साभार : learningtimes |
के. एम. अग्रवाल कला, वाणिज्य एवं विज्ञान महाविद्यालय, कल्याण(प) के हिंदी विभाग द्वारा विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के सहयोग से 9-10 दिसबर 2011 को दो दिवसीयराष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया जाना था जो केंद्रित थी "हिन्दी ब्लागिंग : स्वरूप, व्याप्ति और संभावनायें" विषय पर डॉ.मनीष कुमार मिश्रा का स्नेहिल आमंत्रण सम्पूर्ण व्यवस्था, श्रीमति अनिता कुमार जी के आचार्य कालेज मुम्बई में मेरा वक्तव्य सुनिश्चित किया था कई सारे प्रोग्राम तो फ़ोन पे तय हो गये थे कुछ तय हो जाते वहां जाकर सब कुछ सटीक समयानुकूलित था कि अचानक 7.12.2011 की रात मुझ पर अस्थमेटिक हमला हुआ सपत्नीक कल्याण और फ़िर मुम्बई जाना अब किसी सूरत में संभव न था. जबलपुर से नागपुर फ़िर वहां से फ़्लाईट पकड़नी थी .जात्रा के लिये सजा सजाया साजो सामान और तेज़ बुखार खांसी एक विपरीत परिस्थिति डाक्टर ने भी बिस्तर से न हिलने की सलाह दी थी. श्रीमति अनिता कुमार जी तो शायद आज़ तक नाराज़ है. नाराज़गी ज़ायज़ है भई .. होनी भी चाहिये ...आचार्य कालेज मुम्बई के बच्चे उस दौर में मुझसे वेबकास्टिंग का हुनर जो सीखते जब लाइव स्ट्रीमिंग के लिये गूगल बाबा ने भी न सोचा था (शायद ).. जी हां अस्ट्रीम और बैम्बशर दो ऐसी साइट्स मेरे हाथ लगी थीं जिनके ज़रिये एक साथ हज़ारोंलाखो लोग किसी कार्यक्रम से जुड़ जाते चाहे वे कहीं भीं हों. ये करिश्मा खटीमा-ब्लागर्स मीट की लाइव स्ट्रीमिंग में हो भी चुका था . स्ट्रीमिंग पर कई दिनों तक काम किया था कई सारे प्रसारण प्रसारण मेरे, श्रीमति अर्चना चावजी, भाई अविनाश वाचस्पति एवम पद्मसिंह द्वारा किये जा चुके थे .
हिंदी ब्लागिंग में टेक्स्ट के अलावा आडियो
कंटेंट्स तो पुरानी बात लगने लगी थी तब. ब्लागिंग में वीडियों कंटेंट्स की मौज़ूदगी
मुहैया कराना एक करिश्मा ही तो था. इसके सहारे कल्याण मुम्बई जाता तो बहुत कुछ हासिल होता पर जब जब जो
जो होना है तब तब वो वो होता है खैर हमारी इस तरह की उछलकूद ने गूगल बाबा को लाइव-स्ट्रीमिंग की दिशा में
सोचने शायद मज़बूर कर ही दिया . लगभग एक बरस से नेट यूज़र्स अब लाइव स्ट्रीमिंग का लाभ ले रहे हैं. वो दिन
दूर नहीं जब हर पी सी से एक चैनल उपजेगा. न्यू-मीडिया खबरिया चैनल्स के लिये एक
सूचना-स्रोत हो सकता है. (अभी कई मामलों में है भी ) प्रिंट मीडिया तो
न्यू-मीडिया का भरपूर और सार्थक प्रयोग कर भी रहा है.
तो लाइव स्ट्रीमिंग के तीव्र होते ही खबरिया-चैनल्स को कोई खतरा है ? तो जान लीजिये आज़ से बरसों पहले जब फ़िल्में सिनेमाघरों में देखी जातीं थीं तब आम आदमी का मनोरंजन व्यय बेहद अधिक था. मुझे पांच रुपए खर्चने होते थे . पर अब दस बीस फ़िल्में मेरे सेल फ़ोन में उतनी ही कीमत पर देख सकता हूं. वो भी इच्छानुसार .
तो लाइव स्ट्रीमिंग के तीव्र होते ही खबरिया-चैनल्स को कोई खतरा है ? तो जान लीजिये आज़ से बरसों पहले जब फ़िल्में सिनेमाघरों में देखी जातीं थीं तब आम आदमी का मनोरंजन व्यय बेहद अधिक था. मुझे पांच रुपए खर्चने होते थे . पर अब दस बीस फ़िल्में मेरे सेल फ़ोन में उतनी ही कीमत पर देख सकता हूं. वो भी इच्छानुसार .
अब आवश्यक्ता अविष्कार
की जननी नहीं बल्कि बेहतर विकल्पों की तलाश की वज़ह से अविष्कार हो रहे हैं.
संचार के क्षेत्र में भी एक आवेग
सतह के नीचे पल रहा है. जो सिर्फ सतह
देखने के आदी है वे देखें न देखें इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता ।
चिन्तक सत्य को समझ पा रहे कि विचार
और सरिता में अनाधिकृत तट बंधों को तोड़ देने की क्षमता होती है । जहां तक
न्यू मीडिया का सवाल है ठीक वैसा ही आतुर है में अनाधिकृत तट बंधों को तोड़
देने जिसका सबसे बड़ा खामियाज़ा लापरवाह निरंकुश टी.वी. चैनल्स को भुगतना पड़ सकता है
विज़ुअलिटी के दौर में मनोरंजक, फ़िल्मी चैनल्स, खबरिया चैनल्स पर अब ये सवाल उठने
लगे हैं कि – निरंकुश एवम अत्यधिक आक्रामक हो रहे हैं .. परिवारों में
तांक-झांक करने लगे हैं तो अगर ये आरोप सही साबित होते हैं तो तय है
कि आने वाले समय में दर्शक जुड़ने से परहेज करेंगें . जो इनके
मीडिया-संस्थानों के लिये बेहद नुकसान देह साबित होंगें. दर्शक तलाशेंगे
विकल्प तब मौज़ूद होगा एक मज़बूत विकल्प भले ही तकनीकि तौर पर कमज़ोर सही परंतु मौलिक
होंगे. क्या होगा विकल्प ... यक़ीनन वेबकास्टिंग... 4G के आते ही इसकी आहट आप सुन सकते हैं.
इस तरह के बदलावों को रोकना सम्भव नहीं होगा.
न्यू-मीडिया का यह विकल्प एक ओर विचार-संप्रेषण का माध्यम होगा वहीं दूसरी ओर
सूचना-संचरण का तीव्रतम साधन. चूंकि एक या दो अथवा कुछ लोग के ज़रिये प्रसारण
होंगे तो तय है कि तब कि "वेबकास्टिंग" अपेक्षाकृत अधिक उद्दण्ड और
अराजक होगी. इस बात को नकारना असम्भव तो है किंतु विकल्प के रूप में उनकी मौज़ूदगी तय है.!!