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सूचना का अधिकार कहीं ब्लैक-मेलिंग का साधन तो नहीं

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सूचना के अधिकार को लेकर लोग जिनको जागरूकता होनी चाहिये वे जागरूक हैं या नहीं ये एक चिंतन का विषय है किंतु कितने लोग सूचना के अधिकार का अनुप्रयोग किसी को ब्लैक-मेल करने के लिये करे इस बात पर विचार करना ज़रूरी है. हालिया दिनों में आर टी आई के बेजा स्तेमाल के मामला सामने आया जिसमें एक व्यक्ति ने एक महिला सह कर्मी के विवाह को लेकर सवाल पूछा था. बिजनेस-स्टैण्डर्ड  में प्रकाशित एम जे एंटनी के आलेख में दिये उदाहरण से पुष्टि होती कि दुरुपयोग होने लगा है-"  न्यायालय ने एक ऐसी अपील खारिज कर दी थी जिसमें आवेदक सभी निचली अदालतों में संपत्ति का एक मुकदमा हार जाने के बाद यह जानना चाहता था कि आखिर किस वजह से न्यायधीशों ने उसके खिलाफ फैसला सुनाया। खानपुरम और प्रशासनिक अधिकारी के इस मामले में दिए गए फैसले में कहा गया, 'कोई न्यायधीश यह बताने के लिए मजबूर नहीं है कि आखिर किस वजह से वह किसी निष्कर्ष पर पहुंचा।"  (संदर्भ:- बिजनेस-स्टैण्डर्ड )                              बेहतरीन कानून का दुरुपयोग होना भारत के लिये कितना घातक होगा  इस बात का अंदाज़ा भी होना चाहिये. अरविंद केजरीवाल   खु