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6.1.12

थैंक्स लुई ब्रेल


माँ, मैरी   पिता  साइमन ,की चौथी  संतान लुई ब्रेल का जन्म दक्षिण पूर्व स्थित शहर  को्पव्रे( फ्रांस)  में दिनांक 04 जनवरी 1809 में जन्मे थे . वह और उनके तीन बड़े भाई बहन - कैथरीन ब्रेल, लुई साइमन ब्रेल  अक्सर पिता चमडे के कारखाने में खेलने जाया करते थे .  ऐसे ही खेल खेल में. तीन साल की उम्र के लुई ने  कौतुहल वश  घोड़े की जीन बनाने के लिये रखे गये चमड़े को एक सूजे से छेदने की कोशिश की और सूजा लुई की आंख में घुस गया. गांव के स्थानीय चिकित्सक के इलाज़  से अपेक्षित लाभ तो न हुआ उल्टे दूसरी आंख भी संक्रमण से  प्रभावित होने लगी.   एक सप्ताह तक चले स्थानीय इलाज़ में कोई लाभ होता न देख पिता ने पेरिस के एक चिकित्सक से संपर्क किया इलाज़ के चलते लुई को बचा तो लिया गया किंतु आयु के पांच वर्ष पूर्व होते होते लुई की दूसरी नेत्र-ज्योति क्रमश: चली गई. और लुई दिव्य-चक्षु हो गये. पिता के पादरी मित्र ने लुई को स्पर्श से एहसास का संज्ञान कराया और यही एहसास लुई को एक महान खोज कर्ताओं की सूची में ला खड़ा करता है. जी हां इन्ही दिव्य-चक्षु लुई ब्रेल ने नेत्रहीनता से जूझने के लिये ब्रेल-लिपि का महान अविष्कार किया.  
                                                                     ऐसी होती है ब्रेल लिपि
 उभरी हुई आकृतियां जिसे स्पर्श करते ही दिव्य-चक्षु पढ़ सकते हैं भोपाल के मूल निवासी श्री मधुकर जो  दिव्यचक्षु हैं तथा पेशे से फ़ीजियो थेरेपिस्ट है  चित्र में ब्रेल लिपि में लिखी गई पुस्तक को पढ़ रहें हैं. 
      नई दिल्ली के श्री रवि कुमार गुप्ता भी एक ऐसे ही आई ए एस हैं  जो ब्रेल से ही पढ़ कर आई ए एस अधिकारी हुए. इसी तरह मध्य प्रदेश काडर में श्री कृष्ण गोपाल तिवारी भी एक अदभुत व्यक्तित्व के मालिक दिव्य-चक्षु आई ए एस हैं.
श्री कृष्ण गोपाल तिवारी
आई ए एस 

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