संदेश

Wow.....New

राजनेताओं के लिए गधे कम पड़ गए थे

चित्र
जबलपुर में रसरंग बरात का अपना 30 साल पुराना इतिहास है। हम भी नए-नए युवा होने का एहसास दिलाते थे। कार्यक्रमों में येन केन प्रकारेण उपस्थिति और उपस्थिति के साथ अधकचरी कविताएं कभी-कभी सुनाने का जुगाड़ हो जाता था। देखा देखी हमने भी राजनीति पर व्यंग करना शुरू कर दिया.... सफल नहीं रहे....कहां परसाई जी कहां हम.... कहाँ राजा-भोज कहाँ गंगू तेली,,,!  हमने अपनी कविताएं जेब में रख ली और अभय तिवारी इरफान झांसी सुमित्र जी  मोहन दादा यानी अपने मोहन शशि भैया की राह पकड़ ली। गीत लिखने लगे शशि जी के गीत गीत गीले नहीं होते बरसात में की तर्ज पर अपनी हताशा दर्ज करती गीत मिले हुए अब के बरसात में और ठिठुरते रहे सावनी रात में..! अथवा सुमित्र जी का गीत “मैं पाधा का राज कुंवर हूं...!” पूर्णिमा दीदी के गीत अमर दीदी के गीत गहरा असर छोड़ते थे और अभी भी भुलाए नहीं भूलते। बड़े गजब के गीत लिखते हैं सुकुमार से कवि चौरसिया बंधु हमारे अग्रज उस दौर की कविताएं बिल्कुल घटिया न थी। छंद मर्मज्ञ भाई आचार्य संजीव वर्मा सलिल ने तो गीत रचना में छंद की प्रतिष्ठा को रेखांकित कर दिया था। जी हां 30 -35  बरस पुराना साहित

सामरिक ताकत बनने से पहले मानव संसाधन का विकास जरूरी है

चित्र
    कॉलेज के दिनों में बढ़-चढ़कर हम अक्सर निशस्त्रीकरण पर बेहद प्रभावशाली ढंग से अपने विचार रखा करते थे। उस दौर में हमारे मस्तिष्क में भी शस्त्र विहीन राष्ट्र की कल्पना अत्यधिक आदर्शवादी ताकि चलते हावी रहा करती थी। उन दिनों सैन्य शक्ति के संदर्भ में भरत किसी भी गिनती में नहीं आता था। परंतु हमारे मस्तिष्क में हमेशा ही विश्व की भारत के लिए की जाने वाली चैरिटी का ख्याल बना रहता था। आर्थिक दृष्टि से भारत की विकास दर इतनी धीमी थी जितनी थी चीटियां भी धीमी गति से नहीं चलती। तब हम चिंतित जरूर थे परंतु हताश नहीं । तब भारत कई मोर्चों पर युद्ध रत रहा है। सीमा पर हमेशा चीन और पाकिस्तान की हरकतें देश कौन उत्साह विहीन करने की कोशिश करती रही हैं। दूसरा मुद्दा भारतीय जनता की स्वास्थ्य शिक्षा से संबंधित समस्याएं। एक और कुपोषण रक्त अल्पता औसत आयु में कमी तथा सामाजिक स्वास्थ्य के गिरते हुए समंक हमारे मस्तिष्क को जब जोड़ देते थे वहीं दूसरी ओर शिक्षा का स्तर भी बेहद शर्मनाक था। सोचिए जब हम अपने जॉब में आए तब भी शिक्षा का स्तर और स्वास्थ्य संबंधी आंकड़ों में कोई उत्साहवर्धक परिणाम नजर नहीं आते थे।    खेतों

“क्या मूर्ति-पूजा त्याज्य है अथवा मूर्तिपूजक काफिर है?”

चित्र
मूर्ति पूजा और मूर्ति पूजा को को लेकर एक विचित्र सा वातावरण उत्पन्न कर दिया गया है। यह वातावरण इस्लाम के प्रसार के साथ बहुत अधिक तेजी से निर्मित हुआ। मंदिरों में तोड़फोड़ करना उन्हें जमींदोज करना एक मिशन बन गया था। मोहम्मद गजनवी से पहले भी ऐसी वारदातें होती रहे हैं। भारत में   वास्तुकला एवं मूर्ती-कला   का विकास पूर्व वैदिक काल तथा वैदिक काल में ही हो गया था। परंतु मूर्तिकला का विस्तार मिलते ही कई शिल्पकार वास्तु एवं शिल्प संरचना के लिए सक्रीय हो गये.   शिल्प एवं मूर्तिकला के विकास के सहारे किसी भी   सभ्यता के विकास को अस्वीकार नहीं की जा सकती. अर्थात सभ्यता के विकास लिए शिल्प एवं मूर्तिकला के विकास को एक घटक मानना चाहिए. सुर-असुर कथानकों को पर ध्यान दें तो... हम पातें हैं कि असुरों ने बड़े बड़े ऐसे किलों का निर्माण कराया जिससे सुर-समूह   से सुराक्षा   मिल सके. इंद्र को पुरंदर की पदवी असुरों   के दुर्ग ध्वस्त करने के कारण ही प्राप्त थी. आइये अब हम विचार करतें हैं... मूर्ति-कला के विस्तार की वजह क्या है. वास्तव में मूर्तिकला जब बड़े पैमाने पर जनता द्वारा अपनाई जाने लगी तब उसे राजाश्रय

विश्व का सबसे खतरनाक बुजुर्ग : जॉर्ज सोरोस

चित्र
                जॉर्ज सोरोस (जॉर्ज सोरस पर आरोप है कि वह भारत में धार्मिक वैमनस्यता फैलाने में सबसे आगे है इसके लिए उसने कुछ फंड भी जारी किया है? इसकी सच्चाई जो भी हो पर  भारत के लिए सकारात्मक दृष्टिकोण नहीं रखता रखता)  93 वर्षीय जॉर्ज सोरोस का जन्म बुडापेस्ट  हंगरी में  एक  यहूदी परिवार में  12 अगस्त, 1930 को हुआ था. यूएसए  के लोगों ने  फाइनेंसर, लेखक,   सामाजिक  कार्यकर्ता   निवेशक एव मौद्रिक व्यापार (सट्टे-बाज़ी) करते   हैं. इन महाशय  को पश्चिम के सुविधा भोगी एग्रेसिव मीडिया घरानों ने दानी  व्यक्ति के रूप में प्रतिष्ठित करा दिया   । उन्हें उदार सामाजिक कारणों के एक शक्तिशाली और प्रभावशाली समर्थक के रूप में भी जाने लगा  है ।  यहाँ तक तो सब ठीक-ठाक है ऐसे लोगों की दुनियाँ में कम नहीं है जिनका धनवान होना किसी के लिए भी संकट की वज़ह बन जाता है. जार्ज भी इसी श्रेणी के हैं. लंदन स्कूल आफ इकानामिक्स में पढ़े सोरोस की व्यक्तिगत संपत्ति 14 बिलियन डालर से अधिक की है. इस व्यक्ति के कारण 1992 में बैंक-ऑफ़-लन्दन को कंगाल हो जाना पडा था. 16 सितंबर 1992 लन्दन की मुद्रा पोंड  का अवमूल्यन इस

दक्षिण एशिया का बदनाम देश : पाकिस्तान

चित्र
  आर्थिक बदहाली, गिरते जीवन-समंक, स्वास्थ्य सेवाओं, शिक्षा , लोकशाही की दुर्दशा , बन्दूक की नोक पर चकाघिन्नी होती डेमोक्रेसी, आतंक का एपी-सेंटर, 14 अगस्त 1947 को ब्रिटिश-इंडिया से आज़ाद हुए जिन्ना के नापाक इरादों, एवं जयचंदों की मदद से पैदा पाकिस्तान अब दक्षिण एशिया का सबसे बदनाम देश हो चुका है.विश्व मानता है कि इस देश के नागरिकों की साख भी संदिग्ध हो गई है. किल मिलाकर  पाकिस्तानी पासपोर्ट की इज्ज़त नकारात्मक रूप से प्रभावित हुई है. समाज विज्ञानी एवं रक्षा क्षेत्र के विद्वानों का मानना है कि-“भारत के खिलाफ इस्लामिक   कार्ड खेलने के किसी भी अवसर को नहीं चूकने वाले इस देश ने अपनी नस्लों को जो इतिहास पढ़ाया जाता है कि –“हिन्दू, सिख, यहूदी और हर गैर इस्लामिक एवं बुत-परस्त काफिर हैं वे हमारे दुश्मन हैं. !”.. इसके आगे क्या क्या सिखातें हैं हम सब जानते हैं विश्व भी जानता है . आज हम इस मुल्क यानी पाकिस्तान की एक और करतूत उजागर करते हैं , जिस पर विश्व खासतौर पर यूरोप 9/11 के बावजूद खामोश है. जी हाँ हम बलोच सिन्धु, पश्तूनों की आज़ादी के दीवानों के मानवाधिकारों की बात करतें हैं......   ऐसी स्थिति