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किसी की मज़ाल क्या जो अर्चिता पारवानी की बात काटे..! और केवलराम जी की विचारोत्तेजक पोस्ट का पाडकास्ट अर्चना जी के स्वर में

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                       उस  दिन  हल्की सी बारिश और  आर्ची की घूमने की जिद्द दफ्तर से आते ही बालहट न चाह के भी झुकना तय शुदा होता है घर में बच्चों का ज़िद्द करने वाली उम्र को पार कर लेने के बाद तो .अडोस पड़ोस के बच्चे बहुत ताक़त वर हो जाते हैं ... इनके आगे हर कोई सर झुका लेता है मसलन अब आर्ची को ही लीजिये... हम में से किसी भी भाई की मज़ाल क्या कि अर्चिता पारवानी की बात काटे... हमको हमारे  नाम से पुकारती है...सतीष (मंझले भाई साहब) और  पप्पू (मैं)...हम पर आर्ची  का  एक अघोषित अधिकार.. दादागिरी सब कुछ बेरोक टोक जारी है.  हरीश भैया यानी  हमारे  बड़े भाई साब की सेक्रेट्री टाइप की है बस उनकी चापलूसी में कोई कोर कसर नहीं छोड़ती बाक़ी हम दोनो भाई हमारी पत्नियां, हमारे बच्चे  तो मानो आर्ची ताबे में है .. हमको भी उससे कोई गुरेज़-परहेज़ नही... दुनियां की कोई ताक़त बच्चों के आकर्षण से किसी को भी मुक्त नहीं करा सकती..!  ये तो त्रैलोक्य दर्शन करातें हैं. अर्चिता खूब सवाल करती है हर बात को समझने परखने की कोशिश में लगी रहती है... हां तो गेट नम्बर चार से ग्वारी घाट तक की यात्रा में आसमान की बदलियां उस र