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बलिदानी टंट्या भील की कहानी आनंद राणा की जुबानी

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  ( अमर बलिदानी टंट्या भील की बलिदान स्थली जबलपुर से बलिदान दिवस पर शोध आलेख सादर समर्पित )     भारत के गौरवशाली इतिहास की परंपरा में भील जनजाति का अद्भुत और अद्वितीय माहात्म्य रहा है। ऐतिहासिक और पौराणिक संदर्भों के आलोक में सतयुग में महादेव - बड़ा देव के पुत्र निषाद, जो तीर कमान विद्या में निपुण थे, भील जनजाति के आदि पुरुष के रूप में शिरोधार्य हैं। त्रेता में भगवान श्री राम के साथ निषादराज गुह और द्वापर युग में धनुर्धर अर्जुन की परीक्षा के लिए महादेव किरात भील के रूप में अवतरित हुए थे, वहीं वर्तमान युग के हर कालखंड में हुए स्वातंत्र्यसमर में भील जनजाति का अति विशिष्ट योगदान रहा है। प्राचीन काल में सिकंदर को शिवी जनपद के भीलों ने पराजित किया था, मध्यकाल में महाराणा प्रताप के साथ राणा पूंजा भील ने अकबर के विरुद्ध भयंकर संग्राम किया था और मेवाड़ से खदेड़ दिया था।  इसी महान् परंपरा के अनुक्रम में आधुनिक भारत में महा महारथी टंट्या भील ने अंग्रेजी शासन को ध्वस्त करने के लिए 12 वर्ष तक लगातार 24 युद्ध लड़े और अपराजेय रहे, उन्हें सुनियोजित षड्यंत्र कर ही गिरफ्तार किया