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भूमंडलीकरण के भयावह दौर और गदहे-गदही के संकट

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भूमंडलीकरण के भयावह दौर में गधों की स्थिति बेहद नाज़ुक एवम चिंतनीय हो चुकी है . इस बात को लेकर समाज शास्त्री बेहद चिंतित हैं. उनको चिंतित होना भी चाहिये समाजशास्त्री चिंतित न होंगे तो संसद को चिंतित होना चाहिये. लोग भी अज़ीब हैं हर बात की ज़वाबदेही का ठीकरा सरकार के मत्थे फ़ोड़ने पे आमादा होने लगते हैं. मित्रो  -" ये... अच्छी बात नहीं..है..!" सरकार का काम है देखना देखना और देखते रहना.. और फ़िर कभी खुद कभी प्रवक्ता के ज़रिये जनता के समक्ष यह निवेदित करना-"हमें देखना था , हमने देखा, हमें देखना है तो हम देख रहे हैं ".. यानी सारे काम देखने दिखाने में निपटाने का हुनर सरकार नामक संस्था में होता है. जी आप गलत समझे मैं सरकार अंकल की बात नहीं कर रहा हूं.. मै सरकार यानी गवर्नमेंट की बात कर रहा हूं. हो सकता है सरकार अंकल ऐसा कथन कहते हों पर यहां उनको बेवज़ह न घसीटा जाये. भई अब कोई बीच में बोले मेरी अभिव्यक्ति में बाधा न डाले.. रेडी एक दो तीन ......... हां, तो अब पढिये अर्र तुम फ़िर..! बैठो.... चुपचाप..  तुमाए काम की बात लिख रहा हूं..तुम हो कि जबरन .. चलो बैठो..     

"कौआ ,चील ,गदहा ,बिल्ली ,कुत्ते

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 एक सरकारी बना "बहुत  असरकारी"   होशियार था कौए की तरह   और जा बैठा वहीं जहां अक्सर  होशियार कौआ बैठता है.!! *************************                                                                  चील:-  चीखती चील ने  मुर्दाखोर साथियों को पुकारा एक बेबस जीवित देह  नौंचने    सच है घायल होना सबसे बड़ा अपराध है.  मित्र मेरे, बीते पलों का  यही एहसास आज़ मेरे  तो कल तुम्हारे साथ है. **************************** गधा  जो अचानक रैंकने लगता है  सड़क पर मुहल्ले के नुक्कड़ पर लगता है कि :- "मैं अपने दफ़्तर आ गया ?" वहां जहां मैं और मेरा गधा  एक ही सिक्के  के दो पहलू हैं. मुझे इसी लिये प्रिय है मेरा गधा.. सर्वथा मेरा अपना "अंतरंग-मित्र " ***************************** बिल्ली सुना है बिल्लियों का भाग से भरोसा  उठ गया ! बताओ दोस्त क्यों है ये मंज़र नया ? जी सही  अब आदमी छीकें तोड़ रहें हैं ***************************** कुत्ते पर इंसानी नस्ल का रंगत   चढ़ गई ये जानकर अ