"जिस तरह हंस रहा हूँ मैं पी के अश्क ए गम कोई दूसरा हंसे तो कलेजा निकल पड़े" कैफ़ी साहब को श्रृद्धांजली
कैफ़ी आज़मी साहब की लाइने हमारे हिंदुस्तान की सौ फ़ीसदी सच्ची तस्वीर है. 2002 आज़ ही के दिन यानी 10 मई को हमसे ज़ुदा हुए कैफ़ी आज़मी साहब तरक्क़ी पसंद शायर की फ़ेहरिश्त में सबसे अव्वल माने जाते हैं. देखिये उनकी एक नज़्म - आज की रात बहुत गर्म हवा चलती है , आज की रात न फ़ुटपाथ पे नींद आएगी , सब उठो , मैं भी उठूँ , तुम भी उठो , तुम भी उठो , कोई खिड़की इसी दीवार में खुल जाएगी । बेशक इस नज़्म की एक पंक्ति को देखिये दिन पिघलता है इसी तरह सरों पर अब तक , रात आँखों में खटकती है सियाह तीर लिए । मज़दूरों की कड़ी मेहनत कल सुबह का इंतज़ार करती आंखों का ज़िक्र बड़े सलीके से किया है . फ़िर आपसी वैमनस्यता को रेखांकित करती ये नज़्म- ऐ सबा! लौट के किस शहर से तू आती है ? तेरी हर लहर से बारूद की बू आती है! खून कहाँ बहता है इन्सान का पानी की तरह जिस से तू रोज़ यहाँ करके वजू आती है ? धाज्जियाँ तूने नकाबों की गिनी तो होंगी यूँ ही लौट आती है या कर के रफ़ू आती है ? अपने सीने में चुरा लाई है किसे की आहें मल के रुखसार पे किस किस का लहू आती है ! पाकीज़ा गांवों में कम अक्ल श