समाज सुधारक बनाम इंजीनियर मिस्त्री और चेला
पता नहीं समाज को सुधारने का ठेका सब ने क्यों ले लिया है। सुधारना क्या है ,? इस बारे में उन्हें विचार करना पड़ता है। कई विद्वान तो मुझे इंजीनियर लगते हैं कई विद्वान मैकेनिक लगते हैं और कई विद्वान मैकेनिक का हेल्पर लगते हैं। सब के पास एक ही ही धंधा है चलो समाज सुधार दें...! समाज सुधारना इतना आसान होता तो महात्मा बुद्ध के काल में ही सुधर जाता। पर महात्मा के विचार कहां तक जा पाए इसका सबको ज्ञान है, महात्मा बुद्ध के विचारों को सुना है अवेस्ता ने रास्ते में रोक लिया? एक बंधु को लगा की मूर्ति पूजा समाज की सबसे बड़ी बुराई है। भैया फिर क्या था..! काफिर कुफ्र जैसे शब्दों का इजाद कर दिया सर तन से जुदा करने की नसीहत दे डाली। तो कोई क्रूस लेकर मारने दौड़ा तो किसी ने जिहाद शुरू कर दिया। फिर भी समाज न सुधरा. बेचारे समाज सुधार को अपने जीवन काल में इस समाज को सुधारने की जिम्मेदारी ऊपर वाले ने दी। वैसे ऊपरवाला चाहे तो सीधे समाज सुधार सकता है पर उसने बहुत सारे मध्यस्थ क्यों भेजें हो सकता है कि -ऊपर वाले के पास कामकाज बहुत हो..? चलो मान भी लिया कि जिम्मेदारी ऊपर वाले ने ही सौंपी