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“क्यों नहीं कर पा रहे हैं भारतीय पूंजी निर्माण”

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        भारत जिन मौलिक समस्याओं से जूझ रहा है उसमें सबसे आगे रखना चाहूंगा भारतीयों की पूंजी निर्माण की गति में कमी . भारतीय औसतन सार्वजनिक सोच वाला होता है . उसे अपने अलावा परिवार, कुटुंब, आस-पड़ोस, समाज सबके बारे में सोचना होता है .  उसकी उत्सव प्रियता को कोई प्रतिबंधित करे कदापि स्वीकार्य नहीं . उत्सव एवं मुदिता के मुद्दों पर उसे धन खर्चना सर्वाधिक पसंद है . अवकाश भी उसे निरंतर ज़रूरी होते हैं पर सामान्य रूप से अपेक्षाकृत अधिक कर्मठ होने के गुण एवं तीव्र उत्पादन  क्षमता के कारण भारतीय व्यक्ति कभी पराजित नहीं होता . जब वो पूंजी बनाने के लिए आमादा हो जाता है तो शुद्ध रूप से कर्मठता के सहारे  जीतता है आगे बढ़ता है समृद्धि के करीब जाता है .. समृद्ध भी होता है इसके कई उदाहरण हैं . जिनका यहाँ ज़िक्र तुरंत करना आवश्यक नहीं है . संक्षेप में यह संकेत है कि भारतीय अगर पूंजी-निर्माता हो जाए तो तय है कि उसकी उद्यमिता उसे आगे ले जाने में सहायक होगी . किन्तु पूंजी निर्माण की अपनी बाधाएं हैं रोज़ रोज़ मूल्यों में अस्थिरता भारतीयों को पूंजी निर्माण से रोक रही है . फिर कराधान एवं लाभ के व्यापारि