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ज्ञानरंजन जी के घर से लौट कर

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                  ज्ञानरंजन जी   के घर से लौट कर बेहद खुश हूं . पर कुछ दर्द अवश्य अपने सीने में बटोर के लाया हूं . नींद की गोली खा चुका पर नींद न आयेगी मैं जानता हूं . खुद को जान चुका हूं . कि उस दर्द को लिखे बिना निगोड़ी नींद न आएगी .   एक कहानी उचक उचक के मुझसे बार बार कह रही है :- सोने से पहले जगा दो सबको . कोई गहरी नींद न सोये सबका गहरी नींद लेना ज़रूरी नहीं . सोयें भी तो जागे - जागे . मुझे मालूम है कि कई ऐसे भी हैं जो जागे तो होंगें पर सोये - सोये . जाने क्यों ऐसा होता है            ज्ञानरंजन   जी ने मार्क्स को कोट किया था चर्चा में विचारधाराएं   अलग अलग हों फ़िर भी साथ हो तो कोई बात बने . इस   तथ्य से अभिग्य मैं एक कविता लिख तो चुका था इसी बात को लेकर ये अलग बात है कि वो देखने में प्रेम कविता नज़र आती है :-  प्रेम   की   पहली   उड़ान     तुम   तक   मुझे   बिना   पैरों   के   ले    आई ..! तुमने   भी   था   स्वीकारा   मेरा   न्योत