ये जो दूर तक आप अथाह जल राशि देख रहे हैं न यहीं बसा करते थे कोई 250 गांव जिनमें थी आबादी, आबादी की आंखों मे थे सपने, सपने जो किसान के सपने थे, मज़दूर के सपने थे, पंडित,लोहार,सुतार, धीवर,सोनार, मास्टर,पोस्ट-मैन, चपरासी, किसी के भी थे थे ज़रूर. पुरखों की विरासत सम्हालते थे कुछ, जो जमीनें खोट (वार्षिक-किराये ) देकर जबलपुर भोपाल,इन्दौर, मुम्बई ( जिसे गांव आकर बेधड़क बम्बई बोलते थे ) में रोजगार हासिल किया था उनके भी तो सपने थे हर गर्मियों में गांव आकर घर की खोल-बंदी, कुल-देवी के पूजन, की जी हां इसी अथाह जल राशी में समा गये किंतु उन के मन से न निकल सकने वाली पीर दे गये. विकास की प्राथमिक शर्त ही विनाश है. जी हां यही सत्य है. देखो न कितने पसीने बहा के बनी थी सड़क सीधे खण्डुये (खण्डवा) जाती थी. यहीं तो रेलवे- लाइन हुआ करती थी . पर अब वो सड़क जाती है वहां तक जहां तक दो पहिया मालिक बाइक धोकर नर्मदा को गंदा करने और फ़िर हाथ जोड़कर झूठी आस्था का प्रदर्शन कर रहा है.
ये शम्भू सिंग जी हैं साथी का इन्तज़ार कर रहे हैं शाम का चार बज चुका है. मछलियां जाल में फ़ंसने आ जाएंगी. पर साथी न आया तो हमने कहा:-’भाई, तुम, पास की मछलियां क्यों नहीं पकड़ते ?
"भियाजी, कंईं काम की नी हईं..! काम की बड़ी-बड़ी मछली तो पानी क भित्तर मिलच !
बड़ी गहरी बात कह दी शम्भूसिंग ने. पर शायद ही कोई इस पर ध्यान देगा. सच सोचिये तो ज़रा शम्भू सिंग जी सही कह रहें हैं न ?
ये क्या हलवाई ?
अरे क्या कर रहे हो भैया.ब्लास्ट हो जाएगा तो .?
"हमारा तो रोज़ का काम है." एक टंकी से दूसरी टंकी में गैस यूं ही शिफ़्ट करता है वो. जान पर खेल कर क़ानून को धता बताते हुए मन में आया कि डपट दूं. कैलास क्या सोचेगा मौसा जी मुझे सांत्वना देने आये हैं कि सिस्टम सुधारने सो बस चुप रहा . वैसे भी किधर देखिये किसे सोचिये . क्या क्य सोचिये . ?
आज़ सुबह मामा ससुर साहब के साथ उनकी बनावाई धरमशाला में गया. हण्डिया. नर्मदा जयंति के दो दिन पूर्व अवसर का लाभ उठाना ही था. ये रही तस्वीर जो बतातीं नर्मदा-जयंति हम सिर्फ़ ढोंग करते हैं "नर्मदा-जयंति" मनाने का. मेरे आग्रह के बावज़ूद वे युवक न माने नर्मदा को प्रदूषित करने बाइक धोने घुस ही गये माई के पल्लू से धोयेंगें अपनी बाइक.
मेरी पीड़ा देख मामा ससुर ने तय कर लिया कि इस बार वे कम से कम इस घाट पर तो बाइक का आना जाना रोकने बेरियर लगवा ही देंगे. पर साबुन से नहाने वाले उस दादा को वे रोक पाने में असमर्थ महसूस कर रहे हैं.
हां एक बात और एक वानर सेना बना ली है सेना तट के पास का कूड़ा-प्लास्टिक-पन्नी बीनती है उसे जलाती भी है
मामा जी की वानर-सेना |
नर्मदा जयन्ति पर विषेश आलेख में विस्तार से विवरण तक के लिये विदा दीजिये