#भोलाराम_का_विमोचन
सम्मान-सम्मान का यह खेल इतना मस्त है कि इसे ओलंपिक में शामिल कर देना चाहिए। ओलंपिक न सही, तो एशियाई खेलों में। और अगर वह भी न हो, तो जिला-स्तरीय तमाशे में तो जरूर!
यह खेल जेब ढीली कराता है, आत्ममुग्धता को चाँद पर ले जाता है, और भीड से़ तालियां बजवाता है।
अर्थात यह खेल बहुत सारे शास्त्रों पर आधारित है। अर्थशास्त्र, छापस-शास्त्र, दिखास-शास्त्र, और बकास-शास्त्र का गजब का कॉकटेल।
हर शहर में यह खेल जोर-शोर से खेला जाता है। मेरा शहर कोई अपवाद नहीं—बल्कि इस खेल का प्रयागराज, मानसरोवर, येरुशलम मक्का-मदीना है।
वैचारिकता को ठेंगा दिखाते हुए रोज "सम्मान का ड्रामा" रचा जाता है।
खेल तो खेल है, खेलने के लिए ही बना है। तो इसे खेलना जरूरी है—बिल्कुल जरूरी!
आयोजक इस खेल का अर्थशास्त्र बखूबी समझते हैं। आप कवि हों, शायर हों, या साहित्य के तुर्रमखाँ—जब तक इस विमोचन की भट्टी से न गुजरें, तब तक आपका नामोनिशान नहीं।
खुशी की बात यह है कि आजकल तो पद्म सम्मानों के लिए कंसलटेंसी एजेंसियाँ खुल गई हैं। दिल्ली की एक रेडियो जॉकी और एक लेखक, जिनका नाम गिनीज बुक में चमकता है, इस धंधे में सर से पाँव तक डूबे हैं।
यूं तो ये धंधा बड़ा आराम का है, लेकिन जैसा राहत इंदौरी ने फरमाया:
हमसे पूछो कि ग़ज़ल मांगती है कितना लहू,
सब समझते हैं ये धंधा बड़े आराम का है।
पर क्या करें, कितना भी लहू से भीगो लें कोई हमें साहित्यकार मानता ही नहीं।
पर हमें अचानक एक दिन भोलाराम जी के टेलीफोन कॉल ने ब्रह्म ज्ञान दे दिया ! तो यह भोलाराम जी कौन है ?
वास्तव में भोलाराम परसाई जी वाले भोलाराम का पुनर्जन्म है । जो इस जन्म में कवि के तौर पर पैदा हुआ है।
कवि भोलाराम ने जिंदगी भर पुर्जों पर कविताएँ ठूँसीं और पहुंच गए परमज्ञानी जी के दरबार। "साहब, मेरी कविताएँ छपवानी हैं," भोलाराम ने गुहार लगाई।
परम ज्ञानी, जो ग्राहकों की टोह में बैठे थे, बोले, "कविता पढ़ने की क्या जरूरत? एक नजर में समझ गया। अरे, तुम तो मनोज मुंतशिर को पानी पिलाते हो! ये तो छपनी ही चाहिए।
परम ज्ञानी जी ने "प्रशंसा का ऐसा बम गिरा कि भोलाराम शहीद-ए-आजम हो गए। तीस दिन में किताब मुद्रणालय से बाहर।
लेकिन सवाल था—दुनिया को कैसे पता चले कि भोलाराम छप गए? परम ज्ञानी जी ने आँख मारी, "चिंता मत करो, फार्मूला मेरे पास है।
"उनका बैकग्राउंड फार्मूला था—सम्मान बाँटो, भीड़ बटोरो। रामलाल, श्यामलाल, लल्लू, जगदर, भुनगे-बगदर—हर कोई सम्मानित होगा। और हर सम्मानित शख्स अपने साथ बीवी, बच्चे, रिश्तेदार, और शायद गर्लफ्रेंड भी लाएगा। बस, इंस्टाग्राम लाइव के लिए भीड़ जुट गई।
विमोचन का तमाशा यानि आयोजन शुरू हुआ। मंच पर मालाएँ, शाल-श्रीफल, और यशगान के फलक।
मुख्य अतिथि त्रैलोक्य स्वामी से कम नज़र न आते थे।
कुछ अतिथि तो क्षीरसागर में विष्णु की तरह विराजमान लग रहे थे। आयोजन में शहर के नामी-गिरामी और "फुर्सत के रात-दिन" वाले लोग जुटे।
हर वक्ता अपने दिमाग के जखीरे को चटखारे ले-लेकर उवाच रहा था। माइक बार-बार खराब हो रहा था, और आयोजक- सह- मंच संचालक पहली लाइन से लेकर हाल के प्रवेश द्वार तक रेकी करते हुए नजर आ रहे थे । हर आमद पर आए हुए आगंतुक के नाम का उल्लेख करते हुए , अपने कार्यक्रम से जोड़ने वाले मंच संचालक उर्फ आयोजक उर्फ परम ज्ञानी की प्रतिभा को शहर का बच्चा-बच्चा जानता है। उनके व्यक्तित्व पर मेरे जैसे अकिंचन का कुछ कहना सूरज को एलईडी लाइट दिखाने के बराबर है।
परम ज्ञानी लीलाधर कृष्ण से कम नहीं हैं तभी तो, महीने में दो-चार साहित्यिक महाभारत हो जाया करते हैं शहर में..!
इस अप्रतिम दृश्य को देखकर भोलाराम को लगा, वे इंद्र सभा में गंधर्वों के बीच बैठे हैं।
मंच के सामने दर्शक दीर्घा में पीछे वाली पंक्ति में अपन जी और तुपन जी की कानाफूसी शुरू
हो गई थी।
अपन जी: (कान खोजते हुए) गजब आयोजन! कवि को पैसे वाला होना चाहिए है न?
तुपन जी: बिल्कुल! इसे छठी का पूजन कहां कीजिए ।
अपन जी: तुपन जी, बिल्कुल सही कहा आपने। अब तो हिंदी साहित्य का ये प्रचंड वेग कोई नहीं रोक सकता!
तुपन जी: प्रचंड? अरे, प्रलयंकारी कहो! हां एक बात कि तुम भी तो सम्मानित हो रहे हो?
अपन जी: (कलकतिया पान से रंगी खीस निपोरते बोले ) हाँ, भाई, दबाव था, वरना अपन अम्मान सम्मान के चक्कर में पड़ते नहीं।
तुपन जी: अरे, पिछले महीने भी तो तुझे किसी किताब की छटी पर शाल-श्रीफल मिला था?
अपन जी: हाँ, मेरा भी सम्मान हुआ था। सम्मान में मिले श्रीफल की चटनी बनवाई। पाइल्स के लिए मुफीद है, बब्बू भाई बता रहे थे।
तुपन जी: अरे, पाइल्स तो मुझे भी है! आजमाऊँगा।
तभी मंच से चीख: "संस्था ‘दो और दो पांच’ श्री तुपन जी को भी उनकी साहित्य साधना के लिए सम्मानित करती है! यह उनका संस्था की ओर से दिए जाने वाला लाइफटाइम सम्मान है । जोरदार तालियों से इनका सम्मान कीजिए। "
पूरे हॉल में तालियों की आवाज़ गूंजने लगीं।
तुपन जी भी फट्ट से मंच पर जा पहुँचे, यह अलग बात है कि कथित तौर पर उन्हें सम्मान की दरकार नहीं रहती। खचाखच्च फोटो हैंचे गए, स्वयंभू पत्रकार पर और आमंत्रित पत्रकार वीडियो जर्नलिस्ट ने मंच का घेराव करके फोटो वीडियो रिकॉर्ड किए। तुपन जी के सम्मान की कार्रवाई 5 मिनट के अंदर निपटा दी गई। लाइफटाइम अवॉर्ड के लिए इतना टाइम काफी है।
तुपन जी, लौटते वक्त कलगीदार मुर्गे की तरह दाएं बाएं बैठे दर्शकों के प्रति आभार प्रदर्शित करते गर्दन हिलाते आभार जताते, वापस सीधे अपन जी के पास लौट आए।
आज भोलाराम का साहित्यकार बन जाने का सपना भी पूरा होने वाला था परंतु उनके विमोचित होने के पहले मंच से लगभग बीस सम्मान आवंटित हो चुके थे ।
हॉल में भगदड़ मच गई। उद्घोषक चीख रहा था। सम्मान वितरण में "कछु मारे, कछु मर्दिसी" वाली स्थिति बन गई थी।
भीड़ सेल्फी ले रही थी, इंस्टाग्राम रील्स बना रही थी, और यूट्यूब पर लाइव बाइट्स चल रहे थे।
इस बीच उद्घोषक ने भोलाराम जी को इनवाइट कर लिया। मंच के मध्य में गणेश जी की तरह स्थापित होने के निर्देश का पालन करते हुए भोलाराम भावुक हो उठे। कभी उन्हें लगा, वे साहित्य जगत में स्थापित हो गए।
वे यह महसूस कर रहे थे गोया उनकी एक ओर दिनकर दूसरी ओर भवानी प्रसाद तिवारी जी खड़े दिखते, यह भी महसूस किया होगा उनने कि माखनलाल चतुर्वेदी , सुभद्रा दीदी बिल्कुल आसपास मौजूद हैं ।
कभी हॉल में मचे तमाशे देख कर उसे लगा कि वे ठगे गए हैं।
तभी पीछे से आवाज़ आई - "काय भोलू , कवि कब बन गए रे?
झल्ले की आवाज़ सुन भोलाराम पानदरीबा वाले भोलू बन गए ।
*****
लेकिन सच यही है साहित्यकार की प्राण प्रतिष्ठा का यह अजीबोगरीब खेल एकदम नया नहीं।
हर शहर में यह तमाशा होता रहता है।
जहां परम ज्ञानी जैसे लोग इसके सर्जनहार, और भोलाराम जैसे कवि इसके शिकार।
साहित्य के नाम पर यह "दूल्हा-दुल्हन आपके, बाकी सब हमारा" का धंधा है।
और हाँ, अगली बार विमोचन में वायरल रील्स का बजट भी जोड़ लीजिएगा।
(नोट: परसाई के शहर में व्यंग्य लिखना अपराध हो, तो यह अपराध बार-बार करूँगा!)
#डिस्क्लेमर: यह व्यंग्य है। किसी व्यक्ति, स्थान, या घटना से इसका कोई लेना-देना नहीं। समानता महज संयोग है।
#गिरीशबिल्लौरेमुकुल
Misfit मिसफ़िट
Misfit But Hit .... !!
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बुधवार, मई 14, 2025
शनिवार, फ़रवरी 08, 2025
"स्व. भवानी दादा का कृतित्व गीतांजलि प्राण पूजा प्राण धारा : एक लघु पुस्तक समीक्षा"
"स्व. भवानी दादा का कृतित्व गीतांजलि प्राण पूजा प्राण धारा : पुस्तक समीक्षा"
स्वर्गीय लुकमान से जब माटी की गगरिया गीत सुनता तो लगता की है अध्यात्म की परा
काष्ठा तक पहुंचने वाला गीत किसने लिखा है ? जल्द ही पता चल गया कि यह दार्शनिक गीत पंडित भवानी प्रसाद तिवारी की लेखनी से निकाला और सीधे मेरे जैसे का जीवन का दर्शन बन पड़ा है। भवानी प्रसाद तिवारी जी यानी हमारे भवानी दादा फ्रीडम फाइटर थे इनका जन्म 12 फरवरी 1912 में हुआ था। पंडित विनायक राव के पुत्र के रूप में सागर में जन्मे इस महासागर की कर्मभूमि जबलपुर रही. पूज्य भवानी दादा का निधन 13 दिसंबर 1977 को हुआ था। वह दौर ही कुछ अलग था जब, कविताई किसी कवि के अंतस में विराजे दार्शनिक व्यक्तित्व को उजागर करता था। गीतांजलि, प्राण- पूजा, प्राण - धारा, जैसी महान काव्य संग्रह, इसी पत्थर के शहर में रहने वाले महान दार्शनिक कवि भवानी प्रसाद जी तिवारी रचे थे। आज के दौर को सीखना चाहिए अपने इतिहास से, जहां कभी अपने सम्मानों की संख्या बढ़ाने के लिए कविता लिखते हैं यह ऐसे लोगों का शहर पहले तो न था। व्याकरण आचार्य कामता प्रसाद जी स्वर्गीय श्री केशव पाठक, तथा उनकी मानस बहन देवी मां सुभद्रा कुमारी चौहान, श्री,भवानी प्रसाद तिवारी, श्री पन्नालाल श्रीवास्तव नूर, पूज्य श्री गोविंद प्रसाद तिवारी, स्व जवाहरलाल चौरसिया तरुण, गीतकार श्री श्याम श्रीवास्तव चाचा जी, परम पूज्य घनश्याम चौरसिया बादल जैसी हस्तियों का शहर साहित्य के के साथ क्या कर रहा है इससे कोई भी अनभिज्ञ नहीं है। शहर साहित्य के तथा कथित सम्मान वितरण केंद्र के रूप में मेरे लिए दारुण दुख है , आपका नजरिया जो भी हो मुझे माफ करें न करें मैंने अपनी बात खुलकर रख दी है। गीत कविता शहर की तासीर को बता देते हैं कि इस शहर में किस प्रकार की हवा चल रही है। कामोंबेस प्रत्येक शहर में यही कुछ हो रहा है। खैर हम मुद्दे पर बात करें ज्यादा बेहतर होगा। डॉ अनामिका तिवारी जी ने जब पंडित भवानी प्रसाद तिवारी जी की तीन पुस्तकों का समेकन काव्य रचनावली के रूप में कर प्रकाशित कर विमोचन किया उन दिनों मैं भी एक व्याधि से संघर्ष कर रहा था। पिछले महीने ही अचानक भाई रमाकांत गौतम जी ने पूछ लिया - कि आपको काव्यांजलि की जानकारी है ! मैंने अपनी अभिज्ञता अभिव्यक्त की, और पूछा कि यह कृति कहां मिलेगी। गौतम जी ने कृति डॉ अनामिका दीदी से लेकर आने का वादा किया और वादे के पक्के जीवट गौतम जी ने मुझ पर कृपा की। शहर में बहुत से लोग बहुत वादे करते हैं, पूरे आदमी भाव से मुस्कुरा कर गार्डन में मटका मटका कर प्रॉमिस करते हैं और फिर कहां विलुप्त हैं यह वादा करने वाले और उनका अंतस ही जानता है। गीतांजलि के बहुत अनुवाद हुए हैं, इस पर टीकाएं लिखी गईं , पर रवींद्र बाबू के मानस को गीतांजलि के माध्यम से अगर हिंदी के किसी गीतकार ने पढ़ा है तो वे भवानी दादा के अलावा कोई और होगा मुझे विश्वास नहीं है। फिर भी यहां स्पष्ट करना जरूरी है कि आदरणीय भवानी दादा केवल गीतांजलि के अनुगायन के कारण स्थापित हुए ऐसा नहीं है, प्राण पूजा प्राण धारा और गद्य में उनकी मौजूदगी से वे स्थापित साहित्यकार के रूप में युगों युग तक याद किए जाएंगे। आपको याद ही होगा बांग्ला भाषा में विश्व कवि रविंद्र नाथ टैगोर जी की गीतांजलि का प्रकाशन 1910 में हुआ था। गुरुदेव ने इसका अंग्रेजी अनुवाद स्वयं किया था और उसी अंग्रेजी अनुवाद के सहारे पूज्य भवानी दादा ने गीतांजलि लिखी। 1947 में सुषमा साहित्य मंदिर जबलपुर द्वारा प्रकाशित किया गया। यही कृति 1985 में अक्षय प्रकाशन नई दिल्ली द्वारा पुनः प्रकाशित की गई। इसके अतिरिक्त प्राण - पूजा, प्राण- धारा, काव्य संग्रह 70 से 80 के बीच लोक चेतना प्रकाशन से सुधी पाठकों के पास आए थे। इन कृतियों की प्रति अब अनुपलब्ध होती जा रही थीं। बस पुत्रवधू डॉक्टर अनामिका तिवारी ने, अपने ससुर की तीनों कृतियों का समेकित रूप से प्रशासन समग्र के रूप में कराया है। राज्यसभा सदस्य नगर के महापौर तथा अनेकों उपलब्धियां उपाधियां हासिल करने वाले पंडित भवानी प्रसाद तिवारी जबलपुर के अप्रतिम सार्वकालिक हस्ताक्षर कहे जा सकते हैं। भवानी दादा पर उपलब्धियां और पदवियां कभी हावी नहीं हुई। आइए व्यक्तित्व से आप उनके कृतित्व की ओर चलते हैं। अगर हम गीतांजलि की चर्चा करते हैं तो गीतांजलि रविंद्र नाथ टैगोर जी की वैश्विक कृति है। भवानी दादा ने हम हिंदी वालों का परिचय गुरुदेव रविंद्र जी से कराया है। हम आपके इस कर्ज को चुका नहीं सकते। संग्रह को प्रकाशित करने वाली पुत्रवधू डॉक्टर अनामिका तिवारी ने अपने ससुर जी के बारे में लिखा कि वे कविता नहीं लिखते थे बल्कि कविता जीते थे। उनकी ही बात अपनी शैली में कहना चाहता हूं कि जीवन ने उन्हें कविता दी और कविता ने उन्हें उनकी अनुपस्थिति में जीवंत कर दिया। गीतांजलि के गद्य को हिंदी में अनुचित करने वाले भवानी दादा प्रोफेशनल ट्रांसलेटर के समान नजर नहीं आते बल्कि ऐसा लगता है कि गुरुदेव और भवानी दादा के मन मानस में एक ही नर्मदा प्रवाहित रही होगी। इस बात की पुष्टि बिना लाग- लपेट के भवानी दादा के व्यक्तित्व और कृतित्व की चर्चा करने वाले आचार्य (डॉ) हरिशंकर दुबे भी करते हैं। वे कहते हैं कि दादा ने गीतांजलि को महसूस करके उसका अनुवाद किया है, । अगर कोई कभी संगीत की सरगम से भली भांति परिचित हो तो उसके गीत का गेय होना स्वाभाविक है। परंतु बंगाल से अंग्रेजी अंग्रेजी से हिंदी यानी भाषा तीसरे पड़ाव में आकर शब्द अर्थ और संगीतिक परिवर्तन कर सकती है परंतु, गीतांजलि के मामले में ऐसा कुछ नहीं है। संगीतकार अगर गीतांजलि के हिंदी वर्जन का कंपोजीशन तैयार करें तो उन्हें बिल्कुल कठिनाई नहीं होगी यह मेरा दावा है। यह दावा इसलिए भी कर रहा हूं क्योंकि माटी की गगरिया गीत सुनकर लोगों को नाचते हमने देखा है। लुकमान शेषाद्री जब इस गीत को गया करते थे पूरा माहौल भौतिक एवं आध्यात्मिक नर्तन के लिए बाध्य हो जाता। अगर यहां एक भी कविता का उदाहरण पेश किया तो आपकी पढ़ने की इच्छा कदाचित कम न हो जाए इसलिए मैं आग्रह करूंगा कि आप यदि कवि है तो इस कृति को अवश्य पढ़ें क्योंकि, आपके मस्तिष्क सार्वकालिक गीत रचना का साहस बढ़ जाएगा। फिर भी बात ही देता हूं मैं नहीं जानता मीत कि तुम कैसे गाते हो मधुर गीत ! यह तो एक उदाहरण मात्र है। भवानी दादा गीत लोक व्यवहार के गीत हैं , जिनको दार्शनिक एवं आध्यात्मिक दृष्टिकोण से परखें तो उनके गीत सकारात्मक जीवन दर्शन अनावरित करते हैं। पूज्य भवानी दादा का समकालीन वातावरण कुल मिलाकर केवल पॉलिटिकल नहीं था स्वतंत्रता के लिए संघर्ष और उसमें शामिल व्यक्तित्व विराट भावी हुआ करते थे। जिसका प्रभाव उनके सृजन पर देखा जा सकता है। फिर चाहे निराला फणीश्वर नाथ रेणु गोपाल दास नीरज हरिवंश राय बच्चन, जैसे महाकवि क्यों न हों? कृति पर चर्चा अंतिम नहीं है, यह एक परिचय मात्र है,। उनकी जीवनी रचनाकारों के लिए एक नया मार्ग प्रशस्त करती है जो कविताई को पुरस्कार का मार्ग बनाते हैं। उनके लिए भी जो मंच पर सस्ती लोकप्रियता के लिए आधे आधे घंटे तक चुटकुले बाजी करते हैं जिसे टोटका कह सकते हैं और फिर शब्दों की स्वेटर दिखा दिया करते हैं।
काष्ठा तक पहुंचने वाला गीत किसने लिखा है ? जल्द ही पता चल गया कि यह दार्शनिक गीत पंडित भवानी प्रसाद तिवारी की लेखनी से निकाला और सीधे मेरे जैसे का जीवन का दर्शन बन पड़ा है। भवानी प्रसाद तिवारी जी यानी हमारे भवानी दादा फ्रीडम फाइटर थे इनका जन्म 12 फरवरी 1912 में हुआ था। पंडित विनायक राव के पुत्र के रूप में सागर में जन्मे इस महासागर की कर्मभूमि जबलपुर रही. पूज्य भवानी दादा का निधन 13 दिसंबर 1977 को हुआ था। वह दौर ही कुछ अलग था जब, कविताई किसी कवि के अंतस में विराजे दार्शनिक व्यक्तित्व को उजागर करता था। गीतांजलि, प्राण- पूजा, प्राण - धारा, जैसी महान काव्य संग्रह, इसी पत्थर के शहर में रहने वाले महान दार्शनिक कवि भवानी प्रसाद जी तिवारी रचे थे। आज के दौर को सीखना चाहिए अपने इतिहास से, जहां कभी अपने सम्मानों की संख्या बढ़ाने के लिए कविता लिखते हैं यह ऐसे लोगों का शहर पहले तो न था। व्याकरण आचार्य कामता प्रसाद जी स्वर्गीय श्री केशव पाठक, तथा उनकी मानस बहन देवी मां सुभद्रा कुमारी चौहान, श्री,भवानी प्रसाद तिवारी, श्री पन्नालाल श्रीवास्तव नूर, पूज्य श्री गोविंद प्रसाद तिवारी, स्व जवाहरलाल चौरसिया तरुण, गीतकार श्री श्याम श्रीवास्तव चाचा जी, परम पूज्य घनश्याम चौरसिया बादल जैसी हस्तियों का शहर साहित्य के के साथ क्या कर रहा है इससे कोई भी अनभिज्ञ नहीं है। शहर साहित्य के तथा कथित सम्मान वितरण केंद्र के रूप में मेरे लिए दारुण दुख है , आपका नजरिया जो भी हो मुझे माफ करें न करें मैंने अपनी बात खुलकर रख दी है। गीत कविता शहर की तासीर को बता देते हैं कि इस शहर में किस प्रकार की हवा चल रही है। कामोंबेस प्रत्येक शहर में यही कुछ हो रहा है। खैर हम मुद्दे पर बात करें ज्यादा बेहतर होगा। डॉ अनामिका तिवारी जी ने जब पंडित भवानी प्रसाद तिवारी जी की तीन पुस्तकों का समेकन काव्य रचनावली के रूप में कर प्रकाशित कर विमोचन किया उन दिनों मैं भी एक व्याधि से संघर्ष कर रहा था। पिछले महीने ही अचानक भाई रमाकांत गौतम जी ने पूछ लिया - कि आपको काव्यांजलि की जानकारी है ! मैंने अपनी अभिज्ञता अभिव्यक्त की, और पूछा कि यह कृति कहां मिलेगी। गौतम जी ने कृति डॉ अनामिका दीदी से लेकर आने का वादा किया और वादे के पक्के जीवट गौतम जी ने मुझ पर कृपा की। शहर में बहुत से लोग बहुत वादे करते हैं, पूरे आदमी भाव से मुस्कुरा कर गार्डन में मटका मटका कर प्रॉमिस करते हैं और फिर कहां विलुप्त हैं यह वादा करने वाले और उनका अंतस ही जानता है। गीतांजलि के बहुत अनुवाद हुए हैं, इस पर टीकाएं लिखी गईं , पर रवींद्र बाबू के मानस को गीतांजलि के माध्यम से अगर हिंदी के किसी गीतकार ने पढ़ा है तो वे भवानी दादा के अलावा कोई और होगा मुझे विश्वास नहीं है। फिर भी यहां स्पष्ट करना जरूरी है कि आदरणीय भवानी दादा केवल गीतांजलि के अनुगायन के कारण स्थापित हुए ऐसा नहीं है, प्राण पूजा प्राण धारा और गद्य में उनकी मौजूदगी से वे स्थापित साहित्यकार के रूप में युगों युग तक याद किए जाएंगे। आपको याद ही होगा बांग्ला भाषा में विश्व कवि रविंद्र नाथ टैगोर जी की गीतांजलि का प्रकाशन 1910 में हुआ था। गुरुदेव ने इसका अंग्रेजी अनुवाद स्वयं किया था और उसी अंग्रेजी अनुवाद के सहारे पूज्य भवानी दादा ने गीतांजलि लिखी। 1947 में सुषमा साहित्य मंदिर जबलपुर द्वारा प्रकाशित किया गया। यही कृति 1985 में अक्षय प्रकाशन नई दिल्ली द्वारा पुनः प्रकाशित की गई। इसके अतिरिक्त प्राण - पूजा, प्राण- धारा, काव्य संग्रह 70 से 80 के बीच लोक चेतना प्रकाशन से सुधी पाठकों के पास आए थे। इन कृतियों की प्रति अब अनुपलब्ध होती जा रही थीं। बस पुत्रवधू डॉक्टर अनामिका तिवारी ने, अपने ससुर की तीनों कृतियों का समेकित रूप से प्रशासन समग्र के रूप में कराया है। राज्यसभा सदस्य नगर के महापौर तथा अनेकों उपलब्धियां उपाधियां हासिल करने वाले पंडित भवानी प्रसाद तिवारी जबलपुर के अप्रतिम सार्वकालिक हस्ताक्षर कहे जा सकते हैं। भवानी दादा पर उपलब्धियां और पदवियां कभी हावी नहीं हुई। आइए व्यक्तित्व से आप उनके कृतित्व की ओर चलते हैं। अगर हम गीतांजलि की चर्चा करते हैं तो गीतांजलि रविंद्र नाथ टैगोर जी की वैश्विक कृति है। भवानी दादा ने हम हिंदी वालों का परिचय गुरुदेव रविंद्र जी से कराया है। हम आपके इस कर्ज को चुका नहीं सकते। संग्रह को प्रकाशित करने वाली पुत्रवधू डॉक्टर अनामिका तिवारी ने अपने ससुर जी के बारे में लिखा कि वे कविता नहीं लिखते थे बल्कि कविता जीते थे। उनकी ही बात अपनी शैली में कहना चाहता हूं कि जीवन ने उन्हें कविता दी और कविता ने उन्हें उनकी अनुपस्थिति में जीवंत कर दिया। गीतांजलि के गद्य को हिंदी में अनुचित करने वाले भवानी दादा प्रोफेशनल ट्रांसलेटर के समान नजर नहीं आते बल्कि ऐसा लगता है कि गुरुदेव और भवानी दादा के मन मानस में एक ही नर्मदा प्रवाहित रही होगी। इस बात की पुष्टि बिना लाग- लपेट के भवानी दादा के व्यक्तित्व और कृतित्व की चर्चा करने वाले आचार्य (डॉ) हरिशंकर दुबे भी करते हैं। वे कहते हैं कि दादा ने गीतांजलि को महसूस करके उसका अनुवाद किया है, । अगर कोई कभी संगीत की सरगम से भली भांति परिचित हो तो उसके गीत का गेय होना स्वाभाविक है। परंतु बंगाल से अंग्रेजी अंग्रेजी से हिंदी यानी भाषा तीसरे पड़ाव में आकर शब्द अर्थ और संगीतिक परिवर्तन कर सकती है परंतु, गीतांजलि के मामले में ऐसा कुछ नहीं है। संगीतकार अगर गीतांजलि के हिंदी वर्जन का कंपोजीशन तैयार करें तो उन्हें बिल्कुल कठिनाई नहीं होगी यह मेरा दावा है। यह दावा इसलिए भी कर रहा हूं क्योंकि माटी की गगरिया गीत सुनकर लोगों को नाचते हमने देखा है। लुकमान शेषाद्री जब इस गीत को गया करते थे पूरा माहौल भौतिक एवं आध्यात्मिक नर्तन के लिए बाध्य हो जाता। अगर यहां एक भी कविता का उदाहरण पेश किया तो आपकी पढ़ने की इच्छा कदाचित कम न हो जाए इसलिए मैं आग्रह करूंगा कि आप यदि कवि है तो इस कृति को अवश्य पढ़ें क्योंकि, आपके मस्तिष्क सार्वकालिक गीत रचना का साहस बढ़ जाएगा। फिर भी बात ही देता हूं मैं नहीं जानता मीत कि तुम कैसे गाते हो मधुर गीत ! यह तो एक उदाहरण मात्र है। भवानी दादा गीत लोक व्यवहार के गीत हैं , जिनको दार्शनिक एवं आध्यात्मिक दृष्टिकोण से परखें तो उनके गीत सकारात्मक जीवन दर्शन अनावरित करते हैं। पूज्य भवानी दादा का समकालीन वातावरण कुल मिलाकर केवल पॉलिटिकल नहीं था स्वतंत्रता के लिए संघर्ष और उसमें शामिल व्यक्तित्व विराट भावी हुआ करते थे। जिसका प्रभाव उनके सृजन पर देखा जा सकता है। फिर चाहे निराला फणीश्वर नाथ रेणु गोपाल दास नीरज हरिवंश राय बच्चन, जैसे महाकवि क्यों न हों? कृति पर चर्चा अंतिम नहीं है, यह एक परिचय मात्र है,। उनकी जीवनी रचनाकारों के लिए एक नया मार्ग प्रशस्त करती है जो कविताई को पुरस्कार का मार्ग बनाते हैं। उनके लिए भी जो मंच पर सस्ती लोकप्रियता के लिए आधे आधे घंटे तक चुटकुले बाजी करते हैं जिसे टोटका कह सकते हैं और फिर शब्दों की स्वेटर दिखा दिया करते हैं।
शनिवार, जनवरी 11, 2025
नार्मदीय ब्राह्मण समागम इंदौर से live
Live -|| Day-1 || नार्मदीय ब्राह्मण समागम 2025 || 11-01-2025 || इंदौर
रविवार, अगस्त 25, 2024
मानसिक स्मृति कोष : से उभरते दृश्य
जीवन में इंद्रिय सक्रियता एक ऐसी महत्वपूर्ण प्रक्रिया है जो हमारे जीवन के संचालन के अलावा स्मृति कोष में जानकारी को सुरक्षित करने में भी सहायक है।
इस संबंध में आगे चर्चा करेंगे उसके पहले आपको बता देना आवश्यक है कि - हम केवल घटनाओं के पुनरूत्पादन के विषय में चर्चा कर रहे हैं न कि उस जैसी घटना की पुनरावृत्ति के विषय पर।
इंद्रियों के माध्यम से हम सूचनाओं एकत्र करते हैं और वह सूचना हमारे स्मृति कोष में संचित हो जाती है। अर्थात हमारे मस्तिष्क में केवल वही बात जमा होती है जिसे हम गंध,ध्वनि, आवाज़, स्वाद, दृश्य, भाव, के रूप में महसूस करते हैं।
प जो जो घटनाएं हम महसूस कर सकते हैं केवल वह ही हमारे स्मृति कोष में जमा होती है ।
आते हैं हमारा स्मृति कोष एक तरह से एक डाटा बैंक है।
मस्तिष्क में संचित सूचनाओं को क्या हम पुनरूत्पादित कर सकते हैं अथवा क्या ऐसी जानकारी का पुनरूत्पादन हो सकता है?
हम मस्तिष्क में संचित सूचनाओं को स्वयं भी पुनरुत्पादित कर सकते हैं तथा कई बार ऐसी घटनाएं जो स्मृति कोष में संचित होती हैं, स्वयं ही पुनरूत्पादित हो जातीं हैं।
इनका पुनरूत्पादन जागते हुए या सोते हुए कभी भी हो सकता है।
जागृत अवस्था में हम घटित घटनाओं को भौतिक रूप से क्रिया रूप में कर सकते हैं।
लेकिन जब हम सोते हैं तब हमें यह सब कुछ आभासी रूप में दिखाई देता है।
अब आप सोच रहे होंगे कि क्या नेत्रहीन व्यक्ति कोई घटना स्वप्न में देख सकता है ?
यदि व्यक्ति की देखने की क्षमता जिस उम्र तक उपलब्ध होती है उसे उम्र तक के दृश्यों के आधार पर नेत्रहीन व्यक्ति स्वप्न देख सकता है। अर्थात उसके स्मृति कोष से स्वप्न के रूप में केवल वही दिखाई देता है जो उसके स्मृति कोष में संचित है।
परंतु जन्मांध व्यक्ति केवल घटित हुई घटनाओं का स्वप्न के रूप में पुनरुत्पाद
ध्वनि अर्थात वार्तालाप, गंध , स्पर्श के रूप में महसूस कर सकता है।
इसी क्रम में एक प्रश्न यह है कि जन्म से मूकबधिर व्यक्ति स्वप्न देख सकता है ?
वास्तव में हम स्वप्न नहीं देखे बल्कि हम महसूस करते हैं। जन्म से मूकबधिर व्यक्ति केवल स्वप्न आने पर घटना को महसूस करता है।
जागृत अवस्था में ऐसे व्यक्ति मूकबधिर व्यक्ति कि मस्तिष्क में घटनाओं का पुनरूत्पादन सामान्य लोगों की तरह ही महसूस होता है।
अब आप हेलेन केलर जैसी किसी व्यक्ति की कल्पना कीजिए। जो देख सुन और बोल नहीं पाती थी, फिर भी महसूस कर लेने मात्र से उन्होंने अपने दौर में ऐसी ऐसी विचार रखे जो सोशियो इकोनामिक पॉलीटिकल परिस्थितियों के लिए उपयोगी साबित हुए। केवल महसूस कर लेने मात्र से हमारे ही स्मृति कोष में सूचनाएं जमा हो जाती हैं। जिसका पुनरूत्पादन सामान्य और सामान्य से बेहतर परिणाम देता है। हेलेन केलर इसका एक बेहतर उदाहरण है।
हेलेन केलर की जीवन गाथा बार-बार पढ़ने को मन करता है। एक लिंक में आपके साथ साझा कर रहा हूं, मेरे दृष्टिकोण में हेलेन केलर की जिंदगी इस यूट्यूब लिंक पर आपके लिए प्रस्तुत है
https://youtu.be/Cu_1wBT76fk
स्टीफन हॉकिंग भी दूसरे बेहतरीन उदाहरण के रूप में एक प्रतिष्ठित वैज्ञानिक दार्शनिक के रूप में स्थापित है।
जब भी कभी सपने में कोई घटना या घटनाओं का पुनरूत्पादन अर्थात री- क्रिएशन होता है तो वह केवल आभासी होता है। जबकि हमारे मस्तिष्क में जागृत अवस्था में पुनरूत्पादन होने से उसकी सकारात्मक एवं नकारात्मक दोनों तरह के प्रभाव पड़ते हैं।
कभी-कभी आपने महसूस किया होगा कि किसी व्यक्ति के साथ आपके अच्छे अनुभव न रहने के कारण आप उसकी उपस्थिति में असहजता महसूस करते हैं
और किसी व्यक्ति के साथ आपके विचार मिलने अथवा उनके साथ बिताए गए बेहतरीन समय के कारण आप सहज और उत्साहित होते हैं।
कई बार ऐसी स्थितियों के कारण पाप निर्माण भी कर सकते हैं। तो कई बार ऐसी स्थितियां विनाशकारी भी बन सकती है।
यह व्यक्तिगत चिंतन है, संभावना है कि आप इस चिंतन से सहमति न रखते होंगे, इस हेतु मैं आपका अग्रिम आभार व्यक्त करता हूं। जो उपरोक्त विवरण से सहमति रखते हैं उनके प्रति भी समान भाव से सम्मान और आभार व्यक्त करता हूं।
#Psychology, #स्वप्न #निद्रा #संचित_स्मृति_कोष
#हेलेन_केलर #गिरीशबिल्लौरेमुकुल #हॉकिंग्स
शनिवार, अगस्त 10, 2024
life Sketch | আলোচক শ্রী মলয় দাশগুপ্ত | तीन देशों के राष्ट्रगान में टैगोर
গতকাল অর্থাৎ ৭ই আগস্ট ছিল রবীন্দ্রনাথ ঠাকুরের স্মরণ দিবস।
গতকালের পর্বে আমরা শুনেছি ঠাকুরের গান যা গেয়েছিলেন ডক্টর জাহাজের ডাক্তাররা সুলেরে নে।
@shiprasullere4379
@youtubecreators
@YouTube @worldview
🔗 গুরুদেব রবীন্দ্রনাথ ঠাকুরের স্মরণে
गुरुदेव रविंद्र नाथ टैगोर के स्मृति दिवस 7 अगस्त पर
• মন মোরো মাগেরো শোঙ্গি অংশ 01 | स्वर...
आज हम प्रस्तुत कर रहे हैं श्री मलय दासगुप्ता की दृष्टि में #गुरुदेव_रविंद्रनाथ_टैगोर
के संस्मरण
जिसे आप मेरे ब्लॉग मन की बात पर यहां पढ़ सकते हैं
https://girishbilloremukulji.blogspot...
#podcast #facts
#NationalAnthem of #bangladesh
• Amaar Sonar Bangla Ami Tomai Bhalobas...
National Anthem of India
• National Anthem 52 Second || भारतीय र...
National Anthem of
#SriLanka
• Sri Lankan National Anthem
Rabindranath Tagore has contributed to all the three national anthems mentioned above. Two national anthems have been written by Rabindraji and the tune of the third national anthem has been composed by Ravindra Nath Tagore .
मंगलवार, अगस्त 06, 2024
B'desh Crisis | दक्षिण एशिया के लिए खतरे की घंटी ? 02
( #डिस्क्लेमर:हमारे इस विमर्श का उद्देश्य केवल दक्षिण एशिया में शांति एवं मित्र राष्ट्रों के सोशियो इकोनामिक डेवलपमेंट पर पढ़ने वाले सकारात्मक एवं नकारात्मक प्रभाव की समीक्षा करना है। हमारी इस विमर्श का कोई स्थानीय एवं अंतर्राष्ट्रीय पॉलिटिकल उद्देश्य कदापि नहीं है। )
पिछले भाग में अपने जाना कि बांग्लादेश में सत्ता परिवर्तन के लिए किए गए तख्तापलट एक वैश्विक स्तर पर की गई करवाई हो सकती है अब आगे ...)
हमने आपको बताया था कि बांग्लादेश में डेमोग्राफिक अरेंजमेंट में 15 करोड़ मुसलमान हैं और इसके बाद 1.31 करोड़ जनसंख्या हिंदुओं की है. इनके अलावा बांग्लादेश में 10 लाख बौद्ध धर्म को मानने वाले, 4.95 लाख ईसाई और 1.98 लाख मत एवं संप्रदायों से जुड़े हुए लोग रहते हैं।
सांप्रदायिकता को लेकर पाकिस्तान की तरह बांग्लादेश भी अत्यधिक संवेदनशील है। आजादी के बाद अभिभाजित पाकिस्तान के इस हिस्से में लगभग 27 प्रतिशत हिंदू आबादी निवास करती थी परंतु अब मात्र 8% आबादी ही हिंदू आबादी है।
भारत में नागरिकता के परिपेक्ष में कानून लाने का उद्देश्य भी मानव अधिकार की रक्षा ही था। बांग्लादेश के अल्पसंख्यक समुदाय विशेष रूप से हिंदू और बौद्ध कथित रूप से इस आंदोलन के निशाने पर हैं।
उदाहरण स्वरूप नवग्रह मंदिर तथा अन्य मंदिरों को निशाना बनाना, हिंदू परिवारों के घर में तोड़फोड़ करना, इस्कॉन मंदिरों पर हम लोग को छात्र आंदोलन कहना अनुचित है। बांग्लादेश में मुस्लिम अतिवादियों ने कई वर्षों से हिंदू ब्लॉगर्स को निशाने पर रखा गया था और उनकी बेरहमी से हत्या भी कर दी थी।
आंदोलनकारी छात्र यह भूल चुके हैं कि, पाकिस्तान ने अपने पूर्वी हिस्से यानी वर्तमान बांग्लादेश में एक लाख से अधिक महिलाओं को बलात्कार का शिकार बनाया तथा लगभग 30 लाख लोगों मौत के घाट उतार दिया था। बांग्लादेश की युवा पीढ़ी को यह याद रखना चाहिए कि वे चीनी और पाकिस्तानी साजिशों का मोहरा बन गए हैं।
अब तो यह तय हो चुका है कि पाकिस्तान और चीन मिलकर भारत विरोधी वातावरण निर्मित करने के लिए दक्षिण एशिया में सक्रिय हो चुके हैं।
पिछले भाग में अपने जाना कि बांग्लादेश में सत्ता परिवर्तन के लिए किए गए तख्तापलट एक वैश्विक स्तर पर की गई करवाई हो सकती है अब आगे ...)
हमने आपको बताया था कि बांग्लादेश में डेमोग्राफिक अरेंजमेंट में 15 करोड़ मुसलमान हैं और इसके बाद 1.31 करोड़ जनसंख्या हिंदुओं की है. इनके अलावा बांग्लादेश में 10 लाख बौद्ध धर्म को मानने वाले, 4.95 लाख ईसाई और 1.98 लाख मत एवं संप्रदायों से जुड़े हुए लोग रहते हैं।
सांप्रदायिकता को लेकर पाकिस्तान की तरह बांग्लादेश भी अत्यधिक संवेदनशील है। आजादी के बाद अभिभाजित पाकिस्तान के इस हिस्से में लगभग 27 प्रतिशत हिंदू आबादी निवास करती थी परंतु अब मात्र 8% आबादी ही हिंदू आबादी है।
भारत में नागरिकता के परिपेक्ष में कानून लाने का उद्देश्य भी मानव अधिकार की रक्षा ही था। बांग्लादेश के अल्पसंख्यक समुदाय विशेष रूप से हिंदू और बौद्ध कथित रूप से इस आंदोलन के निशाने पर हैं।
उदाहरण स्वरूप नवग्रह मंदिर तथा अन्य मंदिरों को निशाना बनाना, हिंदू परिवारों के घर में तोड़फोड़ करना, इस्कॉन मंदिरों पर हम लोग को छात्र आंदोलन कहना अनुचित है। बांग्लादेश में मुस्लिम अतिवादियों ने कई वर्षों से हिंदू ब्लॉगर्स को निशाने पर रखा गया था और उनकी बेरहमी से हत्या भी कर दी थी।
आंदोलनकारी छात्र यह भूल चुके हैं कि, पाकिस्तान ने अपने पूर्वी हिस्से यानी वर्तमान बांग्लादेश में एक लाख से अधिक महिलाओं को बलात्कार का शिकार बनाया तथा लगभग 30 लाख लोगों मौत के घाट उतार दिया था। बांग्लादेश की युवा पीढ़ी को यह याद रखना चाहिए कि वे चीनी और पाकिस्तानी साजिशों का मोहरा बन गए हैं।
अब तो यह तय हो चुका है कि पाकिस्तान और चीन मिलकर भारत विरोधी वातावरण निर्मित करने के लिए दक्षिण एशिया में सक्रिय हो चुके हैं।
कुछ यूट्यूबर जैसे अंकित अवस्थी ने बताया है कि शेख हसीना की सरकार के विरुद्ध अमेरिका ने भी वातावरण तैयार किया है। उनका तर्क है कि अमेरिका द्वारा शेख हसीना सरकार को सैन्य अड्डा स्थापित करने के लिए पहले दबाव डाला गया था। परंतु शेख हसीना ने उनके प्रस्ताव को नकार दिया था।
इसके अतिरिक्त अमेरिका से जारी बयान से भी लगता है कि आर्मी कार्रवाई को संतोष जनक बताया है जबकि ग्राउंड रियलिटी यह है कि 24 घंटे से अधिक समय भी जाने के बाद हिंदू माइनॉरिटी, शेख हसीना की पार्टी अवामी लीग के सदस्यों एवं पदाधिकारीयों को हिंसा का शिकार बनाया जा रहा है।
अगर यह स्थिति नियंत्रित नहीं होती है तो उन की पीसकीपिंग फोर्स को अपना दायित्व निभाना होगा।
फिलहाल बांग्लादेश में अराजकता के लिए अमेरिका को जिम्मेदार ठहराया जाना जल्दबाजी होगा।
इसके परिणाम स्वरुप भारतीय उप महाद्वीप में अस्थिरता को स्थान मिलता नजर आ रहा है।
यहां यह कहना भी गलत नहीं होगा कि चीन और पाकिस्तान का यह प्रयास है कि भारत की स्थिति दुश्मनों से घिरे इजरायल की तरह हो जाए। ताकि चीन अपने विस्तारवादी एजेंडे को संपूर्ण दक्षिण एशिया क्षेत्र में लागू कर सके।
अंतर्राष्ट्रीय राजनीतिक स्थिति जो भी हो किसी भी देश में सामाजिक अस्थिरता फैलाना मानव अधिकार का सबसे अपराध है।
भारत के सीमावर्ती राज्यों मणिपुर असम पश्चिम बंगाल में अब सीमा सुरक्षा भारत के लिए चुनौती बन चुका है। निश्चित तौर पर भारत सरकार इस मुद्दे पर भी विशेष ध्यान देगी।
भारतीय उपमहाद्वीप में भारत को अलग-अलग कर देने की चीन की कोशिश है पहले भी जारी रही है इसका विवरण हम पिछले पॉडकास्ट में प्रस्तुत कर चुके हैं।
#बांग्लादेश #Socio_Economic_Effects
#अजितडोभाल #DrSJaishankar
#खालिदाजिया #अजितभारतीलाइव
#ISI #चीन_का_षड्यंत्र
#तख्तापलट #बांग्लादेश #China #JamayateSlami #भारतसरकार
India's Foreign Policy
यहां यह कहना भी गलत नहीं होगा कि चीन और पाकिस्तान का यह प्रयास है कि भारत की स्थिति दुश्मनों से घिरे इजरायल की तरह हो जाए। ताकि चीन अपने विस्तारवादी एजेंडे को संपूर्ण दक्षिण एशिया क्षेत्र में लागू कर सके।
अंतर्राष्ट्रीय राजनीतिक स्थिति जो भी हो किसी भी देश में सामाजिक अस्थिरता फैलाना मानव अधिकार का सबसे अपराध है।
भारत के सीमावर्ती राज्यों मणिपुर असम पश्चिम बंगाल में अब सीमा सुरक्षा भारत के लिए चुनौती बन चुका है। निश्चित तौर पर भारत सरकार इस मुद्दे पर भी विशेष ध्यान देगी।
भारतीय उपमहाद्वीप में भारत को अलग-अलग कर देने की चीन की कोशिश है पहले भी जारी रही है इसका विवरण हम पिछले पॉडकास्ट में प्रस्तुत कर चुके हैं।
#बांग्लादेश #Socio_Economic_Effects
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#खालिदाजिया #अजितभारतीलाइव
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