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5.2.11

पद-जात्रा


सर्किट-हाउस
अध्याय दो
 Novel By :-Girish Billore Mukul,969/A-II,Gate No.04 ,Jabalpur M.P.

                 जुगाड़,इंतज़ाम,व्यवस्था, कानून की ज़द में न हो तो भी क़ानून की ज़द में लाकर करो यही है सरकारी चाकरी का सूत्र हैं. इन सूत्रों का प्रयोग करते जाइये नौकरी करते जाइये. ये शिक्षा दे रहे थे तहसीलदार जो अपने समकक्ष अधिकारीयों को अधीनस्त समझते थे,राजस्व विभाग के ये साहब अपने आप को सरकार की सगी औलाद और अन्य विभाग के अफ़सरों और कर्मचारियों को सरकार की सौतेली औलाद मानने वाले ये तहसीलदार साब तो क्या इनका रीडर भी अपने इलाके के अन्य विभागों को अपनी जागीर मानता है .इसी बातचीत के दौरान टेबल पर रखा फ़ोन मरघुल्ली आवाज़ में कराहा. बड़े घमंड से फ़ोन उठाया गया यस सर ,जी सर, ओ के सर , और फ़िर सर सर ! जी इसके अलावा किसी ने कुछ नहीं सुना. फ़ोन बंद करके तहसीलदार बोला - सी०एम साब हैलीकाप्टर से इसी हफ़्ते भ्रमण पर हैं. एस०डी०एम० साब मीटिंग लेंगें आप आ जाना गुरुवार को .बी०डी०ओ० बोला : जी,ज़रूर बाकियों ने हां में हां मिलाई. चाय-पानी के बाद सभा बर्खास्त हो गई. पौने पांच बज चुके थे सबकी तन्ख्वाह जस्टीफ़ाईद हुई सब निकल पड़े अपने अपने बंगलों में. बंगले क्या बाहर से बूचड़ खाने नज़र आते थे. बरसों से उसी पीले रंग से रंगे जाते थे वो भी दीवाली के बाद. जब टेकेदार की बाल्टी-कूची से  जिला और सब डिवीजन लेबल तक को पीला किया जा चुका होता था.बचा खुचा रंग पावर के हिसाब से सबसे पहले तहसीलदार, फ़िर नायब, फ़िर बी०डी०ओ० फ़िर बचा तो बाक़ी सबके बंगलों में कूची फ़ेरने की रस्म अदा हो जाया करती थी.  
                  गुरुवार को खण्ड स्तर के सारे अधिकारी सरकार के दरबार में पहुंच गये. तहसीलदार यानी रुतबेदार के आफ़िस में एस०डी०एम० कलैक्टर  साब के नुमाइंदे के तौर पर पधारे. आई०ए०एस०थे सो डाक्टर,एस०डी०ओ०पी०,थाना प्रभारी, परियोजना अधिकारी, कृषि-अधिकारी, बी०ई०ओ० सब बिफ़ोर टाईम. गुरुवार को भी दाढ़ी बना के भागते चले आये. वरना गुरुवार को न तो नाई की दूकान की तरफ़ झांकते और न ही सेविंग किट की याद ही करते . डा०मिश्रा आते ही बोले :- गुरुवार, को सेविंग करना पड़ा बताओ. नौकरी में धरम-करम सब चट जाता है
गुप्ता बी०डी०ओ० बोला:-’अरे, जित्ते अधर्म हम करतें है, उसका प्रायश्चित, कर लेंगें रिटायर होकर..?
   इनको मालूम नहीं चित्रगुप्त ने इनकी जीवनी में सिर्फ़ पाप ही पाप लिखे हैं. ये बेचारे तो सात जन्म तक प्रायश्चित करें तो भी नहीं पाप कटेंगें . पल पल बोले झूठ का पाप, दण्डवत का पाप,झूठी दिलासा का पाप, कमीशन-खोरी का पाप, पता नहीं क्या क्या लिख मारा चित्रगुप्त महाराज़ ने. ऊपर से बीवी को बच्चों को, बाप को,भाई को जाने किस किस को मूर्ख बनाने का पाप सब कुछ दर्ज़ किये जा रहें हैं चित्रगुप्त जी महाराज़.
                     खैर, छोड़िये चित्रगुप्त जी को जो करना है सो उनको करने देते है हम इन लोगों पे आते हैं जो देश के लिये ज़रूरी भी हैं और देश की मज़बूरी भी. सो सी०एम० साब ले गांव गांव पद जात्रा निकलवाई. तपती धूप में जनता के बीच किताब पड़ने की ड्यूटी लगाई. ताकि़ आम आदमी जाने कि कि उनको कैसे आगे आना है और  कैसे लाभ उठाना है. एक अधिकारी के हाथ में सौंपी गई थी वो किताब जिसे बांचना था. दल के दल गांव गांव जाते किताब बांचते फ़िरते. तहसीलदार के साथ जब परियोजना अधिकारी गया तो भौंचक रह गया ग्राम पिचौर  में पहुंचते ही पटवारी से व्हाया आर०आई० नायब फ़िर तहसीलदार बने शर्मा ने गांव के अंदर आते ही कोटवार के ज़रिये सरपंच को बुलावा भेजा. तब मोबाइल फ़ोन नही थे वरना पटवारी भी आधा फ़र्लांग जाने की तक ज़हमत न उठाता, जाना पड़ा बेचारे को पाजामा सम्हाला तेज़ कदमों से बुलावे के लिये रवाना हुआ क्या आवाज़ थी कोटवार की. चार खेत दूर तक पहुंच गई  गांव से दूर उस खेत तक जहां कल्लू पटेल मोटर से पानी दे रहा था… पुकार ये थी..”ओ कल्लू रै सिरपंच, तहसील साब बुलात है रे………..” रे को ठीक उसी तरह खींचा जैसे सियासी पार्टियां किसी मुद्दे को बेइंतहां खींचतीं हैं  .

     सरपंच चिल्लाया :-”आत हौं रे तन्नक ठैर तो जा  रे कुटवार तैं चल मैं आ रओ , फ़िर खेत की झाड़ियों की ओट में बैठ के शंका निवारण की जो लघु थी . नया-नया सरपंच था डरा कि कोई अपराध तो नहीं हो गया . वैसे उसने पहली कमीशन खोरी कर ली थी . स्कूल में रंगाई-पुताई,शौचालय बनाने के लिये बी०डी०ओ० दफ़्तर से मिले पांच हज़ार के चैक से चालीस परसेंट का वारा न्यारा सी०ई०ओ० दफ़्तर के पंचायत साब के मार्गदर्शन में हुआ. साठ परसेंट में काम हुआ. उसे भय था कि शायद तहसीलदार को भनक लग गई. आज़ उसी की जांच तो नहीं. इसी भय के मारे शंका हुई शंका लघु थी सो उसका निवारण खेत में ही कर लिया, सबके सामने कैसे करता बेचारा बताओ भला ?  
                                                  
                                       (निरंतर)

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