को हटाते जाइए। किसी के प्रति नजरिया नेगेटिव रखिए तो वह व्यक्ति बहुत भयानक नजर आएगा। मन उसके आते ही उत्तेजना से भर जाएगा और सुलगने लगेंगी विध्वंसक आग। और यही आग बन जाती हैं दावानली लपटें !
किसी से घृणा का आधार कुछ भी नहीं होता बल्कि यह एक मनोरोग है।
घृणा करने के कई कारण होते हैं-
[ ] आप दुनिया को अपनी तरीके से चलाना चाहते हैं और जो आप के तरीके को स्वीकार नहीं करता उससे आप घृणा करने लगते हैं। हम मूर्ति पूजा करते हैं जबकि इस्लाम कहता है मूर्ति पूजा हराम है और मूर्तिपूजक काफ़िर है। काफिर को मारना अल्लाह की आज्ञा है जो प्रॉफिट ने कुरान में दर्ज कर दी है। धर्म विवाह शिक्षा यह कुल मिलाकर व्यक्तिगत मामले हैं परंतु संप्रदाय कहता है नहीं उन्हें जीने का हक नहीं है जो क़ाफ़िर हैं । सोचिए क्या यह जायज है नहीं यह बिल्कुल जायज नहीं है। तो जायज क्या है..? इस दुनिया में हम भी ऐसे कुछ मंतव्य स्थापित करना चाहते हैं जो हमारे हैं !
और जब हम अपने नैरेटिव को इस्टैबलिश्ड नहीं कर पाते तब हमें क्रोध आता है। क्रोध की जीवन अवधि संभवत 2 मिनट से भी अधिक नहीं होती। लेकिन यह 2 मिनट का क्रोध हमारे जीवन की संचित पुण्य पूंजी का 100% तक हिस्सा हथिया लेता है।
[ ] इस तरह क्रोध का आधार अति महत्वाकांक्षा और ईश्वर के प्रति श्रद्धा ना रखते हुए स्वयं को महान कर्ता के रूप में प्रदर्शित करने की लालसा भी है।
[ ] अक्सर जब आप किसी के लिए कुछ करते हैं या पारिवारिक रिचुअल्स में अर्थात पारिवारिक परंपराओं के कारण कुछ आर्थिक मानसिक शारीरिक रूप से करते हैं यह कार्य ईश्वर के अलावा किसी के कारण नहीं होता। अपने कार्यों का बखान करवाना करना तथा जिसके लिए कार्य किया है उसे अपना जरखरीद गुलाम मान लेना और जब वह व्यक्ति परिस्थिति वश आप की गुलामी ना स्वीकार करें तो उसे बेइज्जत करना या बार-बार उसे एहसास दिलाना या उस पर क्रोध व्यक्त करना कुटिल तथा व्यंगात्मक शैली में बोलना क्रोध और कुंठा का जनक है ।
[ ] स्वामी शुद्धानंद नहीं अपने सूत्र में लिखा है कि- दुर्बल व्यक्ति प्रेम नहीं कर सकता और प्रेमी कभी दुर्बल नहीं हो सकता..!
अक्सर हम बड़े बुजुर्गों को टोका टाकी करते हुए देखते हैं। पर इग्नोर इसलिए करते हैं कि वह उम्र के उस पड़ाव पर है जहां से उन्हें नए सिरे से कोई शिक्षा नहीं दी जा सकती। देना भी नहीं चाहिए वे मां बाप भाई मित्र या कोई भी हो सकता है।
परंतु इसका अर्थ यह नहीं की ऐसी स्थितियां दिल को कचोटती ना हो ।
जीवन आनंद का उत्सव है जीवन प्रेम का पंथ है। जीवन शोषण का और शोषित करने का मौका नहीं है।
मैं अगर ईश्वर वादी हूं तो मुझे अपने साथ बाकी सब को ईश्वर का अंश मानना ही होगा। पर मैं ऐसा नहीं करता हूं अपने आपको तो ईश्वर का अंश मान लेता हूं परंतु दूसरे को नहीं। ऐसी स्थिति में दूसरों गलतियां कमियां और उससे उत्पन्न विशाद मन पर हावी हो जाता है। मन की आज्ञा अनुसार हम वैसे ही कर्म करने लगते हैं। और यह कर्म हमें उत्तेजना एवं क्रोध यहां तक कि हिंसा की ओर ले जाते हैं। और यह नकारात्मक भाव मेरे डीएनए का स्वरूप ही बदल देता है। और फिर क्रोध और हिंसा भाव वंशानुगत पीढ़ियों तक जिंदा रहता है। मुझे विश्वास है सदगुरु ने कहा था कि शरीर याद रखता है उन सब बातों को जो आपके जन्म के पूर्व ही हैं? मैंने सोचा कि ऐसा कैसे हो सकता है और फिर यह विचार कायम हुआ कि सद्गुरु बिल्कुल सही कह कहते हैं
वास्तव में हमारी मानस में जो भी घट रहा होता है उसका संचय हमारे डीएनए में आसानी से हो जाता है। और वही सब हम अपनी आने वाली पीढ़ियों को जाने-अनजाने सौंप देते हैं। चलिए विचार करते हैं इस पर फिर देखते हैं कि मन का *मनका* कितना परिष्कृत हुआ है।
*निरन्तर जारी...*
*चिंतन*
*मेलोडी ऑफ लाइफ क्या है ?*
इसे समझने के लिए बहुत बड़ा दिल चाहिए। पर मेरे पास बहुत बड़ा दिल नहीं है तब मैं किस तरह जीवन के आल आपको सुन सकूंगा या उस अलाप की अनुगूंज का आभास कर सकूंगा। दरअसल मेलोडी ऑफ लाइफ वीतरागियों को हासिल होती है सबको यह सब हासिल कैसे हो सकता है?
अक्सर हम बड़े बुजुर्गों को टोका टाकी करते हुए देखते हैं। पर इग्नोर इसलिए करते हैं कि वह उम्र के उस पड़ाव पर है जहां से उन्हें नए सिरे से कोई शिक्षा नहीं दी जा सकती। देना भी नहीं चाहिए वे मां बाप भाई मित्र या कोई भी हो सकता है।
परंतु इसका अर्थ यह नहीं की ऐसी स्थितियां दिल को कचोटती ना हो ।
जीवन आनंद का उत्सव है जीवन प्रेम का पंथ है। जीवन शोषण का और शोषित करने का मौका नहीं है।
मैं अगर ईश्वर वादी हूं तो मुझे अपने साथ बाकी सब को ईश्वर का अंश मानना ही होगा। पर मैं ऐसा नहीं करता हूं अपने आपको तो ईश्वर का अंश मान लेता हूं परंतु दूसरे को नहीं। ऐसी स्थिति में दूसरों गलतियां कमियां और उससे उत्पन्न विशाद मन पर हावी हो जाता है। मन की आज्ञा अनुसार हम वैसे ही कर्म करने लगते हैं। और यह कर्म हमें उत्तेजना एवं क्रोध यहां तक कि हिंसा की ओर ले जाते हैं। और यह नकारात्मक भाव मेरे डीएनए का स्वरूप ही बदल देता है। और फिर क्रोध और हिंसा भाव वंशानुगत पीढ़ियों तक जिंदा रहता है। मुझे विश्वास है सतगुरु ने कहा था कि शरीर याद रखता है उन सब बातों को जो आपके जन्म के पूर्व ही हैं? मैंने सोचा कि ऐसा कैसे हो सकता है और फिर यह विचार कायम हुआ कि सद्गुरु बिल्कुल सही कह कहते हैं
वास्तव में हमारी मानस में जो भी घट रहा होता है उसका संचय हमारे डीएनए में आसानी से हो जाता है। और वही सब हम अपनी आने वाली पीढ़ियों को जाने-अनजाने सौंप देते हैं। चलिए विचार करते हैं इस पर फिर देखते हैं कि मन का *मनका* कितना परिष्कृत हुआ है।
*निरन्तर जारी...*
*मेलोडी ऑफ लाइफ क्या है ?* (द्वितीय सोपान)
प्रेम ही संसार नीव है। स्वामी शुद्धानंद नाथ जी की इस एक पंक्ति मैं जीवन का रहस्य छुपा हुआ है। प्रेम में अपेक्षा और उपेक्षा जो नींबू का रस या टाटरी का प्रयोग करना प्रेम के मूल तत्व को विघटित कर देता है। कुछ दिनों पूर्व की घटना है गली में एक कुत्तिया अपने कुछ बच्चों के साथ आई। मोहल्ले में एक शिक्षक था जो निजी तौर पर कोचिंग क्लास चलाता था। उसके मन में करुणा भाव उन्हें देखकर अचानक संचारित हो गया। उसने उन बच्चों और उस कुतिया को अपने आवास स्थल पर संरक्षण दे दिया। और उनकी सेवा करने लगा। इस बात का ज्ञान जब हम सबको हुआ तो हमने देखा कि हमारी भतीजी ने उस करुणा को विस्तार दे दिया। वर्क फ्रॉम होम करते हुए बिटिया ने कुछ समय उनकी सेवा सुश्रुषा के लिए निकाला। उन पर नजर रखी। गंभीरता से देखभाल करने लगी।
और धीरे-धीरे एक से विचारधारा वाले लोग उन बच्चों के प्रति समर्पित होने लगे। बच्चे कुत्ते के थे इनसे हमारा दूर-दूर तक कोई नाता नहीं बल्कि इससे हमें यह है स्वभाविक है कि यह काटेंगे और जिस के दुष्प्रभाव गंभीर रूप से होंगे। बस सही भी है परंतु एक दिन अचानक मुझे सूचना मिली की सभी कुत्तों को टीके लगवा दिए गए हैं। और मन में कौतूहल पैदा हुआ। मैंने उस डॉग लवर से बातचीत भी की उसने बताया कि वह उनकी सेवा इसलिए करता है कि उसे आत्म प्रेरणा मिली। कहानी पूरी तरह से साफ और प्रेरक थी मेरे लिए। यद्यपि मैंने सिर्फ उन कुत्तों को स्नेह भाव से देखता मात्र था। जबकि कई लोग उनकी सेवा स्वरूप उन्हें भोजन कराते दूध ब्रेड दूध रोटी आदि उपलब्ध कराते थे। एक दिन अचानक उनमें से एक कुत्ता मर गया पता चला कि शैशव काल में ही किसी संक्रमण के कारण अधिकतर कुत्ते जीवित नहीं रह पाते। एक दिन दफ्तर से लौटकर देखा तो पाया कि शेष कुत्तों के इलाज के लिए डॉक्टर उनका इलाज कर रहा है। मुझे अच्छी तरह से याद है कोविड-19 के पहले दौर में भयभीत लोग अपने अपने घर के भीतर थे परंतु सरकारी कर्मचारी पूरी मुस्तैदी से फील्ड में घूम रहे थे। मेरे दो सहकर्मी अक्सर अपनी कार में ₹700 का चारा खरीदते थे तथा सड़क के किनारे खड़ी भूखी गायों को खिलाया करते हैं। तभी पता चला की कुछ आंगनवाड़ी कार्यकर्ता सुबह से जब लोक सेवा के लिए जाती थी तो साथ में अपने सामर्थ्य अनुसार कुछ बिस्किट और कुछ रोटी या खाद्य पदार्थ लेकर जाती थी। यकीन मानिए उन दिनों मेरी दोस्ती गिलहरी से हो चुकी थी सुबह 5:00 बजे नींद खुलती थी और मैं छोटे से कटोरी में पानी तथा कुछ दाने वगैरह डाल दिया करता था। गिलहरियां आती दाने खाती और चली जाती। लेकिन एक दिन बहुत देर से उठने के कारण गिलहरियों ने शोर मचाना शुरू कर दिया। उस दिन कि सुबह अच्छे से याद है जब 8:00 बजे सुबह गिलहरियों के शोर ने मुझे अंततः जगा ही दिया बाहर जाकर देखा उनकी वह आवाज खुशी में बदल गई। मेरी ना उठने की स्थिति में श्रीमती जी ने पहले ही गाने और पानी की व्यवस्था कर दी थी। परंतु मेरी अनुपस्थिति शायद गिलहरियों को खल रही थी। उनका यह प्रेम देखकर ईश्वरी सत्ता पर विश्वास हो गया। हां तो मैंने इस कहानी के पहले कुत्तों के बारे में बात की थी तो यह बता दूं कि हम अकेले ही नहीं हजारों हजार लोग मूक प्राणियों की सेवा में लगे हैं गौ सेवा गौरैया की सेवा चीटियों की सेवा करते हुए परम सुख की प्राप्ति और उसका आनंद ईश्वर के प्रति कृतज्ञता का भाव है और ईश्वर का सम्मान है। यही तो है मेलोडी ऑफ लाइफ। आपको याद होगा कि एक आईटी प्रोफेशनल विदित शर्मा ने स्वप्रेरणा से कोविड-19 काल से ही एनसीआर क्षेत्र में अपनी शादी के लिए संचित राशि से गली के कुत्तों को भोजन का अभियान शुरू किया है। यह अभियान अब तक जारी है जिसका जिक्र प्रधानमंत्री स्वयं कर चुके हैं।
मौत के मुहाने पर खड़ी थी दुनिया दुनिया ने तक जाना करुणा का अर्थ। मेरे हिसाब से तो करुणा दया प्रेम ईश्वर सबको समान रूप से देता है लेकिन महत्वाकांक्षा अहंकार क्रोध कुंठा जैसे भाव इन भावों पर हावी हो जाते हैं।
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*मेलोडी ऑफ लाइफ क्या है ?* भाग 03
लघु कणों में भी भयानक विस्फोट की क्षमता होती है। यह आप सब जानते हैं मुझे भी पता है। हिरोशिमा नागासाकी से अब तक हजारों खबर हम पढ़ चुके हैं। पृथ्वी हिल जाती है मानवता तबाह हो जाती है। इसके अलावा आप देखते हैं कि रेत के कणों का क्या आकार होता है पर रेत का पहाड़ अगर किसी रास्ते में आ जाए तो सारे के सारे पथ चलने योग्य कहां होते हैं। किसे मालूम था कि अदृश्य सा कोविड-19 का विषाणु समूची सभ्यता को निगल जाने की तैयारी कर चुका था, भयातुर मानव समूह जीवन के लिए सशंकित रहा है।
ज़हर अगर एक बूंद भी होता है या उससे आधा भी असर जरूर करता है। बहुत दिनों तक किसी सरफेस को आप अनदेखा करें तो पाएंगे कुछ दिनों में उस सरफेस पर आपका अधिकार ना होकर धूल के कणों का अधिकार हो जाता है।
जीवन के लिए यही एक सिद्धांत है कि अपने मानस पर जम रही धूल को हटाते जाइए। किसी के प्रति नजरिया नेगेटिव रखिए तो वह व्यक्ति बहुत भयानक नजर आएगा। मन उसके आते ही उत्तेजना से भर जाएगा और सुलगने लगेंगी विध्वंसक आग। और यही आग बन जाती हैं दावानली लपटें !
किसी से घृणा का आधार कुछ भी नहीं होता बल्कि यह एक मनोरोग है।
घृणा करने के कई कारण होते हैं-
[ ] आप दुनिया को अपनी तरीके से चलाना चाहते हैं और जो आप के तरीके को स्वीकार नहीं करता उससे आप घृणा करने लगते हैं। हम मूर्ति पूजा करते हैं जबकि इस्लाम कहता है मूर्ति पूजा हराम है और मूर्तिपूजक काफ़िर है। काफिर को मारना अल्लाह की आज्ञा है जो प्रॉफिट ने कुरान में दर्ज कर दी है। धर्म विवाह शिक्षा यह कुल मिलाकर व्यक्तिगत मामले हैं परंतु संप्रदाय कहता है नहीं उन्हें जीने का हक नहीं है जो क़ाफ़िर हैं । सोचिए क्या यह जायज है नहीं यह बिल्कुल जायज नहीं है। तो जायज क्या है..? इस दुनिया में हम भी ऐसे कुछ मंतव्य स्थापित करना चाहते हैं जो हमारे हैं !
और जब हम अपने नैरेटिव को इस्टैबलिश्ड नहीं कर पाते तब हमें क्रोध आता है। क्रोध की जीवन अवधि संभवत 2 मिनट से भी अधिक नहीं होती। लेकिन यह 2 मिनट का क्रोध हमारे जीवन की संचित पुण्य पूंजी का 100% तक हिस्सा हथिया लेता है।
[ ] इस तरह क्रोध का आधार अति महत्वाकांक्षा और ईश्वर के प्रति श्रद्धा ना रखते हुए स्वयं को महान कर्ता के रूप में प्रदर्शित करने की लालसा भी है।
[ ] अक्सर जब आप किसी के लिए कुछ करते हैं या पारिवारिक रिचुअल्स में अर्थात पारिवारिक परंपराओं के कारण कुछ आर्थिक मानसिक शारीरिक रूप से करते हैं यह कार्य ईश्वर के अलावा किसी के कारण नहीं होता। अपने कार्यों का बखान करवाना करना तथा जिसके लिए कार्य किया है उसे अपना जरखरीद गुलाम मान लेना और जब वह व्यक्ति परिस्थिति वश आप की गुलामी ना स्वीकार करें तो उसे बेइज्जत करना या बार-बार उसे एहसास दिलाना या उस पर क्रोध व्यक्त करना कुटिल तथा व्यंगात्मक शैली में बोलना क्रोध और कुंठा का जनक है ।
[ ] स्वामी शुद्धानंद नहीं अपने सूत्र में लिखा है कि- दुर्बल व्यक्ति प्रेम नहीं कर सकता और प्रेमी कभी दुर्बल नहीं हो सकता..!
स्वामी जी का यही सूत्र वाक्य घोषित करता है कि क्रोध और कुंठा कुल मिलाकर मनोरोग है और जो अत्यंत क्रोधी होते हैं वह मनोरोगी होते हैं।