इसे देखिये क्या यह साहित्यिक पत्रिका नहीं है जो अब आन लाइन है कादम्बिनी
अब बांचिये यह आलेख
इन दिनों अंतरजालिया-साहित्य और उसके लेखक,लेखिकाओं के खिलाफ़ ठीक उसी तरह का वातावरण बनाते हुए नज़र आ रहे हैं जैसा मुहल्ले की कामवाली-बाईयां उन घरों की चुगलियां अन्य घरों तक नकारात्मक भाव से किन्तु तेज़ गति से प्रसारित करतीं हैं.यह खबर हम सबके लिये बहुत नुकसान देह नहीं. इससे लोगों तक हिंदी साहित्य नेट पर लाने की कोशिशें जारी होने की खबर हासिल हो गई है.
जब हम ने उनमे से एक सज्जन से बात करनी चाही तो वो बोले-“आप कौन..?”
मैं:-“सर,इस नाचीज़ को गिरीश बिल्लोरे कहतें हैं”
वे:-“हर चीज़ में ना लगाना ज़रूरी है क्या ?”
गोया, हज़ूर हमें हमें पहचान गये कि हम कोई “चीज़ हैं” हमने इस सवाल का ज़वाब न देते हुए कहा - आपका वेबकास्ट इंटरव्यू लेना चाहता हूं..!
वे:-“आप प्रश्नावली भेज दें में वीडियो भेज दूंगा ”
मैं:- :-“हज़ूर,आपका वीडियो मेरे प्रसारण के लिये उपयुक्त नहीं यह लाईव ही रेकार्ड होता है ”
मेरे हज़ूर,सर आदि संबोधन से गोया वे इतने प्रभावित हो गये कि बोलने लगे:- “मेरे पास समय नहीं है ”
मैं :- वैसे समय तो मेरे पास भी नहीं है, आपको सूचना के लिये बता दूं कि परसाई जी के शहर का वाशिंदा हूं .
एक कुछ प्रति प्रश्न थे आपके उठाए गये सवालों से जुड़े
उसके बाद उनने जो कहा वो बस एक व्यक्ति के विरुद्ध प्रगट किया गया विरोध मात्र था.
साथियो ऐसे नकारात्मक चिंतन की आयु कितनी होती है आप सभी जानते हैं. सारे तथ्यों को पहचानते हैं. खूब लिखिये नेट पर खुल कर पर सर्वथा उपयोगी,स्तरीय,और ऐसा भी जो चूलें हिला दे उनकी जो आत्ममुग्ध हैं.
बेशक अब कचरा न डालें,कापी-पेस्ट न करें, अद्यतन रहें, आत्म-मुग्धता से लबालब न लिखें. और विरोध की होली जला दें जी आज ही.