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शनिवार, मार्च 26, 2011

नारीवादी विमर्श :कुछ तथ्य

गतांक में आपने पढ़ा "आप को जीवन का युद्ध लड़ना है किसे अपनी सखी बनाएंगी ? मनु की तरह आपकी बरछी,बाण,कृपाण कटारी जैसी  सहेलियां कौन हैं ? कभी सोचा इस बारे में ! नहीं तो बता दूं कि वो है….

1.  ................................................................“हर दिन उन आईकान्स को देखो जो कभी कल्पना चावला है, तो कभी बछेंद्री पाल है, सायना-नेहवाल है जो आपके समकालीन आयकान हैं ” इनकी कम से कम छै: सहेलियां तो होंगी ही"
अब आगे :-
भानु चौधरी के ब्लाग से साभार 
                                   एक युद्ध जो अक्सर तुम को लड़ना होता है जानती हो वो क्या है...? खुद को साबित करने वाला युद्ध. कभी कभी तुम खुद को नहीं मालूम होता कि "फ़िट हो " शायद मालूम रहता है  गोया तुम कंफ़्यूज़ ज़ल्द हो जाती हो.मुझे एक घटना याद आ रही है. अभिलाषा और उसकी छोटी बहन बरेला के पास सलैया गांव में अपने परिवार के साथ रहती है. उसे आंगनवाड़ी-वर्कर इस कारण बना दिया कि वो ही उस गांव की पढ़ी-लिखी यानी हायर सेकण्ड्री पास लड़की है. उसकी एक छोटी बहन भी है. व्यक्तित्व के लिहाज़ से देखा तो सामान्य से हट के किंतु सौम्य शांत, मुझे लगता था कि ये बेटियां अपेक्षाकृत सामान्य ग्रामीण बालिकाऒं से जुदा हैं. उसके पिता अक्सर मुझसे मिलने आते  थे . एक पार उनका लम्बे समय तक न मिलना मेरे लिये चिंता का कारण बना सो मैने फ़ोन लगा के पूछा:-"भाई, क्या हुआ पटेल जी कई दिनों से दिखे नहीं "
पटेल जी बोले:-"बस, थोड़ा बीमार था आता हूं किसी दिन "
      पटेल  जब आये तो उनने बताया:-"साहब, एक रात मुझे हैजा हो गया था.."
      मैने पूछा :-"फ़िर पटेल साहब, ?"
      फ़िर क्या दौनों मौड़ियों (बेटियों) ने मुझे बचा लिया... एक ने मोटर सायकल चलाई दूसरी ने मुझे बीच मैं बिठाया और खुद पीछे बैठी... जबलपुर लें आईं. मेडीकल में भर्ती किया. 
        रात बारह बजे के बात गांव की सुनसान सड़कों पर बाईक पर बीमार बाप को लेकर जबलपुर तक लेकर आईं बेटियां "डरीं तो होंगी पर क्या खूब एड है कि डर के आगे जीत है...जीत गईं बेटियां."
 बचा लिया बीमार बाप को . बस अपने आप की ताक़त को पहचानने की ज़रूरत है न 
बताओ बेटियो ऊंट देखा हा है न सबने 
हां की आवाज़ सुनते ही मैने अपनी बात आरंभ की... उसकी गरदन लम्बी क्यों है..?
                              अगर मैं ग़लत नहीं हूं तो.... ऊंची-ऊंची झाड़ियों से पत्ती खाने के लिये उनमे आये आए जनेटिक-बदलाव की वज़ह से...ऊंट की गरदन ऊंची हो गई... ( हो सकता है मै गलत हूं पर यह एक उदाहरण है) तो क्या तुम में कोई परिस्थिति जन्य बदलाव नहीं आ सकता. आ सकता है बदलाव आप ला सकतीं हैं विकास की यात्रा में सक्रिय-भागीदारी के लिये ज़रूरी है "दृढ़ता" जो हासिल होती है.... स्वस्थय-शरीर से जिसमें स्वस्थ्य एवम सुदृढ़ता मन रहता है जो "आत्म-शक्ति" को बल एवम पाज़ीटिव ऊर्जा देता है अब बताओ बेटियो क्या आप सुबह से नाश्ता करके आईं हो ?
हाथ उठाओ कितनों ने आज सुबह ...? मेरे सवाल पर पचास फ़ीसदी ने हाथ उठाया तो मैने कहा "यानी पचास फ़ीसदी ने आज़ नाश्ता नही किया ?
सशक्तिकरण का नारा साकार कैसे होगा...? कमज़ोर रेतीली ज़मीन पर मज़बूत मक़ान की कल्पना बेमानी है. 
                        बेटियो तुम्हारा हक़ है सुन्दर दिखना इस हक ने तुमको श्रृंगार करना सिखाया उसी का लाभ उठा सुन्दरता बढ़ाने वाले प्रसाधनों की बिक्री करने वाले तुम उसी पर आसक्त हो किंतु मेरी एक बात सुनो बेटियो ! जो तेजस्विता और सुंदरता प्राकृतिक साधनों से मिलती है वो इन सौंदर्य-प्रसाधनो से कदापि नहीं. उसके लिये तुम्हारा समय पर आहार लेना, शरीर में आयरन की मात्रा को बनाए रखना ज़रूरी है जो हासिल होता है प्राकृतिक साधनों से .गुड़ जिसे तुम नकार देती हो रोज़ खाके तो देखो . शम जिस विकास पथ पर जा रहे हैं उस पर केवल ऊर्ज़ा-वान ओजस्वी चेहरे वाले व्यक्तित्व  ही आगे जाएंगे और मैं थके उदास बीमार चिंतित चेहरे पसंद नहीं करता न ही डरे हुए चेहरों से मुझे लगाव है. मुझे मेरी चहकती बेटियां चाहिये रस्सी कूदती झूले झूलतीं बेटियों से मिला मेरी बेटियो 
हां एक बात और मुझे उन बेटियों से भी तो मिलना है जो सुंदर राजकुमार को जीवन साथी बनाने के सपने देख रहीं हैं हां वो तो तुम सब देख रही हो न ? तो एक सपना और दिखाना चाहता हूं मेरी बेटियां   हृष्टपुष्ट संतानों का सपना देखें पर क्या इस आठ-नौ ग्राम हीमोब्लोबिन वाली काया सफ़ल मां बन सकती है न क्या ज्ञानविहीन बेटी मेरे कुल का नाम रोशन करेगी ?    नहीं उसके लिए मेरी सलाह है जैसा मैं शिवानी श्रद्धा से कहता हूँ अक्सर :"सोचो फिर चलो आगे बड़ो आगे बढ़ने के बाद वापस मत लौटो लक्ष्य को पाने विकल्पों का उपयोग करो विकल्प दिमाग के कम्प्यूटर की हार्ड डिस्क में होते हैं यदी तुमने सही तरीके से  नालेज गेन किया है तो मै तुम्हारे  प्रथम स्थान पर आने के लिये लालायित नहीं हूं बल्कि गहराई से किये  गये अध्ययन का लालची हूं  "

   

शुक्रवार, मार्च 25, 2011

नारीवादी विमर्श :कुछ तथ्य

आज दिनांक 25 मार्च 2011 को जबलपुर के माता गुजरी महाविद्यालय      
      जबलपुर में मेरा वक्तव्य था. वक्तव्य का एक अंश सुधि पाठकों के विचार हेतु 
सादर प्रस्तुत है   
              आज मैं अपनी बेटियों के साथ कल के भारत में उनकी भूमिका पर विमर्श करने आया हूं तो तय है कि यहां न तो मुझसे अतिश्योक्ति युक्त कुछ कहा जाएगा और न ही मैं कोई कहानी युक्त प्रवचन दे सकूंगा. मै यह भी साफ़ कर देना चाहता हूं कि :-“आप मुझे उतना ही स्वीकारें जितना युक्ति संगत हो न कि आप पूरी तरह मेरे वक्तव्य सहमत हो जाएं ऐसी मेरी मंशा भी नहीं है बल्कि आपको “चिंतन का पथ” किधर से है समझाने का प्रयास करूंगा”
बेटियो

अक्सर आप को अपनी विचार धारा और सोच का विरोध होते देख दु:ख होता है , है न …? ऐसा सभी के साथ होता है पर बालिकाओं के साथ कुछ ज़्यादा ही होता है क्योंकि हमारी सामाजिक व्यवस्था एवम पारिवारिक व्यवस्था इतनी उलझी हुई होती है कि कि बहुधा हम सोच कर भी अपने सपने पूरे नहीं कर पाते . बमुश्किल दस प्रतिशत बेटियां ही अपने सपनों को आकार दे पातीं हैं…!
पर क्या बेटियां सपने देखतीं हैं..?
हां, मुझे विश्वास है की वे सपने देखतीं हैं… परंतु कैसे ….क्या गहरी नींद वाले …क्योंकि कहा गया है कि जागते हुए सपने देखना वर्जित है…है न यही कारण न यह बात बिलकुल गलत है जागते हुए ही सपने देखो सोते वक्त मानस को बेफ़िक्री के हवाले कर दो  !
चलो एक बात पूछता हूं :- “विकास क्या है ?”
हां सही कहा विकास “डेवलपमेंट” ही है. जो किसी देश की स्थिति को दर्शाता है कि उसकी सामाजिक,आर्थिक,राजनैतिक दशा कैसी है.अब मैं पूछना चाहता हूं कि  “विकास में आपका कितना योगदान होना चाहिये पुरुष के सापेक्ष्य  ?
उत्तर तय है- “बराबरी का..”
पर क्या मिलता है..?
क्यों ..?
क्योंकि आप कमज़ोर हैं और कमजोर हिस्सा सबसे पहले धराशायी होता है जलजलों में. भारत की नारीयां कमज़ोर नहीं नब्बे प्रतिशत काम करतीं और फ़िर भी स्वयं आपको मज़बूत बनना है कैसे बनना है इसके सूत्र देता हूं आगे   
   पहले भ्रूण में आपकी उपस्थिति को रोकने वाली घटनाऒं पर विचार करो बेटियो घर में भ्रूण के लिंग-परीक्षण का विरोध करना नारी सशक्तिकरण की दिशा का पहला क़दम होगा
                आप का जन्म एक महत्व पूर्ण घटना है इस दुनियां के लिये आपका जन्म लेते ही रोना बायोलाजिकल क्रिया है किंतु माता-पिता का सुबकना, दादी का झिड़कना, ताने मिलना कितना हताश कर देता है. और आयु के साथ  तुम लड़की हो तुमको ये करना है ये नहीं करना है जैसी लक्ष्मण रेखाएं आपके इर्द गिर्द खींच दी जातीं हैं  ” 
मुझे तुम सबसे उम्मीद है कि तुम “सीता-रेखा” खींच सकोगी  और बता दोगी   सभ्य समाज की असभ्य अराजक व्यवस्था को अपनी ताक़त का नमूना.
नारीमुक्ति का शब्द  पाश्चात्य देशों का है  . तभी तो  सीमा हीन, उच्छंखताऒं भरा है यह आंदोलन. पर भारत में इसे जस का तस स्वीकारा नहीं गया. हमारा संकल्प है “नारी-सशक्तिकरण”  भारत में नारी के लिये चिंतन के लिये हमको पश्चिम की ओर मुंह ताक़ने की ज़रूरत नहीं. हमारे देश के संदर्भ में “नारी-सशक्तिकरण” के लिये रानी झांसी एक बेहतरीन उदाहरण है. सुभद्रा जी जो संस्कारधानी से ही थीं ने अपनी कविता में “मनु की सखियों का ज़िक्र किया किया-“बरछी,बाण,कृपाण कटारी उसकी यही सहेली थी. है न ?
आप को जीवन का युद्ध लड़ना है किसे अपनी सखी बनाएंगी ? मनु की तरह आपकी बरछी,बाण,कृपाण कटारी जैसी  सहेलियां कौन हैं ? कभी सोचा इस बारे में ! नहीं तो बता दूं कि वो है….
1.  आपका ग्यान
2.  आपकी सेहत
3.  आपका सकारात्मक चिंतन
4.  आपकी दृढ़ता
5.  आपके संकल्प
6.  आपकी जुझारू वृत्ति
      यही आपकी आंतरिक सखियां हैं जो आपके काम आयेंगी. क्या आप सुदृढ़ता चाहतीं हैं..? यानि आप में “स्वयम-सशक्तिकरण” की ज़िद है तो एक सूत्र देता हूं :-“हर दिन उन आईकान्स को देखो जो कभी कल्पना चावला है, तो कभी बछेंद्री पाल है, सायना-नेहवाल है जो आपके समकालीन आयकान हैं ” इनकी कम से कम छै: सहेलियां तो होंगी ही…
 (क्रमश:जारी)

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