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एक ईमेल मुझे रोज़ मिलेगा

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मुझे एक ई मेल रोज़ मिलती है गायत्री-चिंतन की ओर से जिसे प्राप्त आप भी कीजिये यहां से " ईमेल " विज्ञान के दो पक्ष विज्ञान के दो पक्ष हैं। एक पदार्थ विज्ञान, दूसरा चेतना विज्ञान (आत्म-विज्ञान)। दोनों का अपना-अपना कार्यक्षेत्र और अपना-अपना प्रतिफल है। चेतना के सम्बन्ध में लोग कुछ कहते सुनते तो रहते हैं, पर उस सत्ता का स्वरूप, उद्देश्य, आनंद खोजने के लिए उत्साहित नहीं होते। कारण भौतिक क्षेत्र के लिए आकर्षित उत्तेजित हुई मनोभूमि अपना समूचा चिंतन और कर्तृत्व इसी एक केन्द्र पर नियोजित किये रहती है। यह सब चलता और बढ़ता भी इसलिए रहता है की उसके लाभ परिणाम तत्काल प्रत्यक्ष रूप से दृष्टिगोचर होते हैं। शरीर प्रत्यक्ष दीखता है। वैभव प्रत्यक्ष दीखता है। विनोद का प्रत्यक्ष अनुभव होता है। वाहवाही लूटने में भी अहंता की पूर्ति होती है। इसी परिधि में सामान्य जन सोचते और दौड़-धूप करते पाए जाते हैं। जबकि चेतना का आत्मिक क्षेत्र गहराई में उतरने, अंतर्मुखी होने और बारीकी से समझने पर स्पष्ट होता है। इतना झंझट कौन उठाये? तात्विक दृष्टिकोण कौन अपनाये? उथला स्तर उथली उपलब्धियों से संतुष्ट हो जात