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मंगलवार, अप्रैल 30, 2024

विश्व का सबसे खतरनाक बुजुर्ग : जॉर्ज सोरोस

               जॉर्ज सोरोस
(जॉर्ज सोरस पर आरोप है कि वह भारत में धार्मिक वैमनस्यता फैलाने में सबसे आगे है इसके लिए उसने कुछ फंड भी जारी किया है? इसकी सच्चाई जो भी हो पर  भारत के लिए सकारात्मक दृष्टिकोण नहीं रखता रखता)
 93 वर्षीय जॉर्ज सोरोस का जन्म बुडापेस्ट  हंगरी में  एक  यहूदी परिवार में  12 अगस्त, 1930 को हुआ था. यूएसए  के लोगों ने  फाइनेंसर, लेखक,   सामाजिक  कार्यकर्ता   निवेशक एव मौद्रिक व्यापार (सट्टे-बाज़ी) करते   हैं. इन महाशय  को पश्चिम के सुविधा भोगी एग्रेसिव मीडिया घरानों ने दानी  व्यक्ति के रूप में प्रतिष्ठित करा दिया   । उन्हें उदार सामाजिक कारणों के एक शक्तिशाली और प्रभावशाली समर्थक के रूप में भी जाने लगा  है ।  यहाँ तक तो सब ठीक-ठाक है ऐसे लोगों की दुनियाँ में कम नहीं है जिनका धनवान होना किसी के लिए भी संकट की वज़ह बन जाता है. जार्ज भी इसी श्रेणी के हैं. लंदन स्कूल आफ इकानामिक्स में पढ़े सोरोस की व्यक्तिगत संपत्ति 14 बिलियन डालर से अधिक की है. इस व्यक्ति के कारण 1992 में बैंक-ऑफ़-लन्दन को कंगाल हो जाना पडा था. 16 सितंबर 1992 लन्दन की मुद्रा पोंड  का अवमूल्यन इसी विवादित व्यक्ति की दिमागी बाजीगरी का कारनामा माना जाता है. अर्थात इस व्यक्ति की ज़िद और वित्तीय निर्ममता की हद तब हो गई जब इसने मुद्रा पोंड  का अवमूल्यन करा के  एक महीने में ही लगभग 1.5 बिलियन डॉलर लाभ के तौर पर कमाए. बाज़ार एवं मुद्रा  को प्रभावित करने में कई लोग माहिर हैं परन्तु यह व्यक्ति पूरे सिस्टम को नेस्तनाबूत करने का हुनर जानता है. डोनाल्ट-ट्रंप एवं राष्ट्रवादी सरकारों, उनके पैरोकारों से लगभग घृणा करने वाले सोरोस ने डेमोक्रेट्स के लिए सदा ही आत्मिक प्रेम प्रदर्शित किया. जो बाईडन के सपोर्ट के मामले में में इनका कोई विकल्प दूर दूर तक कोई विकल्प नज़र नहीं आता.   
सोरोस का व्यक्तिगत वैवाहिक जीवन असफल है उनकी दो पत्नियों जीवन-संगनियों क्रमश:  एनालिज़ विट्सचक और सुसान वेबर सोरोस तलाक हो चुका है. इनके बच्चों के नाम रॉबर्ट, एंड्रिया, जोनाथन, अलेक्जेंडर, ग्रेगरी है. वैसे भी  पाश्चात्य-सभ्यता में सात-जन्मों वाला कोई मामला महत्वहीन होता है. 
जार्ज के बारे में 2020 के दौरान  मेरे सोशल-मीडिया  अप्रवासी मित्र समीर शर्मा ने बताया था. वे विश्व में अपने व्यावसायिक कारणों  घूमते रहते हैं. कई और मित्रों से चर्चा के दौरान ज्ञात हुआ कि-“2024 में भारत  के प्रजातंत्र-पर्व में यह व्यक्ति असहिष्णुता का वातावरण अवश्य ही निर्मित करने का प्रयास ज़रूर करेगा...!”
  सोशल-मीडिया की बातों को सामान्य से कम आंकना स्वाभाविक है. मेरे लिए यह जानकारी तब महत्वहीन थी. परन्तु सी ए ए, एन आर सी , कश्मीर-मुद्दे पर टिप्पणियाँ, एवं भारतीय लोकतांत्रिक व्यवस्था पर इनकी टिप्पणीयाँ भारत के विरुद्ध इनकी विध्वंसक मनोवृति का प्राथमिक परिचय है. 
हंगरी के लिए सोरोस के कुछ कार्य:- 1984-89 में , साम्यवाद से पूंजीवाद का अभ्युदय हुआ . इस कार्य में एक कैटेलिस्ट के रूप में जार्ज की भूमिका रही है.   उच्च शिक्षा के लिए   बुडापेस्ट में सेंट्रल यूरोपियन यूनिवर्सिटी को दी गई थी. कुल मिलाकर जार्ज की का लक्ष्य है  शैक्षणिक कार्यक्रम, मानवाधिकार आंदोलन स्वास्थ्य 
न्याय सुधार, वैश्विक शासन,  एवं  अपरिमित वैयक्तिक अधिकार प्राप्त लोकतंत्र की मजबूत पर धन का व्यय करना है.
जार्ज राष्ट्रवाद के आदर्श स्वरूप का घोर विरोधी व्यक्ति के रूप में स्थापित है। United State America तथा अब इनकी हिट लिस्ट में इंडियन डेमोक्रेटिक सिस्टम है। 
 परन्तु इसका दूसरा पहलू उनके भारत, रूस, पर दिए गए बयानों से स्पष्ट है. सोरोश की वैचारिक मुठभेड़  मलेशिया के पूर्व प्रधान मंत्री महादिर मोहम्मद से भी हो चुकी है. वर्तमान में सोरोस भले ही खुद को दार्शनिक साबित करने की कवायद कर  हों पर वास्तव में इनकी प्रसिद्धि  ग्राफ तेज़ी से नकारात्मक एवं व्यवस्था द्रोही बूढ़े के रूप में बढ़ता जा रहा है. 
अमेरिकी न्यूजपेपर द वॉल स्ट्रीट जर्नल ने अपनी रिपोर्ट में इसकी जानकारी दी है। बताया है कि जॉर्ज सोरोस का सारा एम्पायर अब उनके बेटे अलेक्जेंडर सोरोस के हवाले होगा, जो उनसे भी ज्यादा राजनीतिक हैं।
 अपनी माता को आत्महत्या में मदद करने की पेशकश की थी जार्ज ने :-  साल 1994 में सोरोस ने एक भाषण में बताया कि उन्होंने अपनी मां को आत्महत्या करने में मदद देने की पेशकश की थी, उनकी मां हेमलॉक सोसाइटी की सदस्य थीं. यह व्यक्ति फिर भी अपने को नास्तिक – दर्शनशास्त्री मानता है. 
संस्थानों से सम्बद्धता :-  1945 में नामक एक किताब Open Society and Its Anime पर आधारित Open Society Foundation की स्थापना की.   फाउंडेशन का हेडक्वाटर न्यूयार्क में तथा  60 से ज्यादा देशों प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से सक्रिय हैं. इस संस्था की सक्रियता विशाल डेमोक्रेटिक राष्ट्रों में नज़र आती है.भारत में यह फ़ाउडेशन किस तरह से काम करता है इस बात का परीक्षण भी अब आवश्यक प्रतीत होने लगा है. ओपन समिति के भारत में भी बहुत सारे लोग सदस्य हैं जिसमें 
अन्वेषण एवं प्रस्तुति : गिरीश बिल्लोरे “मुकुल” 
(वैश्विक (विशेषकर दक्षिण एशियाई) सोशियो-एकोनामिक  के टिप्पणीकार ) 

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