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हज़ूर के बंगले के पर्दे

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सरकारी अफ़सर हो या उसकी ज़िंदगी चौबीसों - घंटे के लिये सरकारी होते हैं जो भी होता है सब कुछ सरकारी ही तो होता है . दफ़्तर का चपरासी आफ़िस से ज़्यादा घर का काम करे तो वफ़ादार , जो बाबू घर जाके चापलूसी करे पूरी निष्ठा और ईमानदारी चुगलखोरी करे वो निष्ठावान , बाकी   बाकियों को “ किसी काम के नहीं हैं..!” - वाली श्रेणी में रखा जा सकता है ..!” ईमानदारी का दम भरने वाला साहब उसके कान में चुपके से कुछ कह देता है और वो बस हो जाता है हलाकान गिरी से न रहा गया उसने पूछा - राजेंद्र क्या बात है किस तनाव में हो भई ..? राजेंद्र – का बतावैं , साहब , सोचता हूं कि बीमार हो जाऊं ..! गिरी - बीमार हों तुमाए दुश्मन तुम काए को .. राजेंद्र - अरे साहब , दुश्मन ही बीमार हो जाए ससुरा ! गिरी ने पूछा - भई , हम भी तो जानें कौन है तुम्हारा दुश्मन ..? राजेंद्र - वही , जो अब रहने दो साहब , का करोगे जानकर .. गिरी - अरे बता भी दो भाई .. हम कोई गै़र तो नहीं .. राजेंद्र - साह