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सर्वहारा के बारे में सोचने की सनद और मेरा वो दोस्त

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साभार:  बारिश की खुशबू                   जी,सवाल सीधा सपाट उन लोंगों से है जिनके लिये जन-चिंतन वाग्विलास का साधन है. इस विषय को लेकर आप बस एक हुंकार भरिये और भीड़ से अलग थलग दिखिये इससे ज़्यादा इनकी और कोई मंशा नहीं. एक मित्र याद है कमसिनी ही कहूंगा कालेज के दौर की उम्र को जनवाद भाया सो वह मित्र मुझसे मिला. आकर्षित होना लाज़मी था एक आईकान की तलाश जो थी मुझे और उसकी बातों में वक्तव्यों में लय थी, कोई बात किसी दूसरी बात के बीच असंगत न लगती थी. बेहतरीन कविता लिखता था . उस समय वो क्षेत्रीय राजनैतिक दलों की परिस्थितियां देख रहा था. जब   केवल दो पार्टी का बोलबाला था और आपतकाल के बाद सब जुड़े एक हुए थे .भारतीय सत्ता पर काबिज़ हुए थे. जीं हां, तभी की बात कर रहा हूं जब राजनारायण ने गुड़ चना खाने की सलाह दी थी . मेरा वो मित्र उस समय आज़ की स्थितियों का बयान कर रहा था. उसके वक्तव्य आम आदमी से इतना क़रीब होते कि मन कहता बस “इस युवक में ही भारत बसता है.”         गंजीपुरा के साहू मोहल्ले वाली गली में हम लोग रूपनारायण जी के किराएदार थे. आगे बनी एक बिल्डिंग में मेरा