सुन प्रिय मोरी चाहत उसपे.. जो न स्वांग रचाए
मन मधुवन अरु देह राधिका हिवड़ा ताल सजाए ! कैसे रोकूं ख़ुद को कान्हा, सावन मन भरमाए !! ************** मैं बिरहन बिरहा की मारी, अश्रु झरें ज्यों चिंगारी बेसुध हूं मैं तन अरु मन से, चीन्हो मोहे श्रृंगारी सावन बीतो जाए.. *************** नातों के बन छोड़ के मोहे, राधा संग तुम रास रचाते मंदिर मंदिर नाचूं गाऊं, प्रिय तुम मोहे चीन्ह न पाते जोबन बीतो जाए.. *************** करुण पुकार सुनी कान्हा ने, आए अरु मुस्काए सुन प्रिय मोरी चाहत उसपे.. जो न स्वांग रचाए बिन चाहत के आए...