#भोलाराम
#भोलाराम_का_राज्याभिषेक
#व्यंग्य: गिरीश बिल्लौरे मुकुल
नंदनवन के हरे-भरे जंगल में एक अनोखा दौर था। जानवर इंसानों की तरह संगठित थे, और शेर की अचानक मृत्यु के बाद राजगद्दी खाली थी। सभी जानवरों ने गजराज हाथी को राजा बनाने की मांग की, लेकिन गजराज ने ठोस तर्क दिया, "मुझे और मेरे परिवार को बहुत भोजन चाहिए। राजा बनकर मैं अपने बच्चों को आलसी बना दूंगा, जो न बोलना सीखेंगे, न भोजन जुटाना।
"ऊदबिलाव ने सुझाव दिया, "जो योग्य हो, वही राजा बने!
हमारा नंदनवन अफ्रीका का जंगल नहीं, जहाँ एकता की कमी हो।"
उल्लू और छछूंदर ने इस विचार का समर्थन किया ।
भूरी लोमड़ी, पप्पुन गधा, और भोलाराम कुत्ते मैं अपनी दावेदारी पेश की।
सभी जानवरों ने आम सहमति से भूरी पप्पुन और भोलाराम को राजगद्दी की दौड़ के लिए चुना गया।
फुदक चिरैया ने समझाया कि - इसके लिए एक दौड़ का आयोजन किया जाए, सिंहासन से 15 किलोमीटर दूर वाली टेकरी से सिंहासन तक की दूरी तय करके जो भी इन तीनों में से पहले सिंहासन तक पहुंचेगा उसे राजा घोषित कर दिया जाएगा।
15 किलोमीटर दूर टेकरी पर दौड़ का आयोजन तय करने के बाद झल्ला बंदर को समय तय करने का जिम्मा सौंपा गया।
निश्चित तिथि पर दौड़ का आयोजन हुआ।
दौड़ वाले रास्ते पर मिक्की खरगोश और उसका खानदान जंगली रास्तों पर निगरानी रख रहे थे।
रास्ते में गाँव थे, जहाँ पालतू कुत्तों ने अपनी चौकसी बरती। ये कुत्ते इंसानों के साथ रहकर अपनी जंगली प्रवृत्ति भूल चुके थे। इस बात की जानकारी मिकी ने तीनों प्रतिभागियों को दे दी। भोलाराम भी मानसिक तौर पर तैयार था। वह जानता था कि उसकी जाति के लोग ही उसे बड़ा पहुंचाएंगे।
दौड़ शुरू होते ही भूरी लोमड़ी ने तेजी दिखाई, लेकिन तीसरे गाँव तक पालतू कुत्तों ने उसे घायल कर दिया।
भोलाराम और पप्पुन गधा पीछे-पीछे दौड़ रहे थे।
पालतू कुत्तों का शोर चारों दिशाओं में गूंज रहा था।
रास्ते भर पालतू कुत्तों के हमले भोलाराम पर ही हो रहे थे, लेकिन पप्पुन गधे को कोई नहीं छूता था।
कुत्तों ने गाँव वालों से सुना था, "गधे से पंगा नहीं लेना चाहिए , गधे तो गधे हैं... जाने कब पलट के दुलती मार दें !"
पप्पुन अपनी सामान्य से ज़रा तेज स्पीड से दौड़ रहा था।
पहले तो भोलाराम सबसे आगे था परंतु बाद में दूसरे गांव को पार करते मैं उसे बहुत वक्त लग गया, अपनी बिरादरी वालों से संघर्ष करने में। तीसरा और चौथा गांव पर करते-करते तो उसकी सांस उखड़ रही थी। संकल्प लिया था तो दौड़ना जरूरी भी था।
जैसे तैसे भोलाराम सिंहासन से आधा किलोमीटर दूर पहुंचा तो उसे गधे की गंध मिली। फिनिशिंग लाइन पर पहुंचकर उसने देखा—पप्पुन गधा पहले ही वहाँ था! भोलाराम ने माथा पकड़ लिया। तभी तोताराम और कंपनी ने गाना शुरू कर दिया - "अपने ही गिराते हैं नशेमन पे बिजलियां..!"
(यह कहानी उन भारतीयों को समर्पित है, जो आयातित विचारधारा के प्रबल समर्थक हैं और भारत को हर वक्त नीचा दिखाते हैं)