जिधर शामें बदन पे फफोले उगातीं हैं
जे जो आप आदमी देख रए हो न उस शहर से आया है जिधर शामें बदन पे फफोले उगातीं हैं सूरज शोलों सा इनके ही शहर से और तो और ठीक इनके मकान के ऊपर से निकलता है. तभी देखोन्ना............इनका चेहरा झुलसा हुआ आग उगलता नज़र आ रिया है. सारे नकारात्मक विचार इनकी पाज़िटीविटी जला के ख़ाक ख़ाक कर चुकें हैं ! गोया ये ये नहीं सोई हुई आग को अपने में समोए गोबर के उपले से नज़र आ रहे हैं . कुंठा की खुली दूकान से ये महाशय अल सुबह से कोसन मन्त्र का जाप करतें हैं . तब कहीं कदम ताल या पदचाप करतें हैं . जी हाँ ...!! ज़मूरे खेल बताएगा बताउंगा उस्ताद इस आदमीं की जात सबको बताएगा ? बताउंगा...! कुछ छिपाएगा....? न उस्ताद न तो बता ........ आज ये कितनों की निंदा करके आया है ..? उस्ताद............आज तो जे उपासा है...! देखो न चेहरा उदास और रुआंसा है......!! हाँ ये बात तो है पर ऐसा क्यों है....! उस्ताद इसकी बीवी का भाई इसके घर आया था बीवी को ले गया आज ये घर में अकेला था मन बहलाने बाजीगरी देखने आ गया...! नहीं मूर्ख ज़मूरे ये अपनी बाजीगरी कला का पेंच निकालेगा उस्ताद बड़े पहुंचे हुए हो ......ये सही बात कैसे जानी ... बताता हूँ पहल