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शुक्रवार, जून 30, 2017

पाकिस्तान आतंक का घोषित घोंसला है तो चीन वैचारिक उन्माद का होलसेल डीलर


कश्मीर समस्या दो दुश्चरित्र राष्ट्रों पाकिस्तान  और चीन के बीच भारत का ऐसा सरदर्द है जिसकी पीड़ा का आधार भारत की समकालीन लापरवाही  है. भारत में लाल और हरी विचारधाराएं भारत के अस्तित्व को 1947 के बाद से ही समाप्त करने की कोशिशों में सक्रीय हैं. अक्सर ब्रिटिशर्स पर ये आरोप लगता है कि उसने मज़हबी आधार पर भारत को विखंडित किया यह अर्धसत्य हो सकता है पूर्ण सत्य तो ये है कि चीन की सरकार झूठ के विस्तार  और कुंठित मनोदशा को सफलता का आधार मानती है तो पाकिस्तान के फर्जी प्रजातंत्र के नेतृत्व का  चरित्र मूर्खताओं का विशाल भण्डार ही रहा है. 
ऐसी कोशिश हो भी क्यों न भारत के मामले  चीन सदा से ही भयभीत रहा है. यहाँ चीन  का साथ हमारे विकास के लिए उतना कारगर कतई भारत के लिए सकारात्मक  नहीं माना जा सकता जितना हम सोच रहे थे. नारे तब भी थे जैसे हिन्दी-चीनी भाई भाई ... पंचशील-क्षरण के बाद हमारे हितों की रक्षा के लिए कोई ठोस पैरोकारी विश्व की ओर से नज़र न आ सकी . मैकमोहन लाइन  को मान्यता देने की 1956 में शपथ लेने वाले चीन ने 1962 में "हिन्दी-चीनी भाई भाई" के नारे को हमारी कमजोरी मानते हुए युद्ध छेड़ा उसे भारतीय सीमाओं को खंडित करने उन पर  सड़क निर्माण का शौक उसकी विस्तारवादी नीति का एक परिचायक है यह कार्य चीन ने 1956 में भी किया था . इतना ही नहीं चीन के सरकारी पत्रिका चायना  पिक्टोरियल में 1958 में नेफा एवं लद्दाख के बड़े  हिस्से  को चीन का हिस्सा बताया . तत्कालीन प्रधान-मंत्री श्री नेहरू की  आपत्ति से तिलामिलाए चीन ने भारत के विरुद्ध बल प्रदर्शन कर भारत को भयभीत करने की चेष्टा  करते हुए  मैकमोहन रेखा को मान्य करने वाली 1956 की शपथ से इंकार करते हुए  अंग्रेजों के संधिपत्र को आधार बना अपना दावा भारत के बड़े हिस्से पर थोपा.  आज भी वही राग चीन ने सैनिकों के साथ थक्का-मुक्की के मामले के बाद अलापा है. फिर भी चीन युद्ध नहीं करेगा क्योंकि चीन को मालूम है कि भारत इस वक्त ऐसी ताकत है जिसे विश्व  साहसी राष्ट्र के रूप में देख रहा है साथ ही  भारत में राज्य एवं जनता की  आइडियोलॉजी  अपेक्षाकृत अधिक शक्तिशाली एवं आपस में सिन्क्रोनाइज़्ड  है. जबकि चीन    लिबरल डेमोक्रेसी के अभाव की वज़ह से राज्य एवं जनता के बीच एक भय का अंतर्संबंध है.    
इस वक्त भी  भारत  का पाकिस्तान से बड़ा शत्रु चीन ही है. इसे स्वीकारना ही होगा फिर भी  चीन भारत  युद्ध करेगा नहीं परन्तु इतना तय है कि वो क्षेत्र में अस्थिरता को बढ़ावा अवश्य देगा.
चीन युद्ध क्यों न करेगा – ?
 इसका एक  कारण यह भी  हैं कि उसे अपने उत्पादों को खपाने का बाज़ार कम से कम वह  पाकिस्तान तो नहीं हो सकता जिस पाकिस्तान के लोगों के हाथ में क्रय शक्ति का अभाव है. जबकि भारत की अर्थ-व्यवस्था में सुदृढ़ता है.
  परन्तु मुझे भारतीय विश्वनीती के बदलते तेवर देख कर ये अवश्य लगा रहा है कि भारत निश्चित अपना भू-भाग चीन से वापस हासिल कर सकने की तैयारी अवश्य कर सकता है अगर उसे आतंरिक एवं सीमाई सुरक्षा पर कोई संकट नज़र आया तो. उधर कहीं ये न हो कि पाकिस्तान को कश्मीर के साथ साथ ब्याज में बलोचास्तान सिंध से हाथ न धोना पड़े ..!
उधर पाकिस्तान ने ज़ुबानी युद्ध के ज़रिये भारत को गोया घेरने का संकल्प ले लिया है. यह पाकिस्तान की मज़बूरी है. पाकिस्तान न केवल घरेलू गरीबी आतंक जैसी समस्याओं से दो चार हो रहा है बल्कि सेना और सरकार दौनों को ही पाक जनता पानी पी पी के आए दिन कोसती रहती है. साथ ही बलोच सिंध आदि के विद्रोही स्वर प्रखर से मुखर होते  जा  रहे हैं .  इस सबसे जनता का ध्यान बंटाने के लिए भारत और कश्मीर के सम्बन्ध में माहौल बनाया जा रहा है. 
यहाँ इस बिंदु का जिक्र ज़रूरी है कि पाकिस्तान आतंक का घोषित घोंसला है तो चीन वैचारिक उन्माद का होलसेल डीलर .
इन सब बातों के मद्दे नज़र भारत अपनी विश्वनीति के साथ मस्त गज राज की तरह चलता भी है मौके पर चिंघाड़ता भी है. 

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