भूमंडलीकरण के भयावह दौर में गधों की स्थिति बेहद नाज़ुक एवम चिंतनीय हो चुकी है . इस बात को लेकर समाज शास्त्री बेहद चिंतित हैं. उनको चिंतित होना भी चाहिये समाजशास्त्री चिंतित न होंगे तो संसद को चिंतित होना चाहिये. लोग भी अज़ीब हैं हर बात की ज़वाबदेही का ठीकरा सरकार के मत्थे फ़ोड़ने पे आमादा होने लगते हैं. मित्रो -" ये... अच्छी बात नहीं..है..!" सरकार का काम है देखना देखना और देखते रहना.. और फ़िर कभी खुद कभी प्रवक्ता के ज़रिये जनता के समक्ष यह निवेदित करना-"हमें देखना था , हमने देखा, हमें देखना है तो हम देख रहे हैं ".. यानी सारे काम देखने दिखाने में निपटाने का हुनर सरकार नामक संस्था में होता है. जी आप गलत समझे मैं सरकार अंकल की बात नहीं कर रहा हूं.. मै सरकार यानी गवर्नमेंट की बात कर रहा हूं. हो सकता है सरकार अंकल ऐसा कथन कहते हों पर यहां उनको बेवज़ह न घसीटा जाये. भई अब कोई बीच में बोले मेरी अभिव्यक्ति में बाधा न डाले.. रेडी एक दो तीन ......... हां, तो अब पढिये अर्र तुम फ़िर..! बैठो.... चुपचाप.. तुमाए काम की बात लिख रहा हूं..तुम हो कि जबरन .. चलो बैठो..