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जी हाँ हुजूर, मैं गीत बेचता हूँ ।

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स्वर्गीय भवानी दादा का यह गीत उनके जन्म  दिवस पर  पूर्णिमा जी के प्रयास से भवानी दादा की स्मृतियां  '' अनुभूति पर '' उपलब्ध है मेरी आवाज़ में सुनिए गीत फरोश  __________________________________________________________ Go To FileFactory.com ____________________________________________________________ मैं तरह-तरह के गीत बेचता हूँ ; मैं क़िसिम-क़िसिम के गीत बेचता हूँ । जी, माल देखिए दाम बताऊँगा, बेकाम नहीं है, काम बताऊंगा; कुछ गीत लिखे हैं मस्ती में मैंने, कुछ गीत लिखे हैं पस्ती में मैंने; यह गीत, सख़्त सरदर्द भुलायेगा; यह गीत पिया को पास बुलायेगा । जी, पहले कुछ दिन शर्म लगी मुझ को पर पीछे-पीछे अक़्ल जगी मुझ को ; जी, लोगों ने तो बेच दिये ईमान । जी, आप न हों सुन कर ज़्यादा हैरान । मैं सोच-समझकर आखिर अपने गीत बेचता हूँ; जी हाँ हुजूर, मैं गीत बेचता हूँ । यह गीत सुबह का है, गा कर देखें, यह गीत ग़ज़ब का है, ढा कर देखे; यह गीत ज़रा सूने में लिखा था, यह गीत वहाँ पूने में लिखा था । यह गीत पहाड़ी पर चढ़ जाता है यह गीत बढ़ाये से ब

ये मस्त चला इस मस्ती में थोडी थोडी मस्ती लेलो :लुकमान चाचा

यह सही नहीं कि समीर लाल जी मोदीवाडा सदर में लुकमान को सुनते थे , खासतौर पर होली ? ऐसा नहीं था जहाँ भी चचा का प्रोग्राम होता भाई समीर की उड़न-प्लेट सम्भवत:वेस्पा स्कूटर पर सवार हो कर चली आती थी . दादा दिनेश जी विनय जी को आभार सहित अवगत करना चाहूंगा कि:- पंडित भवानी प्रसाद तिवारी जी ,के बाद वयोवृद्ध साहित्यकार श्रीयुत हरिकृष्ण त्रिपाठी जी का स्नेह लुकमान पर खूब बरसा . मित्र बसंत मिश्रा बतातें हैं:-'असली जबलपुर में चचा कि महफिलें खूब सजातीं थीं भइया गिरीश तुमको याद होगा मिलन का कोई भी कार्यक्रम बिना लुकमान जी के अधूरा होता था '' मुझे अक्षरस:याद है कि मिलन के हर कार्यक्रम में लुकमान का होना ज़रूरी सा हो गया था । चाचा लुकमान को जन्म तिथि याद न थी ..! 14 जनवरी 1925 मैंने उनकी जन्म तारीख लिखी ज़रूर है किंतु उनके स्नेही और 1987 से अन्तिम समय तक साथ रहने वाले शागिर्द भाई शेषाद्री अयैर और दीवाना