"ज़रा सी विकृति जायज़ है वरना आप जितने सहज होंगे कुत्ते उतना ही आपका मुंह चाटेंगें"
"आप जितने सहज होंगे कुत्ते उतना ही आपका मुंह चाटेंगें" इस बात से कई दिनों तक मेरी असहमति थी. हो भी क्यों न सहजता ज़िंदगी में वो रंग भरती है जो केवल प्रकृति ही दे सकती है हमारे जीवन को.. हुआ भी यही जीवन भर की सादगी सहजता के सहारे जीवन में रंग भरता इंसान.. मेरा एक कपटी मित्र जिसकी असलियत से वाकिफ़ तो था पर आज़ मित्रता दिवस पर मैने उससे रिश्ता तोड़ लिया वो एक शातिर शिक़ारी है..एक ऐसा शिक़ारी जो मासूमियत और नेक़ी का लबादा ओढ़ के दुनियां के सामने बड़ी बेहरहमी से मानवाधिकारों का अंत किया मेरे .भी... पर क्या हम खुद पर हिंसक आघातों को जारी रहने दें .... कदापि नहीं..हमको विद्रूपता का सहारा लेना ही होगा.. वरना कुत्तों से आपका मुंह यूं ही चटवाया और नुचवाया जाता रहेगा .. चेहरे पर विद्रूपता लानी ही होगी.. पर इस विद्रूपता को व्यक्तित्व पर हावी न होने दिया जाए.. कैसे ..? इस सवाल का ज़वाब दिया था एक दिन मेरे मित्र सलिल समाधिया ने :-... अगर आप सांस्कृतिक नहीं तो आप के काबिल दुनियां नहीं.. दुनियां के काबिल कौन है..? वही जो गात