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शुक्रवार, जनवरी 01, 2010
नए वर्ष तुम्हारा स्वागत क्यों करुँ ...?
रस्म अदायगी के लिए
भेज देतें हैं लोग चंद एस एम एस
तुम्हारे आने की खुशियाँ इस लिए मनातें हैं क्योंकि
इस रस्म को निबाहना भी ज़रूरी है
किसी किसी की मज़बूरी है
किन्तु मैं नए वर्ष तुम्हारा स्वागत क्यों करुँ ...?
अनावश्यक आभासी रस्मों में रंग क्यों भरूँ ?
पहले तुम्हें आजमाऊंगा
कोई कसाबी-वृत्ति से विश्व को मुक्त करते हो तो
तो मैं हर इंसान से एक दूसरे को बधाई संदेशे भिजवाउंगा
खुद सबके बीच जाकर जश्न तुम्हारी कामयाबी का मनाऊँगा
तुम सियासत का चेहरा धो दोगे न ?
तुम न्याय ज़ल्द दिला दोगे न ?
तुम मज़दूर मज़बूर के चेहरे पर मुस्कान सजा दोगे न ?
तुम विश्व बंधुत्व की अलख जगा दोगे न ?
यदि ये सब करोगे तो शायद मैं आखरी दिन
31 /12 /2010 को रात अपनी बेटी के जन्म दिन के साथ
तुम्हें आभार कहूँगा....!
तुम्हारे लिए बिदाई गीत गढ़ूंगा !!
तुम विश्वास तो भरो
मेरी कृतज्ञता का इंतज़ार करो ?
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