जन्मपर्व लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
जन्मपर्व लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

31.12.20

कोशिशें सदा बड़ी ही होतीं हैं..!

    जन्मपर्व पर हार्दिक बधाई
            बेटी शिवानी
एफिल टॉवर, हिमालय, एवरेस्ट, या और अनंत ऊँचाईयाँ
कभी भी बड़ी नहीं ...!
बड़ी होती हैं...
उम्मीदें... 
अरे नहीं यह भी नहीं !
बड़े होते हैं संकल्प..!
ओह.. 
ये भी आधा अधूरा सच है..!
बड़ी होती हैं.. सफलताएं ..
उफ़ ये क्या ?
यह तो आधे से भी कम सच है
बड़ी होतीं हैं..
कोशिशें..! 
जो हज़ारों रिजेक्शन के 
बाद  
सतत संलग्नता  
सफल बनातीं हैं
हाँ... सकारात्मक दिशा 
की कोशिशें
सदा बड़ी ही होतीं हैं
जन्मपर्व पर हार्दिक बधाई शिवानी बेटा..!

21.11.20

आसान नहीं है ज्ञानरंजन होना..!

"आसान नहीं है ज्ञानरंजन होना...!"
     2008-2009 का कोई  दिन या उस दिन की कोई शाम होगी । एक स्लिम ट्रिम पर्सनालिटी से सामना हुआ । ऐसा नहीं कि उनसे पहली बार मिला मिलना तो कई बार हुआ.... पर इस बार सोचा कि इतना चुम्बकीय आकर्षण कैसे हासिल होता है । बहुत धीरे से पर घनेरी तपिश की पीढा सहकर ये बने हैं गोया । 
  जी सत्य यही है ज्ञानरंजन आसानी से हर कोई ऐरागैरा बन ही नहीं सकता । 
   101 रामनगर जबलपुर के दरवाजे पर कोई 144 नहीं लगी थी जब उनके घर गया था । बहुत खुल के बात हुई थी तब । अब कोविड के बाद कभी गया तो फिर से होगी एक मुलाक़ात उनसे । उनसे असहमत/सहमत होना मेरा अपना अधिकार है, इसे लेकर बहुतेरे नकली साहित्यिक जीवगण खासे चिंतित रहते हैं । सो सुनिए-ज्ञान जी क्या कहते हैं बकौल यशोवर्धन पाठक-"गिरीश की अपनी मौलिक चिंतनधारा तो है ।" उनके इस वक्तव्य से अभिभूत हूँ वैसे भी उनके चरणों की रज माथे पर लगाना मेरे संस्कार का हिस्सा हैं । 
अक्सर लोग ज्ञानजी की सहजता को समझने में भूल कर देते हैं । निलोसे जी मेरी बेटियों के मामाजी हैं.. वे अक्सर ज्ञान जी के व्यक्तित्व से मुझे परिचित कराने में कोई कमी नहीं छोड़ते। तो मनोहर भैया के ज़रिए भी दादा के साथ जुड़ जाता हूँ। 
ज्ञानरंजन के नाम को मानद उपाधि के लिए राजभवन से स्वीकृति न मिल सकी पहल के संपादक ज्ञानरंजन जी इस बात से न तो भौंचक हैं ओर न ही उत्तेजित जितना स्नेही साहित्यकार.इस घटना को बेहद सहजता से लिया.रानी दुर्गावती विश्व विद्यालय की प्रस्तावित मानद उपाधि सूची का हू-ब-हू अनुमोदित होकर वापस न आना कम से कम ज्ञानजी के लिए अहमियत की बात नहीं है. किसी मानद उपाधि के बिना स्टेट्समैन का दर्जा हासिल है उनको । 
   एक सुबह सवेरे ज्ञान जी से फोन पर संपर्क साधा तो वे सहजता से कहने लगे :-गिरीश अब तुम लोग ब्लागिंग की तरफ चले गए हो  बेशक ब्लागिंग एक बेहतरीन माध्यम है किन्तु तुम को पढ़ना सुनना कई दिनों से नहीं हुआ. यह एक बक़ाया है मुझपर । जो ज़रूर पूरा करूंगा । 
 वास्तव में अखबारों के पास हम जैसों को छापने के लिए जगह नहीं है और हमारा भी मोहभंग हो गया है. ज्ञान जी आज भी चाहते हैं कि वे हमें सुनें समझें उनने कहा था -"तो तुम लोगों को सुनूँ पढूं तो कैसे ?  कम से कम एक बार महीने में गोष्ठी तो हो "
ज्ञान जी की इस पीढा के कारण से सब लोग वाकिफ हैं .... साहित्यिक-संगोष्ठीयों का अवसान, अखबारों में  साहित्यकारों की [खासकर नए नए लिक्खाड़ों ] उपेक्षा करते लोग शुद्ध व्यवसाई हैं । मुझे तो समीर भाई ने रास्ता दिखा दिया ।  वैकल्पिक संसाधन जैसे ब्लागिंग ।सो लिख रहा हूँ। पाठक भी खासी तादात में मौजूद हैं ।  
ज्ञान जी की इस पीढा को परख कर जबलपुर के रचनाकार एकजुट तो हैं आप भी देखिए शायद आप के शहर का कोई बुजुर्ग बरगद अपनी छांह बांटने लालायित तो हैं पर हम आप हैं कि ए.सी. वाली कृत्रिमता पर आसक्त हो चुके हैं ।  संदेश साफ़ है ... मित्रों गोष्ठियां जारी रखिए कहते रहिए कहते हो तो लगता है कि ज़िंदा हो ।    
अजय यादव आज ही ले आए हैं पहल का ताज़ा अंक इस वादे के साथ कि वे अबाध किताबें देते रहेंगे । मुझे क़बीर समग्र, परसाई समग्र, वोल्गा से गंगा तक, संस्कृति के चार अध्याय, और बहुत कुछ चाहिए । कथादेश तो ज़रूरी है ही । युवा साथियों तुम सब पढ़ो टेक्स्ट तुम्हारी प्राथमिक पसन्द होनी चाहिए । अरुण पांडे भाई जी एवम आशुतोष जी भी यही सोचते हैं हम को भी यही चिंता है... बच्चे अब केवल गूगल पर आश्रित हैं टेक्स्ट जो बकौल ज्ञानरंजन पहली पसंद होनी चाहिए अब नहीं है ।
   एक बार फिर ज्ञान जी को जन्मपर्व पर हार्दिक बधाई नमन

Wow.....New

धर्म और संप्रदाय

What is the difference The between Dharm & Religion ?     English language has its own compulsions.. This language has a lot of difficu...