Ad
चीन लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
चीन लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
रविवार, सितंबर 25, 2022
मिलिट्री तख्तापलट खबर और ग्लोबल टाइम्स खामोश..?
शुक्रवार और शनिवार दरमियानी रात से चीन में तख्तापलट की खबरों का बाजार गर्म हो गया। शनिवार अर्थात 24 सितंबर 2022 सुब्रमण्यम स्वामी जी ने ट्वीट करके चीन के हालातों पर सवाल खड़े कर दिए।
विश्व का समाचार बाजार इन दिनों सोशल मीडिया के माध्यम से बेहद प्रभावशाली बन गया है। आज ट्विटर पर नंबर एक पर शी जिनपिंग और नंबर दो पर बीजिंग शब्द सर्वाधिक बार प्रयोग में लाया जा रहा था।
भारतीय खबर रटाऊ मीडिया को बैठे-बिठाए मसाला मिल गया परंतु तथ्यात्मक जानकारी मीडिया हाउसेस में इन पंक्तियों के लिखे जाने तक अनुपलब्ध रही है।
आइए हम बताते हैं कि किन कारणों से यह खबर इन दिनों विश्व के समानांतर, मीडिया न्यू मीडिया अथवा सोशल मीडिया पर वायरल है कि चीन में मिलिट्री तख्तापलट हो चुका है?
[ ] जब भी चीन के मामले में कोई खबर सुर्खियों में आती है तब ग्लोबल टाइम्स उसे तुरंत रिस्पॉन्ड करता है। परंतु इस खबर के संदर्भ में ग्लोबल टाइम्स की चुप्पी का अर्थ मौन स्वीकृति लक्षण तो नहीं?
[ ] शंघाई को-ऑपरेशन संगठन की बैठक में अंतर्राष्ट्रीय पत्रकारों ने चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग को आज सहज रूप में देखा तथा उसका उल्लेख भी किया।
[ ] एक पत्रकार जेनिफर जैंग ने ऐसा वीडियो रिलीज किया जिसमें 80 किलोमीटर तक मिलिट्री के ट्रक बीजिंग की ओर जाते हुए नजर आए। इस वीडियो को पाकिस्तानी यूट्यूबर आरजू अकादमी ने प्रमुखता के साथ अपने दैनिक शो में प्रेजेंट किया है। यद्यपि वे अपने शो में इस मिलिट्री कू की पुष्टि नहीं कर रही थीं।
[ ] इस तख्तापलट का श्रेय जाता है चीन के पूर्व राष्ट्रपति एवं पूर्व प्रधानमंत्री को जिनका नाम क्रमशः हू जिंग ताओ एवम वें ज़िया हो है । खबरें यह भी हैं कि इन दोनों में समरकंद में हुई s.c.o. सम्मिट में ही सी जिनपिंग को सुरक्षा एजेंसियों से गिरफ्तार करवा लिया था।
[ ] समाचार यह भी गर्म है कि-" चीन की एक सेना अधिकारी ली क्यांग मिंग चीन के अगले राष्ट्रपति होंगे।
[ ] अंतरराष्ट्रीय मीडिया ने इस समाचार की भी पुष्टि की है कि समिति के उपरांत होने वाले डिनर के पहले ही चाइना के राष्ट्रपति चीन के लिए रवाना हो चुके थे वह भी डिनर में शामिल हुए बिना।
[ ] सूचना माध्यम यह भी बताते हैं कि-" शी जिनपिंग को हाउस अरेस्ट कर दिया गया है।"
[ ] विश्व मीडिया का ध्यान चीन से विश्व में जाने वाली 60% फ्लाइट के उड़ान ना भर सकने को भी इस मिलिट्री तख्तापलट का संकेत माना है। कहा जाता है कि किंतु विश्व भर में 9584 एयरक्राफ्ट विदेशों के लिए उड़ ना सके।
[ ] रूस ने इनको पावर आफ साइबेरिया नाम से जानी जाने वाली पाइप लाइन के जरिए तेल देने पर अस्थाई तौर से रोक लगा दी है।
उपरोक्त परिस्थितियों से यह कयास लगाए जा रहे हैं कि-" चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग अब सत्ता विहीन हो चुके हैं। चीन की संवैधानिक व्यवस्था के अंतर्गत किसी भी व्यक्ति को केवल दो बार राष्ट्रपति बनने की व्यवस्था है परंतु शी जिनपिंग का यह प्रयास रहा कि वे आजीवन चीन के राष्ट्रपति रहेंगे। यह तथ्य पूरा विश्व जानता है और चीन के महत्वाकांक्षी लोगों के मन में शी जिनपिंग का यह सपना बरसों से खटक रहा है। इस कारण भी तख्तापलट की इन खबरों से इंकार नहीं किया जा सकता ?
*यदि यह मिलिट्री कू हुआ है तो उसका कारण क्या है?*
मीडिया रिपोर्ट पर गंभीरता से विचार किया जाए तो आप पाएंगे ताइवान मुद्दे पर चीन के राष्ट्रपति की चुप्पी को लेकर चीन की आर्मी पी एल ए अर्थात पीपल्स लिबरेशन आर्मी राष्ट्रपति के खिलाफ है। दूसरी ओर चीन में आर्थिक संकट तथा आंतरिक आर्थिक अस्थिरता का दोषी भी शी जिनपिंग को माना जा रहा है। साथ ही चीन के नागरिक अब अधिक मुखर हो गए हैं वह शी जिनपिंग के कोविड कालीन प्रबंधन से बेहद नाराज दिखाई दे रहे हैं।
इसके अतिरिक्त चीन का अंतर्राष्ट्रीय रसूख भी इन दिनों तेजी से अपेक्षा कृत कमजोर हुआ है।
कुल मिलाकर देखा जाए तो विश्वव्यापी इस अफवाह को पूरी तरह से अफवाह नहीं कहा जा सकता? और इसे हूबहू स्वीकारना भी ठीक नहीं है जब तक की कोई आधिकारिक घोषणा ना हो।
*शी जिनपिंग के कार्यकाल में शाइनो-इंडिया रिलेशनशिप*
भारत की ओर से चीन के साथ मैत्री संबंध के प्रयास हमेशा ही सकारात्मक रहे हैं परंतु चीन पर डोकलाम घटना के बाद चीन से रिश्ते नकारात्मक रूप से प्रभावित हुए थे। अंततः चीन को अपनी रणनीति से भारत के समक्ष झुकना पड़ा। पाकिस्तान के साथ चीन के रिश्ते व्यवसायिक रूप से मजबूत रहे हैं परंतु चीन की श्रीलंका और पाकिस्तान सहित अफ्रीकन देशों के साथ आर्थिक धोखेबाजी से पूरा विश्व चीन के विरोध में है। भारत का स्टैंड जियोपोलिटिक्स में मजबूत होता नजर आता है तो उसका कारण है-"चीन के विश्व के महत्वपूर्ण देशों से रिश्तो में खटास..!" विश्व के महत्वपूर्ण राष्ट्रों में भारत भी शामिल है आप सहज अंदाज लगा सकते हैं कि चीन के साथ हमारा संबंध सामान्य से कमजोर ही रहा है।
यदि यह खबर सत्य है तो ऊपर दिए गए समस्त कारणों के आधार पर ही सत्य होगी परंतु हमें इस बात पर विश्वास करना चाहिए कि भारत के प्रति कीमती विदेश नीति सकारात्मक और भावात्मक नहीं है।
मंगलवार, नवंबर 16, 2021
उत्तर पूर्वी सीमाओं पर भारत का पहरेदार S-400
एस-400 ट्रिम्फ एक विमान भेदी हथियार एस-300 परिवार का नवीनीकरण के रूप में रूस की अल्माज़ केंद्रीय डिजाइन ब्यूरो द्वारा 1990 के दशक में विकसित विमान भेदी हथियार प्रणाली है। यह 2007 के बाद से ही रूसी सशस्त्र सेना में सेवा कर रही है। (Wikipedia)
रूस में विकसित यह मिसाइल रूस की एक और रक्षा प्रणाली S-300 का एडवांस रूप है . इस रक्षा प्रणाली पर भारी मात्रा में पैसे खर्च करने के औचित्य को लेकर सवाल उठाए जा सकते हैं परंतु इसी रक्षा प्रणाली के खरीदने के लिए जिन तथ्यों को महत्वपूर्ण माना जाता है उनमें लाल साम्राज्य अर्थात चीन की विस्तार वादी नीति सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है। अपने व्यवसाय हित को साधने के लिए चीन पूर्वोत्तर राज्यों में भी अपना हक जमाना चाहता है और उसकी कोई भी अंतरराष्ट्रीय संधि ऐसी नहीं है जिसमें चीन ने अपना लाभ ना देखा हो।
*S400 की सप्लाई प्रारंभ।*
चीनी विस्तार वादी नीति के विरुद्ध भारत ने विलंब से किंतु जरूरी कदम उठाने शुरू कर दिए हैं। रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि है की S400 के आने के बाद पूर्वोत्तर शक्ति संतुलन की स्थिति निर्मित हो जावेगी। कुछ विद्वानों का यह मानना है कि इससे उत्तेजित होकर चीन अपने हथकंडे अपनाने शुरू कर देगा।
मेरा मानना है कि वर्तमान में चीन की आंतरिक व्यवस्था बेहद खतरनाक एवं तनावपूर्ण है। इसका उदाहरण चीन में हुए लगभग 150 बम विस्फोट से लगाया जा सकता है। बावजूद इसके कि- चीन की कम्युनिस्ट पार्टी ने जिंग पिंग के हाथ मजबूत किए हैं।
विश्व राजनीतिक पटल पर राष्ट्रपति की गैरमौजूदगी भी इसी फैक्ट को पुष्ट करती है।
ऐसा नहीं है कि S400 की तैनाती केवल उत्तर पूर्वी सुरक्षा के लिए की जाएगी बल्कि माना जा रहा है कि यह पाकिस्तान को भी कवर करने के लिए कारगर साबित होने वाली एक बेहतरीन मिसाइल है।
इस मिसाइल को लेकर सबसे ज्यादा उत्तेजक वातावरण पाकिस्तान के मीडिया जगत में देखा गया।
भारत के अधिकतम प्रयासों के बावजूद भारत की पश्चिमी एवं उत्तर पूर्वी सीमाओं पर पिछले कई वर्षों से तनाव एवं झड़प की स्थिति को देखते हुए भारत के इस निर्णय पर विश्व वैश्विक स्तर पर सराहना स्वभाविक है। चीन की विस्तार वाली नीति को लेकर विश्व न केवल नाराज है बल्कि कोविड-19 से प्रभावित सभी देश और उसकी आबादी चीन के प्रति बेहद आक्रोशित है।
विगत रात्रि एक रक्षा विशेषज्ञ व्यवसाई श्री पराग द्वारा अपनी टि्वटर हैंडल से यह बात अभिव्यक्त की कि भारत निकट भविष्य में पूर्वोत्तर सीमा और पाकिस्तान को कवर कर लेगा यह कार्य आज से 20 वर्ष पूर्व कर लेना था। जो नहीं हो पाया। राष्ट्र की संप्रभुता एवं उसके अस्तित्व की रक्षा करना राष्ट्र प्रमुख की जिम्मेदारी है।
अब मीडिया के बढ़ते हस्तक्षेप के मद्देनजर वैश्विक राजनीति से परिचित होना बहुत जरूरी है। वैश्विक राजनीति का प्रभाव भारतीय अप्रवासियों पर भी पड़ता है। मेरे एक मित्र रमेश सूरी जी एवम विशेष जी कहते हैं कि वास्तव में हमें जो सम्मान अब मिल रहा है उसे हम हासिल कर पाने में पहले असमर्थ रहे हैं।
वैश्विक राजनीति के संदर्भ में देखा जाए तो भारत ने कोविड-19 में जो प्रदर्शन किया उससे भारत की स्थिति बेहद मजबूत हुई है। पराग जी के मत के अनुसार विश्व में उसे ही श्रेष्ठ माना जा रहा है जिसका मेडिकल क्षेत्र में रक्षा क्षेत्र में दबदबा कायम हो तथा आर्थिक मॉडल उत्कृष्ट हो वह देश इन दिनों प्रासंगिक है। इस शताब्दी में पराग जी के इस कथन को अस्वीकार करना बहुत कठिन है। इसमें कोई शक नहीं कि एस 400 महंगा सौदा है परंतु विपरीत परिस्थितियों में जैसा की बहुत संभव है भारत यह सिद्ध कर पाएगा कि यह समझौता कितना महत्वपूर्ण और समकालीन परिस्थितियों में प्रासंगिक है। रूस से यह समझौता अमेरिकन दबाव के बावजूद करके भारत एवं रूस ने यह संदेश दिया है कि आत्मरक्षा का कोई दूसरा विकल्प हो ही नहीं सकता। भारतीय रक्षा व्यवस्था में सुधार लाना उसे परिमार्जित करना एक प्रभावी प्रणाली है और इसका स्वागत और सम्मान करना ही होगा। अगर इस रक्षा सौदे को लेकर किसी भी तरह का कन्फ्यूजन हो तो हम गलवान से लेकर अब तक के जिनपिंग के नकारात्मक प्रयासों को देख कर ही समझ सकते हैं ।
शनिवार, नवंबर 21, 2020
चीन ने साम्यवाद की परिभाषा बदल दी...?
साम्यवाद : सामंतवाद एवं पूंजीवाद के जाल में
साम्यवाद, वर्तमान परिस्थितियों में सामंतवादी और पूंजीवादी व्यवस्था के मकड़जाल में गिरफ्त हो चुका है। अगर दक्षिण एशिया के साम्यवादी राष्ट्र चीन का मूल्यांकन किया जाए ज्ञात होता है कि वहां की अर्थव्यवस्था पूंजीवादी व्यवस्था के कीर्तिमान भी ध्वस्त करती नजर आ रही हैं। अपने आर्टिकल में हम केवल कोविड19 के जनक चीन के ज़रिए समझने की कोशिश करते हैं ।
चीन का असली चेहरा : पूंजीवादी व्यवस्था और विस्तार वादी संस्कार
यहां चीन में अर्थव्यवस्था की जो स्थिति है वह विश्व की श्रेष्ठ अर्थव्यवस्थाओं में से एक है । चीन ने विश्व के कुछ सुविधा विहीन देशों को गुलाम बनाने के उद्देश्य से उनकी स्थावर संपत्तियों पर खास स्ट्रैटेजी के तहत कब्ज़ा करने की पूरी तैयारी कर ली है। यह चीन द्वारा उठाया गया वह क़दम है जो कि "साम्यवादी-चिंतन" को नेस्तनाबूद करने का पर्याप्त उदाहरण है । यह एक ऐसा राष्ट्र बन चुका है जिसे फ़िल्म "रोटी कपड़ा मकान" वाले साहूकार डॉक्टर एस डी दुबे की याद आ जावेगी ।
कौन कौन से देश हैं इस सामंत के गुलाम..?
चीन के कर्ज से दबे दक्षिण एशिया के देशों में श्रीलंका, पाकिस्तान, बांग्लादेश, मालदीव, नेपाल , अग्रणी हैं । जबकि 2010 में अफ्रीकी देशों पर चीन का 10 अरब डॉलर (आज के हिसाब से 75 हजार करोड़ रुपए) का कर्ज था। जो 2016 में बढ़कर 30 अरब डॉलर (2.25 लाख करोड़ रुपए) हो गया अब जबकि कोविड19 विस्तारित है तब ।
ये अफ्रीकी देश की हालत क्या हो सकती है आप खुद अंदाज़ा लगा सकते हैं ।
अफ्रीकी देश जिबुती, दुनिया का इकलौता कम आय वाला ऐसा देश है, जिस पर चीन का सबसे ज्यादा कर्ज है। जिबुती पर अपनी जीडीपी का 80% से ज्यादा विदेशी कर्ज है। इन ऋण लेने वाले देशों के पास चीन नामक साहूकार को ऊँची ब्याज दर चुकाने तक का सामर्थ्य तक नहीं है। दक्षिण एशियाई देश मालदीव के वर्तमान राष्ट्रपति ने साफ तौर पर कर्ज वापसी के लिए असमर्थता व्यक्त कर दी है ।
स्थिति स्पष्ट है कि- चीन वैश्विक अर्थव्यवस्था में एक साम्यवादी न होकर शुद्ध रूप से पूंजीवादी व्यवस्था के रूप में शामिल हो चुकी है ।
जिस व्यवस्था में नागरिक अर्थात व्यक्ति उत्पादन के लिए एक मशीन की तरह प्रयुक्त हो वह व्यवस्था कार्ल मार्क्स के मौलिक सिद्धांतों का अंत करती नज़र आती है।
मार्क्सवाद मानव सभ्यता और समाज को हमेशा से दो वर्गों -शोषक और शोषित- में विभाजित मानता है। नये सिनेरियो में - शोषक के रूप में चीन की सरकार है और शोषित के रूप में जनता या उसके नागरिक ।
मार्क्स के सिद्धांत के अनुसार यह सत्य कि है साधन संपन्न वर्ग ने हमेशा से उत्पादन के संसाधनों पर अपना अधिकार रखने की कोशिश की तथा बुर्जुआ विचारधारा की आड़ में एक वर्ग को लगातार वंचित बनाकर रखा।
अतः चीन को इस बात का एहसास भी हो जाना चाहिए कि शोषित वर्ग (चीन एवम कर्ज़दार देशों के नागरिक ) को इस षडयंत्र का एहसास हो चुका है । अतः वर्ग संघर्ष की 100% संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता क्योंकि वर्गहीन समाज (साम्यवाद) की स्थापना के लिए वर्ग संघर्ष एक अनिवार्य और निवारणात्मक प्रक्रिया है।
"सामंतवादी दृष्टिकोण अपनाते हैं राष्ट्रप्रमुख...?"
चीन में सदा से ही जनगीत केवल जनता को मानसिक रूप से भ्रमित करने के लिए गाये एवम गवाए हैं । नागरिकों की आज़ादी केवल सरकारी किताबों तक सीमित है । उईगर मुस्लिम इसका सबसे उत्तम उदाहरण हैं । सामंत सदा सामन्त बने रहने के गुन्ताड़े में रहता है। शी जिंग पिंग भी उसी जुगाड़ में हैं। जबकि डेमोक्रेटिक सिस्टम सदा सामंती व्यवस्था के विरुद्ध होता है। कारण भी है कि डेमोक्रेटिक सिस्टम में सत्ता का मार्ग नागरिकों के संवेदनशील मस्तिष्क से निकलता है जबकि उनकी मान्यता है कि -"सत्ता का मार्ग बंदूक की नली से निकलता है ।
साम्यवाद, वर्तमान परिस्थितियों में सामंतवादी और पूंजीवादी व्यवस्था के मकड़जाल में गिरफ्त हो चुका है। अगर दक्षिण एशिया के साम्यवादी राष्ट्र चीन का मूल्यांकन किया जाए ज्ञात होता है कि वहां की अर्थव्यवस्था पूंजीवादी व्यवस्था के कीर्तिमान भी ध्वस्त करती नजर आ रही हैं। अपने आर्टिकल में हम केवल कोविड19 के जनक चीन के ज़रिए समझने की कोशिश करते हैं ।
चीन का असली चेहरा : पूंजीवादी व्यवस्था और विस्तार वादी संस्कार
यहां चीन में अर्थव्यवस्था की जो स्थिति है वह विश्व की श्रेष्ठ अर्थव्यवस्थाओं में से एक है । चीन ने विश्व के कुछ सुविधा विहीन देशों को गुलाम बनाने के उद्देश्य से उनकी स्थावर संपत्तियों पर खास स्ट्रैटेजी के तहत कब्ज़ा करने की पूरी तैयारी कर ली है। यह चीन द्वारा उठाया गया वह क़दम है जो कि "साम्यवादी-चिंतन" को नेस्तनाबूद करने का पर्याप्त उदाहरण है । यह एक ऐसा राष्ट्र बन चुका है जिसे फ़िल्म "रोटी कपड़ा मकान" वाले साहूकार डॉक्टर एस डी दुबे की याद आ जावेगी ।
कौन कौन से देश हैं इस सामंत के गुलाम..?
चीन के कर्ज से दबे दक्षिण एशिया के देशों में श्रीलंका, पाकिस्तान, बांग्लादेश, मालदीव, नेपाल , अग्रणी हैं । जबकि 2010 में अफ्रीकी देशों पर चीन का 10 अरब डॉलर (आज के हिसाब से 75 हजार करोड़ रुपए) का कर्ज था। जो 2016 में बढ़कर 30 अरब डॉलर (2.25 लाख करोड़ रुपए) हो गया अब जबकि कोविड19 विस्तारित है तब ।
ये अफ्रीकी देश की हालत क्या हो सकती है आप खुद अंदाज़ा लगा सकते हैं ।
अफ्रीकी देश जिबुती, दुनिया का इकलौता कम आय वाला ऐसा देश है, जिस पर चीन का सबसे ज्यादा कर्ज है। जिबुती पर अपनी जीडीपी का 80% से ज्यादा विदेशी कर्ज है। इन ऋण लेने वाले देशों के पास चीन नामक साहूकार को ऊँची ब्याज दर चुकाने तक का सामर्थ्य तक नहीं है। दक्षिण एशियाई देश मालदीव के वर्तमान राष्ट्रपति ने साफ तौर पर कर्ज वापसी के लिए असमर्थता व्यक्त कर दी है ।
स्थिति स्पष्ट है कि- चीन वैश्विक अर्थव्यवस्था में एक साम्यवादी न होकर शुद्ध रूप से पूंजीवादी व्यवस्था के रूप में शामिल हो चुकी है ।
जिस व्यवस्था में नागरिक अर्थात व्यक्ति उत्पादन के लिए एक मशीन की तरह प्रयुक्त हो वह व्यवस्था कार्ल मार्क्स के मौलिक सिद्धांतों का अंत करती नज़र आती है।
मार्क्सवाद मानव सभ्यता और समाज को हमेशा से दो वर्गों -शोषक और शोषित- में विभाजित मानता है। नये सिनेरियो में - शोषक के रूप में चीन की सरकार है और शोषित के रूप में जनता या उसके नागरिक ।
मार्क्स के सिद्धांत के अनुसार यह सत्य कि है साधन संपन्न वर्ग ने हमेशा से उत्पादन के संसाधनों पर अपना अधिकार रखने की कोशिश की तथा बुर्जुआ विचारधारा की आड़ में एक वर्ग को लगातार वंचित बनाकर रखा।
अतः चीन को इस बात का एहसास भी हो जाना चाहिए कि शोषित वर्ग (चीन एवम कर्ज़दार देशों के नागरिक ) को इस षडयंत्र का एहसास हो चुका है । अतः वर्ग संघर्ष की 100% संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता क्योंकि वर्गहीन समाज (साम्यवाद) की स्थापना के लिए वर्ग संघर्ष एक अनिवार्य और निवारणात्मक प्रक्रिया है।
"सामंतवादी दृष्टिकोण अपनाते हैं राष्ट्रप्रमुख...?"
चीन में सदा से ही जनगीत केवल जनता को मानसिक रूप से भ्रमित करने के लिए गाये एवम गवाए हैं । नागरिकों की आज़ादी केवल सरकारी किताबों तक सीमित है । उईगर मुस्लिम इसका सबसे उत्तम उदाहरण हैं । सामंत सदा सामन्त बने रहने के गुन्ताड़े में रहता है। शी जिंग पिंग भी उसी जुगाड़ में हैं। जबकि डेमोक्रेटिक सिस्टम सदा सामंती व्यवस्था के विरुद्ध होता है। कारण भी है कि डेमोक्रेटिक सिस्टम में सत्ता का मार्ग नागरिकों के संवेदनशील मस्तिष्क से निकलता है जबकि उनकी मान्यता है कि -"सत्ता का मार्ग बंदूक की नली से निकलता है ।
रविवार, जुलाई 26, 2020
चीन के खिलाफ आर्थिक प्रतिबंध एवम कारपोरेट सेक्टर
ताहिर गोरा के टैग टीवी पर आज पामपियो के हवाले से निक्सन के दौर से ओबामा तक जिस प्रकार चीन को बारास्ता पाकिस्तान सपोर्ट दिया वो चीन के पक्ष में रहा । अब उसका उसका दुष्परिणाम भी देखा भारतीय सन्दर्भ में एक एक दम साफ है कि हमारे विदेशी कारपोरेट केे लिए अधिक वफादार हैैं चीन के सापेक्ष । अगर इम्पोर्टेड विचारों ने कोई हरकत न की और भारत में अस्थिरता पैदा न की । कास्टिज़्म को रीओपन करने वाली एकमात्र विचारधारा यही है ।
गुरुवार, जुलाई 27, 2017
भारत के राष्ट्रवाद को हिन्दू राष्ट्रवाद कहना चीन की सबसे बड़ी अन्यायपूर्ण अभिव्यक्ति
आलेखों से आगे ..... भारतीय राज्य व्यवस्था के स्वरुप की एक
और झलक
इस आलेख में देखिये
भारत की धर्म निरपेक्षता एवं सहिष्णुता आज की
नहीं है बल्कि अति-प्राचीन है . भारतीय सनातनी व्यवस्था के चलते किसी की वैयक्तिक आस्था
पर चोट नहीं करता यह सार्वभौमिक पुष्टिकृत तथ्य है इसे सभी जानते हैं . जबकि विश्व
के कई राष्ट्र सत्ता के साथ आस्था के विषय पर भी कुठाराघात करने में नहीं चूकते.
कुछ दिनों से विश्व को भारत के नेतृत्व में कुछ नवीनता नज़र आ रही है ... श्रीमती
सुषमा स्वराज ने अपनी एक अभिव्यक्ति में कहा कि- संस्कृत में "वसुधैव कुटम्बकम" की अवधारणा
है. उनका यह उद्धरण इस बात की पुष्टि है कि भारत की सनातनी व्यवस्था में वृहद
परिवार की परिकल्पना बहुत पहले की जा चुकी. भारतीय सम्राट न तो
धार्मिक आस्थाओं पर कुठाराघात करने के उद्देश्य के साथ राज्य
के विस्तारक हुए न ही उनने सेवा के बहाने धार्मिक विचारों को
छल पूर्वक विस्तारित किया .
जबकि न केवल इस्लाम बल्कि अन्य कई धर्म तलवार या व्यापार के
बूते विस्तारित हुए . आज भी जब पाक-आधित्यित-काश्मीर के शरणार्थी भारत आए तो
राष्ट्र ने उनके जीवन को पुनर्व्यवस्थित करने 5 लाख रूपयों की राशि प्रदान करने की
व्यवस्था की है . इसे सहिष्णुता ही कहेंगे जबकि चीन जैसे कम्युनिष्ट राष्ट्र ने
डोकलाम के मुद्दे पर विश्व और खुद जनता को गुमराह करने राष्ट्रवाद को हिन्दू
राष्ट्रवाद का नाम दिया . भारत के राष्ट्रवादी चिंतन को बीजिंग से परिभाषा दी जावे
इसके मायने साफ़ हैं कि बीजिंग भी अन्य धार्मिक आस्थाओं को उकसाने की फिराक में हैं
.
अमेरिकन फांसीसी व्यक्वास्थाएं अब घोर राष्ट्रवादियों के
हाथ में हैं उसे क्या परिभाषा दी जावेगी ये तो साम्यवादी राष्ट्र के विचारक ही बता
सकतें हैं पर यहाँ साफ़ तौर पर एक बात स्पष्ट होती है कि साम्यवादी राष्ट्र
से जो भाषा हम, तक आ रहीं हैं वो साम्यवादी
तो कतई नहीं हैं .
भारत के राष्ट्रवाद को हिन्दू
राष्ट्रवाद कहना चीन की सबसे बड़ी अन्यायपूर्ण अभिव्यक्ति है इस ओर विचारकों का
ध्यान जाना अनिवार्य है .
आज़कल लोगों के मन में एक सवाल निरंतर कौंध रहा है कि क्या चीन भारत के बीच युद्द होगा ..?
मेरे दृष्टिकोण से कोई भी स्थिति ऐसी नहीं है कि चीन और भारत के मध्य युद्ध हो.. युद्ध किसी भी स्थिति में चीन के लिए लाभदायक साबित नहीं होगा इस बात का इल्म चीन की लीडरशिप को बखूबी है. पर चीन का जुमले उछालने का अपना शगल है. मेरी नज़र में चीन उस पामेरियन सफ़ेद कुत्ते की तरह बर्ताव कर रहा है जो घर में आए मेहमान पर जितना भौंकता है उतना ही पीछे पीछे खिसकता है. यह राष्ट्र अपनी विचारधारा के चलते भय का वातावरण निर्मित करने में लगा है.
सदस्यता लें
संदेश (Atom)
Ad
यह ब्लॉग खोजें
-
सांपों से बचने के लिए घर की दीवारों पर आस्तिक मुनि की दुहाई है क्यों लिखा जाता है घर की दीवारों पर....! आस्तिक मुनि वासुकी नाम के पौरा...
-
संदेह को सत्य समझ के न्यायाधीश बनने का पाठ हमारी . "पुलिस " को अघोषित रूप से मिला है भारत / राज्य सरकार को चा...
-
मध्य प्रदेश के मालवा निमाड़ एवम भुवाणा क्षेत्रों सावन में दो त्यौहार ऐसे हैं जिनका सीधा संबंध महिलाओं बालिकाओं बेटियों के आत्मसम्मान की रक...