



मुझे खूब हंसता देख ज़रा नाराज़ हो गई, फ़िर बोली :-”आपको मालूम है तो बताओ ”
आर्ची से मैने वादा किया कि पक्का बताऊंगा , सनडे को छुट्टी है न उस दिन इंद्रधनुष बना के बताऊंगा पक्का जी इस रविवार अर्चिता को इंद्रधनुष बनाके बताना है ... पर कैसे सोच रहा हूं..
मित्रो सच किसी ने कहा है भूखे को रोटी खिलाने से ज़्यादा महत्वपूर्ण धर्म शिशु की जिज्ञासा को शांत करना.
बहुधा लोग अपने बच्चों को खो देते हैं उनसे बचपन में संवाद नहीं करते उनकी जिज्ञासा से हमको कोई लेना देना नहीं होता. तभी एक दूरी पनपती है जो किशोरावस्था में विकृति और फिर अलगाव की शक्ल में सामने आती है. बच्चों से हमको सतत संवाद करना ही होगा. वरना "टेक केयर का जुमला सुन सुन के आप एक दिन अपने बच्चों को कोसते नज़र आएंगे उम्र के उस पड़ाव पर जब आपकी बूढ़ी आंखें अपने प्रवासी (देशीय,अन्तरदेशीय) बच्चों के फ़ोन का इंतज़ार कर रहे होंगे फ़ोन आएगा आप खुश होंगे आपकी संतान आपसे संक्षिप्त वार्ता करेंगें... और फ़िर बात समाप्त करने के पहले यह ज़रूर कहेंगे टेक केयर "
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जी चलते चलते एक पोस्ट सुनी भी जाये
केवल राम के ब्लाग से "कबूतरों को उड़ाने से क्या...?"
आलेख केवल राम / वाचक-स्वर : अर्चना चावजी
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