संदेश

Wow.....New

Is everything predestined ? Dr. Salil Samadhia

चित्र
आध्यात्मिक जगत के बड़े से बड़े प्रश्नों में एक है  - क्या सब कुछ पूर्व निर्धारित है ?  (Is everything predestined ? ) यदि हां , तॊ फिर Free will या कर्म की स्वतन्त्रता का क्या अर्थ है ??  फिर तॊ कोई पाप भी करे तॊ वह पूर्व निर्धारित ही हुआ ?  और अगर सब पूर्व निर्धारित नही है ..तॊ परम सत्ता की सर्वज्ञता किस बात की ??  फिर तॊ यह भी ज़रूरी नही कि  जगत की सब चीज़ें एक order या discipline में ही हों  !  जगत घोर अराजक(Chaotic) भी हो सकता है ??  तब तॊ कर्म का फल भी अनिश्चित हो सकता है !  यानि ,  तब  तॊ कार्य-कारण का भी कोई संबध नही रह जाता ??  ...अर्थात   सब अनिश्चित है ..तॊ मेरे पाप का फल ..पुण्य भी हो सकता है ! यह puzzle सिर्फ आध्यात्मिक जगत की ही नही , बल्कि ,  Uncertainty में Certainty ..मॉडर्न साइंस की भी बड़ी से बड़ी गुत्थी है !! (लगभग सारे ही धर्म ..हिंदू ,इस्लाम, क्रिश्चियनिटी व अन्य भी, पूर्व निर्धारणवाद को मानते हैं !  जैन दर्शन भी कर्म सिद्धांत के तहत partially इसे मानता है !) पिछ्ली पोस्ट में यह वार्तालाप था  - Q. क्या सब कुछ पूर्व निर्धारित है ?  Ans - आपके लिए "नही&q

साहित्य शिल्पी डॉ सुमित्र का महा प्रयाण

चित्र
   70 के दशक में अगर किसी महान  व्यक्तित्व से मुलाकात हुई थी तो वे थे डॉ. राजकुमार तिवारी "सुमित्र" जी।   सुमित्र जी के माध्यम से साहित्य जगत को पहचान का रास्ता मिला था। गौर वर्णी काया के स्वामी, मित्रों के मित्र, और राजेश पाठक प्रवीण के  साहित्यिक गुरु डॉक्टर राजकुमार सुमित्र जी के कोतवाली स्थित आवास में देर रात तक गोष्ठियों में शामिल होना, अपनी बारी का इंतजार करना उससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण होता था उनके व्यक्तित्व से लगातार सीखते रहना। स्व. श्री घनश्याम चौरसिया "बादल" के माध्यम से उनके घर में आयोजित एक कवि गोष्ठी में स्वर्गीय बाबूजी के साथ देर रात तक हुई बैठक में लगा कि यह कवि गोष्ठी नहीं बल्कि कवियों को निखारने की कार्यशाला है।   धीरे-धीरे कभी ऐसी घरेलू बैठकों की आदत सी पड़ चुकी थी। वहीं शहर के नामचीन साहित्यकारों से मुलाकात हुआ करती थी। उनके कोतवाली के पीछे वाले घर को साहित्य का मंदिर कहना गलत न होगा।   तट विहीन तथाकथित प्रगतिशील कविताओं के दौर में गीत, छंद, दोहा सवैया, कवित्त, आदि के अनुगुंजन ने लेखन को नई दिशा दी थी।   गेट नंबर 2 के पास स्थित नवीन द

राम राज्य की परिकल्पना परंतु राम के प्रतीकों से घृणा...?

चित्र
(इस आर्टिकल में प्रस्तुत समस्त रेखाचित्र डा रेणु पांडे एवम् श्री अरुण कांत पांडे द्वारा बनाए गए हैं)  आश्चर्य होता है जब कोई केवल राम राज्य की स्थापना चाहते हैं किंतु राम के प्रतीकों को स्वीकार नहीं करते। ऐसे लोगों को राम के प्रति घृणा भी है।    महात्मा गांधी ने रामराज्य की परिकल्पना की थी। रामराज्य का अभिप्राय *राज्य में संपूर्ण जड़ चेतन की शुचिता एवं जीवन दर्शन की पवित्रता* से है।    रामराज्य व्यापार, वाणिज्य, राजनीति, परिवार समाज और राष्ट्र के संपूर्ण स्वरूप में पवित्रता का समावेशन दृष्टि गोचर होता है।      रामराज्य में किसी प्रकार की विषमता , भेद की दृष्टि से देखने एवं किसी भी प्रकार से वर्ण भेद को प्रश्रय देने की सुविधा नहीं होती है।   कुछ दिन पूर्व सुप्रसिद्ध पत्रकार आशुतोष यह कह रहे थे कि- "मनुष्य को भगवान कैसे माना जा सकता है राम को या तो मानव कहो या भगवान।"    शायद श्री आशुतोष ने अद्वैत को समझा ही नहीं। अद्वैत का प्रथम अक्षर *अ* भी आशुतोष को समझ में न आ सका।  मेरी दृष्टि में यह आशुतोष जी के मानसिक पर्यावरण का विषय है उसे पर ज्य

भारतीय कालक्रम से 1381 वर्ष गायब हैं .. वेदवीर आर्य ने तथ्यात्मक खंडन करने वाले को एक मिलियन यू एस डालर के नकद पुरस्कार की घोषणा

चित्र
An Open Challenge to Historians The Missing 1381 Years in Indian Chronology Pathbreaking and intensive research based on epigraphic, archaeo-astronomical, and archaeological evidence has confirmed that modern historians have mistakenly followed wrong sheet anchors of chronology which led to the contraction of 1381 years of Indian chronological history. The epigraphic, literary, and traditional evidence conclusively establishes that Buddha attained nirvana in 1864 BCE not 483 BCE. You may doubt the findings of this research but he throws an “open challenge” to historians to prove these findings wrong and claim a monetary prize of one million US Dollars. Monetary Prize: One Million US Dollars (Rs.8,00,00,000/-) The 3-Point Debate: Modern historians have committed the following three monumental blunders in Indian chronological history. 1. The epigraphic evidence suggests that there were two epochs of the Śaka era and two epochs of the Vikrama era. The early Śaka era commenced in 583 BCE a

धर्म का बहुविकल्पीय होना जरूरी है..!

चित्र
*धर्म का बहुविकल्पीय होना जरूरी है* *गिरीश मुकुल*     धर्म अगर विकल्पों से युक्त ना हो तो उसे धर्म कहना ठीक नहीं है। धर्म का सनातन स्वरूप यही है। या कहिए सनातन धर्म की विशेषता भी यही है। हम धर्म को परिभाषित करने और समझने के लिए बहुतेरे  कोणों उपयोग और अंत में यह कह देते हैं कि-" भारत मैं पूजा पाठ का पाखंड फैला रखा है ब्राह्मणों ने।   सनातन धर्म को केवल  पूजा पाठ एवं कर्मकांड से जोड़ना अल्प बुद्धि का परिचायक है। सनातन एक व्यवस्था है बहुविकल्पीय व्यवस्था है सनातन में नवदा-भक्ति का उल्लेख मिलता है। श्रवण, कीर्तन,स्मरण, पादसेवन,अर्चन , वंदन , दास्य , सख्य  एवं आत्मनिवेदन -  यहां यह स्पष्ट हो जाता है कि जो हम रिचुअल्स अर्थात प्रक्रियाएं अपनाते हैं जिसे सामान्य रूप से कर्मकांड कहते हैं ही सनातन नहीं है बल्कि 9 प्रकार की उपरोक्त समस्त भक्ति सनातन व्यवस्था में वर्णित है।    आप सभी समझ सकते हैं कि नवदा भक्ति से ब्रह्म तत्व की प्राप्ति संभव है।  बहुत से पंथों मतों और संप्रदायों संस्थापक द्वारा दिए गए निर्देशों का ही पालन होता है। जबकि सनातन धर्म में उपासना को भी बंधनों से

इतिहास पुरुष राजाधिराज श्री राम - मेरी नई ऐतिहासिक पुस्तक

चित्र
   भारतीय सभ्यता और संस्कृति के विकास को समझने के लिए उसके ऐतिहासिक दृश्य को  सामने लाने की आवश्यकता है।   देशकाल स्थिति के अनुसार उपलब्ध संसाधनों के माध्यम से इतिहास को संयोजित किया जाता है। प्राचीन विश्व में इतिहास को सजाने के लिए, तथा वर्तमान में तत्कालीन परिस्थितियों को जानने के लिए पुरावशेष, शिलालेख, ताम्रपत्र,लौहपत्र, स्वर्णपत्र, रजतपत्र, सिक्के, लिखे हुए दस्तावेज, गुफा चित्र आदि का उपयोग किया जाता है। मेरा यह मानना है कि -"इस तरह के ऐतिहासिक प्रमाण केवल लगभग चार या पांच हज़ार वर्ष पूर्व तक सुरक्षित रहते हैं!"   परिवर्तनशील विश्व में जो भी कुछ कथाओं में अंकित होता है उसे ऐसे साक्ष्यों के अभाव में मिथक कह दिया जाता है।"    भारत में ही नहीं संपूर्ण विश्व में भी श्रुत की परंपरा रही है। जो वंशानुगत आने वाली पीढ़ियों को संसूचित की जाती रही है। श्रुत परंपरा में एक समस्या होती है वह यह कि-"ऐतिहासिक घटनाक्रमों की सूचना संवाहक उसमें परिवर्तन जानबूझकर अथवा अनजाने में कर देते हैं।" जिसका दूरगामी परिणाम होता है। भगवान श्री रामचंद्र के साथ यही घटनाक

Comfort Zone

चित्र
कंफर्ट जोन का सामान्य सा अर्थ यह होता है कि कोई भी व्यक्ति जो आसन्न परिस्थितियों से उत्पन्न चुनौतियों का सामना करने की स्थिति में नहीं होता, अर्थात वह शक्ति विहीन हो जाता है।        किसी भी तरह से वह अपने आप को सुरक्षित रखने की और उसे चुनौती से दूर रहने या बचने की कोशिश करता है।     सफल वे लोग ही होते हैं जो अपने कंफर्ट जोन से बाहर हो जाते हैं। कंफर्ट जोन से बाहर आने के लिए रिस्क लेने की जरूरत है। परंतु रिस्क लेने के परिणाम और रिस्क लेने की प्रक्रिया से होने वाले नुकसान का गुणा भाग करते हुए लोग अक्सर रिस्क उठाने नहीं चाहते कुल मिलाकर भी अपने कंफर्ट जोन में रहना चाहते हैं। रिस्क न लेने की आदत कंफर्ट जोन में बनी रहने की प्रवृत्ति की प्रथम सूचना है। भले ही किसी को कुछ हासिल ना हो परंतु वह अपने कंफर्ट जोन को छोड़ना नहीं चाहता। उसे मालूम है कि यदि हम रिस्क नहीं लेंगे तो हमें कुछ हासिल नहीं होगा जीतते केवल रिस्क उठाने वाले हैं No risk no gain के सिद्धांत पर चलने वाले लोगों की संख्या अगर बढ़ जाती है तो किसी भी देश के विकास की संभावना शून्य समझिए।     हाथी को सुई के छेद से निकाला