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बुधवार, दिसंबर 09, 2009

कुंठा का कोई अंत नहीं है

अल्पग्य  लोगों  कुंठा का कोई अंत नहीं है अन्यथा ब्रिगेडियर-महफूज़ अली  को  विशेष-रपट  देने की क्या ज़रुरत थी .किसिम किसिम के विचार उठ रहें हैं मन में कितनी गन्दगी है....उन  लोगों के ..जो....घटिया और गलीच सोच वाले जो हिंसा के रास्ते धर्म की स्थापना करने निकल पड़े.किसी धर्म के  रास्ते चलकर  ईश्वर को पहचाना जाता है. जबकी कुंठित-लोग जिन्हें धर्म के सार-तत्व यानी अध्यात्म का ज्ञान नहीं है वे ईश्वर को परिभाषित करने की बेवज़ह कोशिशों में लिप्त हैं . जब सभी पंथों धर्मों के दिव्य साहित्यों में लिखा है कि ईश्वर से साक्षात्कार सहज नहीं है न तो चार किताबें बांच के कोई देवदूत हो जाता न ही श्लोक ऋचाएं गाकर उस दिव्य शक्ति की प्राप्ति होती है. सौरभ भाई आपकी सोच जब इतनी उम्दा है
अपने ज़ख्मों को अपनो को बता कर रखना ।
मन्दिरो में ही मिलते हो भगवान जरुरी नहीं ,
हर किसी से रिश्ता बना कर रखना .
                     तो एक बार तो सोचते तो शायद इतनी अफसोस जनक स्थिति नहीं आती गौर से देखो इस तस्वीर में तुम्हारे आराध्य नहीं तुम दौनों ही हो .=>
प्रिय भाई जो सच्चा ईश्वरवादी होगा वो अपने आप से बेखबर होगा उसे  यह तक नहीं मालूम होता कि वो कौन है.  न तो वो हिन्दू होता है न मोमिन न सिक्ख न ईसाई वो सिर्फ और सिर्फ एक इंसान होता है.जिसे कहा खुद तराशता है. अपना अंश भरता है उसमें . जो खुद के तर्कों के ज़रिये प्रभू के पथ पर चलने का अभिनय करता है उससे  परम पिता का कोई नाता वैसे भी नहीं होता. मुझे आपसे बस इतनीं गुजारिश करनी है कि प्रभू की खोज सलीम खान जैसों की बकवास से रुके न .! महफूज़ भाई जैसे भी हैं.... जो वाकई "स्वच्छ सन्देश दे रहे हैं.!"

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