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ईद मुबारक हो

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तुम जो चाहो तो आज से शुरू कर सकते हो एक विश्वासी जीवन मत जियो ऐसा आभासी जीवन जो तकसीम कर देता है पहले दिलों को फ़िर नक्शों को फ़िर फ़िर क्या............? यहीं से ख़त्म होती है सुकून भरी ज़िंदगीयाँ ! "जिंदगियाँ" वो जो आभास और अब्बास के बीच फर्क नहीं करतीं वो जो रेशमा सी रौशन मुस्कराहट बिखेरती हैं हाँ जी वो जो टाँगे पर स्टेशन से घर तक ले कर आतीं है "रमजान-चचा" ने नाम से तो कहीं इकबाल की पहचान से पहचानी जातीं हैं । खालिक के सूट के बगैर कोई दूल्हा "दूल्हा" नहीं बनता इदरीस के घर की "तुक्क -तुक्क,तॉय-तॉय" आवाज़ के बिना मुहल्ले में भोर नहीं सुहाती थीं । इनके विशवास कम न हों सत्य का आभास बेदम न हो मीत इस ईद में भी ईद का उछाह कम न हो ब्लॉग पर प्रकाशित चित्र के लिए किसी भी पाठक को उसके स्वत्व को लेकर कोई अधिकार हो तो कृपया मुझे मेल कीजिए