भाग्य
भाग्य का निर्माता कौन इस बिन्दु पर महेंद्र मिश्र जी की पोस्ट जो समय चक्र पर प्रकाशित हुई है को अन देखा करना अनुचित होगा. मिश्र जी के आलेख में लिखतें हैं:- " मनुष्य कुछ इस तरह की धातु का बना होता है जिसकी संकल्प भरी शक्ति और साहसिकता के आगे कोई भी अवरोध टिक नहीं पाता है और न भविष्य में टिक पायेगा . इस तरह से यह कहा जा सकता है की मनुष्य अपने भाग्य का स्वयं निर्माता है . दुनिया में मनुष्य के आगे असंभव कुछ भी नहीं है . आदमी के अच्छे या बुरे होने का निर्धारण स्वयं उसके कर्म करते हैं . "......... भाग्य और अगले जन्म में गहरा अंतर्संबध है. इस बारे में स्वामी शुद्धानंद नाथ ने एक प्रवचन के दौरान कहा था नियति का नियंता स्वयम इन्सान ही होता है. जो घट रहा है वो पूर्व-जन्म में किये गये कार्यों का परिणाम है.जो अगले जन्म में घटेगा उसका मार्ग आज से बनाना है तय करो कि क्या चाहते हो आज़ के कार्य कल के भाग्य को तय करेंगें. भाग्य को कोई दैव योग कहता है तो कोई ग्रहों की स्थिति जो सच नहीं है भाग्य इस जीवन में किये गये सत-असत कर्मों का परिणाम है. भा