संभागायुक्त श्री दीपक खांडेकर, आई.जी.
महिला सेल श्रीमति प्रग्यारिचा श्रीवास्तव के मार्गदर्शन में महिला सशक्तिकरण
विभाग एवम पुलिस विभाग के संयुक्त तत्वावधान में
“सीधा :संवाद”
कार्यक्रम का आयोजन किया गया . दो सोपान में आयोजित इस कार्यक्रम में बोलते हुए संभागीय आयुक्त
श्री दीपक खांडेकर ने कहा –“ दिन प्रतिदिन
विभिन्न क्षेत्रों में महिलाओं कीभागीदारी बढ़ रही है । ऐसे में यह आवश्यक हो जाता है कि जहां पर
महिलाएं जा रही हैं काम कर रही हैं, वे
स्थल चाहे शासकीय हों अथवा अशासकीय हों या निजी हों, कार्य करने की दृष्टि से
पूरी तरह सुरक्षित हों,जिससे महिलाएं बिना किसी झिझक के कार्य कर सकें या कार्य करवा सकें । उनमें
असुरक्षा की भावना नरहे । किसी भी प्रकार
से उनका लैंगिक उत्पीड़न न हो । महिलाओं के कार्य करने के स्थल सुरक्षित
औरसुविधाजनक हो । यदि ऐसा नहीं हो रहा है तो समानता की बात करना बेमानी होगी
। देश की संसद ने इसके लिए वर्ष 2013 में
कार्य स्थल पर सुरक्षा को लेकर लैंगिक उत्पीड़न निवारण, प्रतिषेध
एवं प्रतितोषण,
अधिनियम बनाया है । इस अधिनियम में महिलाओं की सुरक्षा के
संबंध में विभिन्न प्रावधान किए गए हैं।
कार्यालय या किसी भी कार्य स्थल पर कार्यालय या संस्था प्रमुख की जवाबदेही
होगी कि कार्य स्थल परसुरक्षित कार्य का वातावरण उपलब्ध करायें । कार्य स्थल के
लोगों को इसके प्रति जागरूक बनाया जाये । अपने कार्यालय में एक समिति गठित करें जो
इस प्रकार के मामलों की मानीटरिंग करे और कार्यवाही करे। कार्यशाला में पुलिस महानिरीक्षक डी. श्रीनिवास राव ने कहा
कि कार्य स्थल पर महिलाओं के लैंगिक उत्पीड़न रोकने के लिए बनाये गये अधिनियम में जो
प्रावधान किए गए हैं उनका सभी संभागीयएवं जिलों के कार्यालयों में पालन हो । महिलाओं के लिए कार्य स्थल पर एक सुरक्षित
वातावरण दिया जाए । जिससे वे गरिमा और
सम्मान के साथ अपने दायित्वों का निर्वहन कर सकें । उनके अंदर कभी भीअसुरक्षा की भावना न आए । यदि
कोई कर्मचारी या सहकर्मी प्रावधानों का उल्लंघन करता है तो उसके विरूद्ध सख्त
कार्यवाही हो ।
महिला सेल श्रीमति प्रग्यारिचा श्रीवास्तव के मार्गदर्शन में महिला सशक्तिकरण
विभाग एवम पुलिस विभाग के संयुक्त तत्वावधान में
“सीधा :संवाद”
कार्यक्रम का आयोजन किया गया . दो सोपान में आयोजित इस कार्यक्रम में बोलते हुए संभागीय आयुक्त
श्री दीपक खांडेकर ने कहा –“ दिन प्रतिदिन
विभिन्न क्षेत्रों में महिलाओं कीभागीदारी बढ़ रही है । ऐसे में यह आवश्यक हो जाता है कि जहां पर
महिलाएं जा रही हैं काम कर रही हैं, वे
स्थल चाहे शासकीय हों अथवा अशासकीय हों या निजी हों, कार्य करने की दृष्टि से
पूरी तरह सुरक्षित हों,जिससे महिलाएं बिना किसी झिझक के कार्य कर सकें या कार्य करवा सकें । उनमें
असुरक्षा की भावना नरहे । किसी भी प्रकार
से उनका लैंगिक उत्पीड़न न हो । महिलाओं के कार्य करने के स्थल सुरक्षित
औरसुविधाजनक हो । यदि ऐसा नहीं हो रहा है तो समानता की बात करना बेमानी होगी
। देश की संसद ने इसके लिए वर्ष 2013 में
कार्य स्थल पर सुरक्षा को लेकर लैंगिक उत्पीड़न निवारण, प्रतिषेध
एवं प्रतितोषण,
अधिनियम बनाया है । इस अधिनियम में महिलाओं की सुरक्षा के
संबंध में विभिन्न प्रावधान किए गए हैं।
कार्यालय या किसी भी कार्य स्थल पर कार्यालय या संस्था प्रमुख की जवाबदेही
होगी कि कार्य स्थल परसुरक्षित कार्य का वातावरण उपलब्ध करायें । कार्य स्थल के
लोगों को इसके प्रति जागरूक बनाया जाये । अपने कार्यालय में एक समिति गठित करें जो
इस प्रकार के मामलों की मानीटरिंग करे और कार्यवाही करे। कार्यशाला में पुलिस महानिरीक्षक डी. श्रीनिवास राव ने कहा
कि कार्य स्थल पर महिलाओं के लैंगिक उत्पीड़न रोकने के लिए बनाये गये अधिनियम में जो
प्रावधान किए गए हैं उनका सभी संभागीयएवं जिलों के कार्यालयों में पालन हो । महिलाओं के लिए कार्य स्थल पर एक सुरक्षित
वातावरण दिया जाए । जिससे वे गरिमा और
सम्मान के साथ अपने दायित्वों का निर्वहन कर सकें । उनके अंदर कभी भीअसुरक्षा की भावना न आए । यदि
कोई कर्मचारी या सहकर्मी प्रावधानों का उल्लंघन करता है तो उसके विरूद्ध सख्त
कार्यवाही हो ।
पुलिस महानिरीक्षक (महिला अपराध) श्रीमती प्रज्ञा ऋचा
श्रीवास्तव ने कहा –“ समाज की 50% प्रतिशत आबादी महिलाओं की है ।
इस आधी आबादी को सुरक्षित वातावरण उपलब्ध कराना होगा । सुरक्षित वातावरण
में ही समाज के निर्माण में यह अपना योगदान दे पायेगी । यदि हम वास्तव में चाहते
हैंकि महिलाएं आगे आयें तो उन्हें कार्य स्थल पर बेहतर वातावरण मुहैया कराना होगा ।
कार्यशाला में अधिनियम के विभिन्न प्रावधानों पर प्रकाश डाला गया ।
श्रीवास्तव ने कहा –“ समाज की 50% प्रतिशत आबादी महिलाओं की है ।
इस आधी आबादी को सुरक्षित वातावरण उपलब्ध कराना होगा । सुरक्षित वातावरण
में ही समाज के निर्माण में यह अपना योगदान दे पायेगी । यदि हम वास्तव में चाहते
हैंकि महिलाएं आगे आयें तो उन्हें कार्य स्थल पर बेहतर वातावरण मुहैया कराना होगा ।
कार्यशाला में अधिनियम के विभिन्न प्रावधानों पर प्रकाश डाला गया ।
लैंगिक उत्पीड़न में शारीरिक सम्पर्क, लैंगिक
स्वीकृति के लिए कोई मांग या अनुरोध,
लैंगिक टिप्पणी करना, अश्लील साहित्य दिखाना, लैंगिक
प्रकृति का कोई अन्य निंदनीय,
शारीरिक,
शाब्दिक या गैरशाब्दिक आचरण करना शामिल है । इसी प्रकार कार्य स्थल की व्याख्या इस प्रकार बताई गई – ऐसा कोई विभाग, संगठन उपक्रम, स्थापन,उद्यम, संस्था, कार्यालय,
शाखा या यूनिट, गैर सरकारी संगठन, कोई प्राइवेट सेक्टर, सोसाइटी, न्यास, अस्पताल, प्रशिक्षण केंद्र, कोई खेलकूद संस्थान कोई निवास गृह या कोईअन्य गृह । नियोजन से आशय है उसके उपक्रम के दौरान कर्मचारी द्वारा भ्रमण किया गया कोई स्थान एवंउपलब्ध कराया गया परिवहन भी है ।
स्वीकृति के लिए कोई मांग या अनुरोध,
लैंगिक टिप्पणी करना, अश्लील साहित्य दिखाना, लैंगिक
प्रकृति का कोई अन्य निंदनीय,
शारीरिक,
शाब्दिक या गैरशाब्दिक आचरण करना शामिल है । इसी प्रकार कार्य स्थल की व्याख्या इस प्रकार बताई गई – ऐसा कोई विभाग, संगठन उपक्रम, स्थापन,उद्यम, संस्था, कार्यालय,
शाखा या यूनिट, गैर सरकारी संगठन, कोई प्राइवेट सेक्टर, सोसाइटी, न्यास, अस्पताल, प्रशिक्षण केंद्र, कोई खेलकूद संस्थान कोई निवास गृह या कोईअन्य गृह । नियोजन से आशय है उसके उपक्रम के दौरान कर्मचारी द्वारा भ्रमण किया गया कोई स्थान एवंउपलब्ध कराया गया परिवहन भी है ।
कार्यशाला के द्वितीय सोपान में टाक शो का समावेश बेहद प्रभावी रहा जिसमें श्री अमृतलाल वेगड, श्री रवींद्र बाजपेई, महिला मुद्दों पर विशेषरूप से आदिवासी दलित महिलाओं के लिये कार्य करने वाली सामाजिक कार्यकर्ता दया मां (हर्रई) , श्री मनीष दत्त, श्रीमति उपमा राय, फ़िलम अभिनेता श्री आशुतोष राणा, मनोवैज्ञानिक श्रीमती जैन (सागर), अपराध शास्त्र विशेषज्ञ राजू टंडन, स्त्री रोग विशेषज्ञ डा.रूपलेखा चौहान ने तीन पीढियों से सीधा संवाद किया. युवा, प्रौढ़, वयोवृद्ध जनों से हुई बातचीत में अंतत: एक सारभूत तत्व सामने आया कि "महिलाओं के विरुद्ध बढ़ते जा रहे संत्राष का मूल आधार समकालीन सामजिक परिस्थितियां हैं. ज़रूरत है आत्मअंवेषण की"
सिने कलाकर आशुतोष राणा ने अपने वक्तव्य एवम पूछे गये सवालों के ज़वाब आद्यात्मिक आधार पर दिये, जबकि अमृतलाल वेगड़ ने नारी के सशक्त स्वरूप की व्याख्या करते हुए रोचक शैली में कहा कि- "समकालीन परिस्थियां तुरंत वैचारिक रूप से संवेदित होने एवं आत्मचिंतन करने के लिये प्रेरित कर रहीं हैं.. "
वरिष्ट पत्रकार श्री रवींद्र वाजपेई ने सामाजिक सांस्कृतिक मूल्यों के संरक्षण से महिलाओं के विरुद्ध हो रही हिंसा लैंगिक अपराधों को रोकने का कारगर एवं प्रभावी तरीक़ा निरूपित किया.
दया मां ने महिलाओं को उनके अधिकारों मौज़ूदा क़ानूनों की जानकारी मुहैया कराने पर बल दिया.
डा. रूपलेखा चौहान ने कहा कि- "सामाजिक सोच में परिवर्तन लाए बिना न तो भ्रूण हत्याएं रोकी जा सकेंगी और न ही महिलाओं के खिलाफ़ होती घटनाओं को रोका जा सकता है"
एड. मनीष दत्त ने मौज़ूदा कानूनों का ज़िक्र करते हुए महिलाओं को स्वयं तत्परता के लिये प्रेरित किया.
एड. मनीष दत्त ने मौज़ूदा कानूनों का ज़िक्र करते हुए महिलाओं को स्वयं तत्परता के लिये प्रेरित किया.
इस अवसर पर श्री मनु श्रीवास्तव, सी एम डी विद्युत-वितरण कम्पनी, पुलिस महक़मे के अधिकारी गण, संयुक्त-संचालक महिला बाल विकास श्री हरिकृष्ण शर्मा, संभागीय उपसंचालक महिला सशक्तिकरण श्रीमति शालिनी तिवारी सहित जिला महिला सशक्तिकरण अधिकारी, संरक्षण अधिकारीयों एवं संभाग के विभिन्न जिलों से आए स्वयंसेवी संस्थाओं के प्रतिनिधि , विभिन्न विभागों के अधिकारीगण, महिलाओं के लिये कार्य करने वाले विचारक एवं एक्टिविष्ट, मीडिया से जुड़े प्रतिनिधि, किशोर बालक बालिकाएं, वयो वृद्ध जन विषेश रूप से आमंत्रित थे
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विषय से भटके पेनलिस्ट राणा जबकि दादा अमृतलाल बेगड़ रवींद्र बाजपेई, उपमा राय,राय ने तथ्यात्मक जानकारी देकर प्रश्नों के सटीक उत्तर दिये
संगोष्ठी में आशुतोष राणा विषय से भटक कर कराधान पर बोल पड़े जबकि बेगड़ जी, रवींद्र बाजपेई, उपमा राय जी ने जितना भी कहा अत्यंत प्रबावी रहा . प्रश्नकर्ताओं के सवाल आक्रामक थे ऐसा लगा कि उनमें परिवेश को आंकने में तथा सामाजिक मुद्दों पर व्यवहारिक अध्ययन कमज़ोर या सिर आंकड़ों पर आश्रित था.
प्रख्यात चिकित्सक डा.रूपलेखा चौहान, पी एन डी टी एक्ट के उल्लंघन में डाक्टरों की मिलीभगत के सवाल पर चिकित्सक समुदाय को बचातीं नज़र आईं.
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चित्र वीथी
प्रथम सोपान
संभागायुक्त श्री दीपक खांडेकर जी |
कार्यक्रम संचालन करते हुए राकेश राव |
प्रतिभागी |
प्रतिभागी |