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‘लोहस्तंभ’ - प्रशांत पोळ

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दक्षिण दिल्ली से मेहरोली की दिशा में जाते समय दूर से ही हमें ‘क़ुतुब मीनार’ दिखने लगती हैं. २३८ फीट ऊँची यह मीनार लगभग २३ मंजिल की इमारत के बराबर हैं. पूरी दुनिया में ईटों से बनी हुई यह सबसे ऊँची वास्तु हैं. दुनियाभर के पर्यटक यह मीनार देखने के लिए भारत में आते हैं. साधारणतः ९०० वर्ष पुरानी इस मीनार को यूनेस्को ने ‘विश्व धरोहर’ घोषित किया हैं. आज जहां यह मीनार खड़ी हैं, उसी स्थान पर दिल्ली के हिन्दू शासक पृथ्वीराज चौहान की राजधानी ‘ढिल्लिका’ थी. इस ढिल्लिका के ‘लालकोट’ इस किले नुमा गढ़ी को ध्वस्त कर, मोहम्मद घोरी के सेनापति ‘कुतुबुद्दीन ऐबक’ ने यह मीनार बनाना शुरू किया था. बाद में आगे चलकर इल्तुतमिश और मोहम्मद तुघलक ने यह काम पूरा किया. मीनार बनाते समय लालकोट में बने मंदिरों के अवशेषों का भी उपयोग किया गया हैं, यह साफ़ दिखता हैं. किन्तु इस ‘ढिल्लिका’ के परिसर में इस क़ुतुब मीनार से भी बढकर एक विस्मयकारी स्तंभ अनेक शतकों से खड़ा हैं. क़ुतुब मीनार से कही ज्यादा इसका महत्व हैं. क़ुतुब मीनार से लगभग सौ – डेढ़ सौ फीट दूरी पर एक ‘लोहस्तंभ’ हैं. क़ुतुब मीनार से बहुत छोटा... केवल ७.३५ मीटर या २४