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बुधवार, फ़रवरी 17, 2016

यूनिवर्सिटीयों को ब्रेनबम नहीं ईमानदार व्यक्तित्व बनाने दो

"भारतीय संविधान में स्वतंत्रता का अधिकार मूल अधिकारों में सम्मिलित है। इसकी 19, 20, 21 तथा 22 क्रमांक की धाराएँ नागरिकों को बोलने एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता सहित ६ प्रकार की स्वतंत्रता प्रदान करतीं हैं। भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता भारतीय संविधान में धारा १९ द्वारा सम्मिलित छह स्वतंत्रता के अधिकारों में से एक है." {साभार विकी}
                              राष्ट्रद्रोही नारों को  जे एन यू काण्ड में कन्हैयानामक युवक जो जे एन यू  का प्रेसीडेंट है गिरफ्तार हुआ तो हायतौबा मच गई . सर्वाधिक सब्सिडी पाने वाले इस यूनिवर्सिटी के छात्र यूनिवर्सिटी  के उद्देश्यों को धता बताते हुए  छात्र यदि अफ़ज़ल गुरु या बट को याद करते हैं इतना ही नहीं इन कुछ छात्रों ने जिनके पीछे बहुत कुछ ताकतें काम करती प्रतीत होतीं हैं देशद्रोह सूचक नारे लगाते हैं ........ बावजूद इसके कि हाफ़िज़ सईद { जिस पर  कोई भरोसा नहीं कर सकता है } ने  किनारा किया हो . हमारा अनुमान है वास्तव में इसके पीछे बरसों से एक ख़ास प्रकार का समूह सक्रीय है . जो केवल मानसिक रोगी बेहिसाबी बहस के रोग से ग्रसित हैं . इनकी संख्या इतनी है कि वे भारी मात्रा में अनिर्बान भट्टाचार, उमर खालिद, कन्हैया जैसे सैकड़ों  ब्रेन-बम तैयार हर शहर तैयार कर सकते हैं. 
इस देश के युवा में निर्माण की अदभुत क्षमता है किन्तु ब्रेनबम बनाने वालों ने उनको इस कदर दिग्भ्रमित किया कि उनकी आवाज़ रटाए हुए शब्द सुनकर बिट्टा जैसे व्यक्ति का ही नहीं देश के बच्चे बच्चे का मन दु:खी हुआ है जिनने 12 -13 दिन पहले अपनी आज़ादी और संविधान के प्रति आस्था व्यक्त की थी. 
दिग्भ्रमित युवा मकबूल बट, अफ़ज़ल गुरु अब कश्मीर पर विशेष संवेदना के प्रतीक बन चुके हैं . वैसे इनके पीछे बेहद खतरनाक बौद्धिक षडयंत्रकारियों की संख्या कुछ अधिक ही होना संभव है .  इस बीच स्थितियां खुल के  क्रमश: खुल कर सामने आ रहीं हैं विगत कई वर्षों से अफ़ज़ल गुरु को महिमा मंडित किया जाने का सिलसिला जे एन यू में जारी रहा है . यूनिवर्सिटी प्रशासन एवं स्थानीय प्रशासन के कानों में भनक पड़ी भी होगी तो भी ऐसे तत्वों के खिलाफ अफ़ज़ल गुरु के लिए माननीय सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के अपमान के लिए केस दर्ज क्यों नहीं हुआ. 
भारत की सुप्रीम अदालत के निर्णय के खिलाफ असंवैधानिक "ज्युडिशियल-मर्डर" जैसे शब्द का प्रयोग एक न्यायालयीन अपमान का मुद्दा भी है . 
खैर अगर हम सोशल मीडिया पर देखें तो सर्वत्र इन हरकतों की घोर निंदा जारी है . जो इस तथ्य की पुष्टि के लिए पर्याप्त है कि देश को राष्ट्र-द्रोही गतिविधियाँ कतई स्वीकार्य नहीं . बन्दूंको के बल पर आज़ादी की मांग करने वाले "ब्रेनबम" राष्ट्रद्रोही हैं ये तो अदालत तय करेगी जिन पर हमारा अटूट भरोसा है पर यूनिवर्सिटीज के वाइस-चांसलर्स एवं एवं चान्सलर्स को ये तय करना ही होगा कि कि- यूनिवर्सिटीयां ब्रेनबम बनाने की फैक्ट्री नहीं वरन ईमानदार व्यक्तित्व बनाने  का मंदिर है . 
भारतीय मीडिया ने इस विषय पर जो सजगता दिखाई उसे देखकर लगा कि चौता स्तम्भ केवल टी आर पी के चक्कर में नहीं वरन सचाई को उजागर करने एवं गलत बातों को रोकने के लिए अपनी ज़िम्मेदारी बखूबी निबाह रहा है .

      

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