
एक
अजीब सी बेचेनी नज़र आ रही है सैलीब्रिटीज़ के विचारों में सभी आदिम स्वतन्त्रता के
पक्षधर हो रहे है . मुझे अपने कालेज के दिन याद आ रहे हैं प्रोफ़ेसर स्वर्गीया राजमती दिवाकर कहा करतीं थीं –“वक्तव्य देना जीभ
को तालू से मिला कर या हटा कर शब्द पैदा
कर देना नहीं है .......... तुम्हारे दिमाग से शरारती जीभ नियंत्रित रहे वरना
तुम्हारा वक्तव्य तुम्हारे दिमाग पर हथौड़े चलाएगा ! 5 मिनट तक तुमको कुछ कहना है तो तुम्हैं कम से कम 25 घंटे पढ़ना
चाहिए . ” – लगता नंदिता जैसी सेलेब्रिटीज को प्रोफ़ेसर दिवाकर
जैसी विदुषी ने पढ़ाया होता .
अगर
नंदिता इसी बात को कुछ यूं कहतीं – “हर किसी पुरुष पर सहज भरोसा नहीं किया जा सकता
तो ”
यद्यपि
अपने बयान से निकलते अर्थ को समझने में नंदिता ने अपने बयान को वापस तो नहीं लिया
बल्कि यह ट्वीट कर पीछे हटने की कोशिश की है कि ये कदापि न था कि हर पुरुष रेपिस्ट
है .........
इससे
पहले भारतीय समाज को रंगभेद के कटघरे में खडा कर देने वाला बयान बी बी सी को दिया
था कि - "भारत में अगर आप गोरी नहीं हैं, तो आप सुंदर नहीं हैं."
सोचने वाली
बात ये है कि मीडिया में जगह पाने मॉससाइकिक रोगी जाने कब स्वस्थ्य होंगे .