बता दो.. शून्य का विस्फ़ोट हूं..!!
दूरूह पथचारी तुम्हारे पांवों के छालों की कीमत अजेय दुर्ग को भेदने की हिम्मत को नमन... !! निशीथ-किरणों से भोर तक उजाला देखने की उत्कंठा ….! सटीक निशाने के लिये तनी प्रत्यंचा ... !! महासमर में नीचप थो से ऊंची आसंदी तक की जात्रा में लाखों लाख विश्वासी जयघोष आकाश में हलचल को जन्म देती यह हरकत जड़-चेतन सभी ने देखी है तुम्हारी विजय विधाता की लेखी है.. उठो.. हुंकारो... पर संवारो भी एक निर्वात को सच्ची सेवा से भरो जनतंत्र और जन कराह को आह को वाह में बदलो... ********** सुनो , कूड़ेदान से भोजन निकालते बचपन रूखे बालों वाले अकिंचन. रेत मिट्टी मे सना मजूरा नर्मदा तट पर बजाता सूर बजाता तमूरा सब के सब तुम्हारी ओर टकटकी बांधे अपलक निहार रहे हैं .... धोखा तो न दोगे यही विचार र हे है...! कुछ मौन है पर अंतस से पुकार र हे हैं .. सुना तुमने... वो मोमिन है.. वो खिस्त है.. वो हिंदू है... उसे एहसास दिला दो पहली बार कि वो भारतीय है... उ नको हिस्सों हिस्सों मे प्यार मत देना प्यार की पोटली एक साथ सामने सबके रख देना शायद मां ने तु